पर्वत दुनिया की 85 प्रतिशत से अधिक उभयचर, पक्षी और स्तनपायी प्रजातियों का बसेरा हैं, जबकि तराई के क्षेत्र जानवरों और पौधों की प्रजातियों से समृद्ध हैं। ऊबड़-खाबड़ और बहुत अधिक ऊंचाई वाले स्थानों के वातावरण व्यापक पर्वतीय जलग्रहण क्षेत्र में जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, इन जगहों पर ऐसी जैविक विविधता का अभाव देखने को मिल रहा है। पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र में भिन्नता के चलते ही मनुष्य उनसे अनेक लाभ प्राप्त कर पाता है। इनमें भोजन, निर्माण सामग्री, पानी, कार्बन भंडारण, कृषि चारागाह और पोषक चक्रण शामिल हैं।
वहीं, जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के कारण बढ़ते जोखिम के चलते पर्वतीय जैव विविधता पर मंडराता खतरा और गहराता जा रहा है। मोटे तौर पर दुनिया के लगभग आधे जैव विविधता संबंधी महत्वपूर्ण क्षेत्र अब पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित हैं। ये पृथ्वी के ऐसे क्षेत्र हैं जो जैव विविधता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ये इस हद तक खतरे में हैं कि वहां मूल निवास का 70 प्रतिशत तक नष्ट हो गया है। इसके अलावा, उच्च पर्वतीय वातावरण वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हो रहे हैं। यह इन पारिस्थितिक तंत्रों में परिवर्तन की दर को तेज कर रहा है।
वैश्विक जैव विविधता को संरक्षित करने के प्रयासों के बावजूद बड़े पैमाने पर पहाड़ों की अनदेखी की जा रही है। पर्वतों का महत्व ऊंचे पहाड़ों पर बहुत अधिक वर्षा होती है और ऊंचाई पर वाष्पीकरण की दर कम रहती है। इसलिए उनमें बर्फ और बर्फ के रूप में पानी के बड़े भंडार होते हैं जो आसपास के जलग्रहण क्षेत्र में जैव विविधता की नींव हैं। अफ्रीका के किलिमंजारो पर्वतीय क्षेत्र से पिघली मौसमी बर्फ पास के अंबोसेली राष्ट्रीय उद्यान के दलदल में चली जाती है।
यह उद्यान पक्षियों की 420 प्रजातियों और अफ्रीकी हाथी सहित 50 बड़े स्तनपायी प्रजातियों का बसेरा है। तीव्र ऊंचे ढालों के कारण पर्वतीय वातावरण में जानवरों की प्रजातियों के कई अलग-अलग निवास स्थान भी होते हैं। इस तरह की पर्यावास विविधता व्यापक तौर पर पौधों और जानवरों की प्रजातियों के फलने-फूलने के लिए मददगार साबित होती है। कमजोर पारिस्थितिक तंत्र बर्फ आने वाले अधिकांश सौर विकिरण को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन से बर्फ के पिघलने की दर बढ़ रही है, जिससे पहाड़ों का एक बड़ा हिस्सा सूरज की रोशनी की जद में आ रहा है।
इससे सौर अवशोषण दर बढ़ रही है। अनुसंधान से पता चलता है कि तिब्बती पठार (जिसे अक्सर तीसरा ध्रुव कहा जाता है) 1950 के दशक से औसतन प्रति दशक 0.16 डिग्री सेल्सियस से 0.36 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गया है। वहीं, गर्म होने की यह दशकीय दर 1980 के दशक से बढ़कर 0.5 डिग्री सेल्सियस से 0.67 डिग्री सेल्सियस हो गई है। पहाड़ के वातावरण में गर्मी बढ़ने से बर्फ के पिघलने की घटना और बढ़ेगी और बर्फ का जमाव कम होगा। कम बर्फ के परिणामस्वरूप भविष्य में पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी, जिससे पर्वतीय जलग्रहण क्षेत्र में रहने वाली प्रजातियां बुरी तरह प्रभावित होंगी।
पर्वतों को नजरअंदाज करना यह स्पष्ट होने के बावजूद कि पहाड़ उन पारिस्थितिक तंत्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं जो वहां की जैविक विविधता के लिए अहम हैं, सरकारों और नीति निर्माताओं की ओर से इन वातावरणों के संरक्षण के लिए पर्याप्त गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। पहाड़ के वातावरण की जैव विविधता की रक्षा के लिए वर्तमान में कोई प्रभावी अंतरराष्ट्रीय नीति नहीं है और ऐसी रणनीति बनाने के लिए सरकारों, पर्यावरण सरंक्षण से जुड़ी एजेंसियों और संरक्षणवादियों के बीच तालमेल का अभाव है।
Mountain environments vital to biodiversity but looming threats being ignored
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