Gujarat चुनाव परिणाम से प्रो इंकम्बेंसी के नए ट्रेंड की शुरुआत, 27 आदिवासी बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में क्लीन स्वीप के क्या हैं मायने?
गुजरात में 27 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भाजपा की अविश्वसनीय रूप से जोरदार जीत एक बात को बहुत स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है कि लोग अब पार्टी के प्रति सकारात्मक रूप से अभ्यस्त हो गए हैं। पीएम मोदी के अविश्वसनीय कार्य नैतिकता और उनके आश्वस्त व्यक्तित्व ने विपक्षियों के सामने ऐसी लकीर खींच दी है जिसके सामने सारे के सारे बौने नजर आने लगे हैं। 54 फीसदी वोट-शेयर के साथ कुल सीटों में से 86 फीसदी पर प्रचंड जीत और सभी आदिवासी सीटों पर सीधा क्लीन स्वीप जिसे किसी जमाने में बीजेपी का कमजोर आदार माना जाता था। ये बताने के लिए काफी है कि पार्टी अपने स्वर्णकाल में है वहीं कांग्रेस की तुलना में अधिक मजबूत है। इसके अलावा, इस चुनाव परिणाम ने एक नए गुजरात मॉडल की शुरुआत की है।
कांटो के बीच से जीत का फूल निकालकर पिरोई गई मालाएं यूं ही नरेंद्र मोदी के गले का हार नहीं बनती। सबूत ये कि विजय का भगवा लहराने के कुछ घंटों में ही पार्टी मुख्यालय में पहुंच कर स्वागत के पुष्पों के बीच लोगों का अभिवादन करते दिखे। यहाँ से, कम से कम एक दशक या उससे अधिक समय तक भारतीय राजनीति में सत्ता विरोधी लहर का कोई कारक नहीं रहेगा। इसके बजाय, यह सत्ता-समर्थक और निरंतरता होगी जो लोगों के फैसले को प्रभावित करेगी। इसलिए, 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर की उम्मीद करना अवास्तविक नहीं होगा, जो 350-400 सीटों में बदल जाएगा।
प्रो इंकम्बेंसी
इन नतीजों में जो सबसे प्रमुख चीजें देखने को मिली वो है प्रो इंकम्बेंसी वेब। अब तक चुनावों में तमाम न्यूज चैनल पर बड़े-बड़े एक्सपर्ट एंटी इंकम्बेंसी वेब यानी सरकार विरोधी लहर की बात करते थे। होता भी यही था इससे पहले एक दशक पहले तक जब चुनाव लड़े जाते थे तो सत्तारूढ़ पार्टी को नुकसान ही होता था। इसकी वजह थी कि जनता उन पांच सालों में उस पार्टी से परेशान हो चुकी होती थी। उनसे ऊब चुकी होती थी। इसी को एंटी इंकम्बेंसी वेब कहा जाता है यानी सत्ताविरोधी लहर। लेकिन उसी सरकार या पार्टी को लेकर लोगों में और ज्यादा ऊर्जा आ जाए तो उसे प्रो इंकम्बेंसी वेब कहते हैं। गुजरात के नतीजों ने बता दिया कि प्रो इंकम्बेंसी वेब भी एक बहुत बड़ी लहर हो सकती है। जिसकी वजह से गुजरात में इतनी बड़ी जीत हासिल हुई।
27 आदिवासी बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में क्लीन स्वीप के प्रमुख कारक क्या है?
एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण कारक है पार्टी की समाज के नए वर्गों तक निर्बाध रूप से, सहजता से और हर समय पहुंचने की क्षमता। इस संदर्भ में, पिछले तीन वर्षों में पीएम मोदी के पब्लिक आउटरीच के ठोस परिणाम सामने आए हैं। गुजरात के 27 आदिवासी बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में क्लीन स्वीप जो कभी पारंपरिक रूप से कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी सारी कहानी खुद बयां करने के लिए काफी है। गुजरात में नल से जल योजना द्वारा कवर किए गए 100 प्रतिशत घरों के साथ, यह स्पष्ट है कि यहां सबसे महत्वपूर्ण लाभार्थी गरीब आदिवासी परिवार रहे हैं। उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत पहल, और आकांक्षी जिला कार्यक्रम सभी ने पिछड़े क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से सुधार देखा है। इस स्थिति में, राहुल गांधी की 'आदिवासी' और 'वनवासी' के बीच अंतर करने की कोशिश आदिवासी मतदाताओं को रास नहीं आ रही है।
New trend of pro incumbency started with gujarat election result