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मिर्गी की सटीक पहचान के लिए नया एल्गोरिद्म

मिर्गी की सटीक पहचान के लिए नया एल्गोरिद्म

मिर्गी की सटीक पहचान के लिए नया एल्गोरिद्म

मिर्गी तंत्रिका संबंधी एक रोग है, जिसमें मस्तिष्क अचानक विद्युत संकेतों का उत्सर्जन करता है, जिसके परिणामस्वरूप दौरे पड़ते हैं, और चरम मामलों में मृत्यु तक हो सकती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के सहयोग से भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शोधकर्ताओं ने एक एल्गोरिद्म विकसित किया है, जो मिर्गी की घटनाओं और उसके विभिन्न रूपों की पहचान के लिए मस्तिष्क स्कैन को डिकोड करने में मदद कर सकता है। 
 
मस्तिष्क के अनिश्चित संकेतों की उत्पत्ति के बिंदु के आधार पर, मिर्गी को फोकल या सामान्यीकृत मिर्गी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। जब ये अनियमित संकेत मस्तिष्क में किसी विशिष्ट क्षेत्र तक सीमित होते हैं, तो फोकल मिर्गी होती है। यदि संकेत यादृच्छिक स्थानों पर हैं, तो इसे सामान्यीकृत मिर्गी कहा जाता है। मिर्गी की पहचान के लिए न्यूरोफिज़ियोलॉजिस्ट्स ईईजी (इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम) का मैन्युअल रूप से निरीक्षण करते हैं, जिससे ऐसे संकेतों का पता लगाया जा सके। आईआईएससी के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजीनियरिंग विभाग (डीईएसई) में सहायक प्रोफेसर हार्दिक जे. पंड्या कहते हैं, लंबे समय तक ईईजी का दृश्य निरीक्षण थकाने वाला हो सकता है, और कभी-कभी त्रुटियों का कारण बन सकता है। 

इस अध्ययन में, एक नया एल्गोरिद्म प्रस्तुत किया गया है, जो ईईजी डेटा के माध्यम से कार्य करता है, और विद्युत सिग्नल पैटर्न से मिर्गी की पहचान कर सकता है। उनका कहना है कि इन पैटर्नों के आधार पर किये गए विश्लेषणों में मिर्गी का सटीक रूप से पता लगाने में इस एल्गोरिद्म को प्रभावी पाया गया है। प्रोफेसर पंड्या कहते हैं, "इस अध्ययन का उद्देश्य सामान्य विषयों के ईईजी को मिर्गी के ईईजी से अलग करना है। इसके अतिरिक्त, नया विकसित एल्गोरिद्म मिर्गी के प्रकारों की पहचान कर सकता है। हमारे अध्ययन का एक उद्देश्य न्यूरोलॉजिस्ट्स को कुशल और त्वरित स्वचालित जाँच और निदान में मदद करना है।” यह अध्ययन शोध पत्रिका बायोमेडिकल सिग्नल प्रोसेसिंग ऐंड कंट्रोल में प्रकाशित किया गया है। 

एल्गोरिद्म विकसित करने के लिए एम्स ऋषिकेश से प्राप्त 88 मानव प्रतिभागियों से ईईजी डेटा की जाँच की गई है। प्रत्येक प्रतिभागी नमूने में 45 मिनट का ईईजी परीक्षण किया गया, जिसे दो भागों में विभाजित किया गया था। प्रारंभिक 10 मिनट का परीक्षण प्रतिभागी के जागते हुए किया गया, जिसमें फोटिक सिमुलेशन और हाइपरवेंटिलेशन शामिल था। इसके बाद, प्रतिभागी को 35 मिनट की नींद लेने के लिए कहा गया, और उसी अवधि में परीक्षण किया गया। शोधकर्ताओं ने इस डेटा का विश्लेषण किया, और तरंगों के पैटर्न को शार्प (तीव्र) संकेतों, स्पाइक्स तथा धीमी तरंगों में वर्गीकृत किया। स्पाइक्स ऐसे पैटर्न होते हैं, जहाँ सिग्नल बहुत कम समय (लगभग 70 मिलीसेकंड) के भीतर उभरता और गिरता है, जबकि शार्प संकेत वे होते हैं, जो लंबी अवधि (करीब 250 मिलीसेकंड) में बढ़ते और गिरते हैं, और धीमी तरंगों की बहुत लंबी अवधि (लगभग 400 मिलीसेकंड) होती है।

मिर्गी रोगी में किसी स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में पैटर्न का अलग सेट देखने को मिलता है। शोधकर्ताओं ने शार्प तरंगों की कुल संख्या की गणना के लिए एल्गोरिद्म विकसित किया है, जिसका उपयोग मिर्गी का पता लगाने के लिए एक मानदंड के रूप में किया जा सकता है। उच्च वैल्यू मिर्गी की अधिक संभावना को इंगित करता है। एल्गोरिद्मम फोकल और सामान्यीकृत मिर्गी के बीच अंतर करने के लिए स्पाइक्स और शार्प कर्व्स के अंतर्गत क्षेत्रों के योग की गणना करता है। यहाँ भी बड़ी वैल्यू सामान्यीकृत मिर्गी को इंगित करती है, जबकि कम वैल्यू फोकल मिर्गी को दर्शाती है। 

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आईआईएससी के वक्तव्य में कहा गया है कि यह अध्ययन संचयी स्पाइक-वेव काउंट के उपयोग से आकस्मिक एवं क्षणिक रूप से चेतना के लोप का पता लगाने का मार्ग प्रशस्त करता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे आकस्मिक दौरे घातक हो सकते हैं। उन्होंने उन मिर्गी रोगियों के ईईजी डेटा के नये सेट पर अपना एल्गोरिदम उपयोग किया है, जिनका वर्गीकरण (क्या उन्हें मिर्गी थी, और यदि हाँ, तो उन्हें किस प्रकार की मिर्गी थी) पहले से ही डॉक्टरों को पता था। इस अध्ययन ने लगभग 91% मामलों में रोगी नमूनों को सफलतापूर्वक वर्गीकृत किया। 

डीईएसई में पीएचडी शोधार्थी और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता रथिन के. जोशी कहते हैं, "हमे उम्मीद है कि मानव ईईजी की विविधताओं पर विचार करने के लिए अधिक डेटा पर परीक्षण करके इसे परिष्कृत किया जा सकता है।" 

इस अध्ययन के लिए एक पेटेंट दायर किया गया है और एम्स ऋषिकेश में चिकित्सकों द्वारा इसकी विश्वसनीयता के लिए एल्गोरिद्म का परीक्षण किया जा रहा है। 

(इंडिया साइंस वायर)

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