गुजरात चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। बीजेपी ने न केवल बंपर जीत दर्ज की है। बल्कि अबतक के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 150 से ज्यादा सीटें हासिल की हैं। ये गुजरात विधानसभा चुनाव के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी जीत है। इससे पहले कांग्रेस ने 1985 में 149 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। चुनाव से पहले और आखिरी एक से डेढ़ साल के कार्यकाल के दौरान बीजेपी ने न केवल गुजरात कैबिनेट में बड़ा फेरबदल किया, बल्कि दो बार मुख्यमंत्री भी बदल दिया। आखिरी दांव भूपेंद्र पटेल के चेहरे पर खेला गया। पटेल की चेहरे को आगे रखकर ये चुनाव लड़ा गया। नतीजे आए तो ऐसे आएं कि सारे आंकड़े ध्वस्त हो गए। अब खबर है कि 12 दिसंबर को भूपेंद्र पटेल दोबारा सीएम पद की शपथ ले सकते हैं। इस दौरान शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी, अमित शाह समेत भाजपा शासित राज्य के सभी सीएम शामिल हो सकते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में बमुश्किल से अपनी सत्ता कायम रख पाने वाली बीजेपी ने 5 साल बाद की कहानी को कैसे पूरी तरह पलट कर रख दिया? इस सवाल का जवाब है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सफलता का मंत्र। आखिर क्या था वो मोदी का मंत्र जिसने बीजेपी को अपराजेट बना दिया आइए जानते हैं।
अहमदाबाद नगर निगम चुनाव से पहली नुमाइश
गुजरात में कमल की पंखुड़िया ऐसे मचल कर खिल रही हैं तो इसके पीछे की वजह है कमल की वो जड़े जो नर्मदा किनारे की गीली मिट्टी में गहरे गड़ी हुई हैं। पार्टी संगठन, जनता में पैठ, वोटर से कनेक्ट, सही कैंडिडेट, प्रचार अभियान, तकनीक से दोस्ती और माहौल की समझ। कमल की इन झड़ों को नरेंद्र मोदी पिछले तीन दशक से भी ज्यादा वक्त से अपने पसीने से सींच रहे हैं। चुनावी लेवल की पहली सीढ़ी नरेंद्र मोदी ग्राउंड लेवल के कार्यकर्ताओं को ही मानते हैं। आज से नहीं बल्कि उन दिनों से जब वो संघ से बीजेपी में संगठन मंत्री के तौर पर भेजे गए थे। संगठन मंत्री के तौर पर मोदी के पास हर विधानसभा में कार्यकर्ताओं की पूरी लिस्ट होती थी। जिसके जरिये वो जमीनी रिपोर्ट लेकर चुनाव की रणनीति तैयार करते थे। आज भी गांव गांव तक फैसा ये ढांचा बीजेपी के मजबूत आधार की धुरी है। 1987 के अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में इस ताकत की पहली नुमाइश हुई। पहली बार इस चुनाव में बीजेपी का मेयर बना।
बूथ मैनेंजमेंट से विजय
जब राजनीति का मतलब बड़ी-बड़ी बैठकें, रोड शो और रैलियां हुआ करती थीं। तब नरेंद्र मोदी पार्टी संगठन में बैठकर चुनाव जीतने के गुण तलाशा करते थे। मोदी की इसी तलाश ने उन्हें चुनाव के बूथ स्तर पर ले जाकर खड़ा कर दिया। मोदी मानते हैं कि चुनावी रणनीति को विज्ञान की तरह देखना चाहिए। कार्यकर्ता पूरे चुनाव की बजाए अपने बूथ पर ध्यान दें। इसके लिए मोदी ने बूथ जीता तो इलेक्शन जीता का नारा भी दिया। मोदी ने एक बूथ, दस यूथ का भी नारा दिया। अपने इसे बूथ मैनेजमेंट को पन्ना प्रमुख का कॉन्सेप्ट इजात करके इसका विस्तार किया। पन्ना प्रमुख यानी वोटर लिस्ट के एक पन्ने का इंचार्ज। जिसे बूथ तक लाने की जिम्मेदारी पन्ना प्रमुख की होती है। मोदी भी पन्ना प्रमुख रह चुके है।
बीजेपी का संकल्प
मोदी हमेशा इस पक्ष में रहे कि घोषणा पत्र में वे ही वादे शामिल किए जाएं जो पूरे हो सके। इसलिए 2007 के चुनाव में उन्होंने बकाया बिजली बिलों की माफी का मुद्दा शामिल करने से इनकार कर दिया था। क्योंकि मोदी का मानना था कि लड़खड़ाती बिजली कंपनियों को वोट के लिए कुर्बान नहीं किया जा सकता।
प्रतिद्वंदी को कमजोर कर उसका हौसला तोड़ो
2017 के बाद बीजेपी ने उन नेताओं पर फोकस किया जो भविष्य में उसके लिए खतरा पैदा कर सकते हो। पाटीदार आंदोलन के चेहरा हार्दिक पटेल ने कांग्रेस का रुख किया। प्रभावशाली युवा नेता अल्पेश ठाकोर को बीजेपी ने अपने साथ मिलाया। बाद में हार्दिक पटेल को भी बीजेपी ने अपने साथ जोड़ लिया। केवल अल्पेश और हार्दिक ही नहीं बीजेपी ने चुन-चुनकर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कई नेताओं को अपने पाले में मिला लिया। कुंवरजी बवलिया, जवाहर चावड़ा, जीतू चौधरी, अक्षय पटेल, जे वी काकड़िया, प्रद्युम्न सिंह जडेजा, पुरुषोत्तम बाबरिया...एक-एक करके उसके कई विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए। इनके जरिए क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को भी साधने में कामयाब रही।
Modi script for biggest victory bjp in gujarat which break madhav solanki record
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