कैंसरग्रस्त कोशिकाओं तक कीमोथेरेपी दवा पहुँचाने की नई रणनीति
कैंसर उपचार के दौरान रोगी को कीमोथेरेपी की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। मौजूदा कीमोथेरेपी दवाओं के साथ समस्या यह है कि वे कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के साथ-साथ शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को भी मार देती हैं। इस कारण, रोगी के शरीर पर कई अवांछनीय दुष्प्रभाव उभरकर आते हैं। भारतीय शोधकर्ताओं ने कैंसर रोगी के शरीर में, विशेष रूप से कैंसरग्रस्त कोशिकाओं तक कीमोथेरेपी दवाएं पहुँचाने के लिए एक नई रणनीति विकसित की है। उनका कहना है कि नया विकसित दृष्टिकोण कीमोथेरेपी के लिए बेहतर दवा-वाहकों के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिसकी प्रभावकारिता अधिक, और दुष्प्रभाव नगण्य होगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी, और कलकत्ता विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन रॉयल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री सहित केमिकल कम्युनिकेशन्स, और ऑर्गेनिक ऐंड बायोमॉलिक्यूलर केमिस्ट्री में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में, रसायन विज्ञान विभाग, आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर देबासीस मन्ना, और उनके शोध छात्र सुभासीष डे, अंजलि पटेल तथा बिस्वा मोहन प्रुस्टी शामिल हैं। आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर सिद्धार्थ शंकर घोष, और प्लाबोनी सेन तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरिंदम भट्टाचार्य एवं सौम्या चटर्जी के सहयोग से यह कैंसर-रोधी अध्ययन किया गया है।
यह माना जाता है कि कैंसर से होने वाली मौतें उतनी ही कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव के कारण होती हैं, जितनी स्वयं बीमारी से होती हैं। कीमोथेरेपी दवाओं की द्वितीयक विषाक्तता की कमियों को दूर करने के लिए दुनियाभर में शोध किये जा रहे हैं। जिन कुछ रणनीतियों को खोजा जा रहा है, उनमें दवाओं का लक्ष्य-विशिष्ट वितरण, और कैंसर कोशिकाओं/ऊतकों को उचित दवा की खुराक की ऑन-डिमांड डिलीवरी शामिल है।
प्रोफेसर देबासीस मन्ना ने कहा, “कीमोथेरेपी दवाओं के विकास में हमारी दो जरूरतें होती हैं - दवा को कैंसर कोशिकाओं पर लक्षित होना चाहिए, और जब आवश्यकता हो, दवा को बाहरी ट्रिगर द्वारा जारी किया जाना चाहिए।"
इस अध्ययन के शोधकर्ताओं के विकसित अणुओं में इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चार प्रमुख गुण शामिल हैं। एक गुण यह है कि ये अणु पानी में गोलाकार खोल के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जिनका उपयोग रोगग्रस्त कोशिकाओं तक दवा अणु पहुँचाने के लिए छोटे कंटेनर के रूप में हो सकता है। दूसरी विशेषता यह है कि इन अणुओं में एसिटाज़ोलमाइड लिगैंड होता है, जो सामान्य कोशिकाओं से न बंधकर; विशेष रूप से कैंसर कोशिकाओं से ही बंधता है। तीसरी विशेषता इसमें फोटोक्लीवेबल लिंकर की मात्रा का होना है, जो अवरक्त प्रकाश (आईआर) के प्रति प्रतिक्रियाशील होती है, और इसके संपर्क में आने पर खोल को तोड़ देती है। इस अणु में एक डाई की मात्रा (सायनिन -3) भी होती है, जो पूरी प्रक्रिया में निगरानी के लिए फ्लोरोसेंट और स्कैटरिंग-आधारित इमेजिंग के लिए उपयोगी है।
इस प्रकार, विकसित अणु दवा को पकड़ने के लिए कैप्सूल के रूप में स्वयं एकत्रित होते हैं, जो केवल कैंसर कोशिकाओं से जुड़ते हैं। जब उस पर अवरक्त प्रकाश चमकता है, तो खोल टूट जाता है, और कैप्सूलीकृत दवा को कैंसरग्रस्त कोशिका में छोड़ देता है। लक्षित आईआर (लाइट) -ट्रिगर ड्रग रिलीज सिस्टम के विकास के बाद शोधकर्ता इस जानकारी को दवा-विकास की अवस्था तक ले जाने के लिए जैविक अध्ययन की तैयारी कर रहे हैं।
(इंडिया साइंस वायर)
New strategy to deliver chemotherapy drugs to cancerous cells