Yes, Milord! इस बार कोई वेकेशन बेंच नहीं, भ्रष्ट लोकसेवकों को सीधा सबूत न होने पर भी सजा, वक़्फ़ ट्रिब्यूनल को नहीं विवाद की सुनवाई का हक
सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक इस सप्ताह यानी 12 दिसंबर से 16 दिसंबर 2022 तक क्या कुछ हुआ। कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे।
शीतकालीन अवकाश के दौरान नहीं होगी कोई वेकेशन बेंच
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने 16 दिसंबर को कहा कि शीतकालीन अवकाश के दौरान यानी 17 दिसंबर से एक जनवरी तक उच्चतम न्यायालय की कोई पीठ उपलब्ध नहीं होगी। केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रीजीजू ने 15 दिसंबर को राज्य सभा में कहा था कि लोगों को लगता है कि अदालत की लंबी छुट्टियां फरियादियों के लिए सुविधाजनक नहीं है। रीजीजू के इस बयान के मद्देनजर प्रधान न्यायाधीश की यह घोषणा महत्वपूर्ण है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अदालत कक्ष में मौजूदा वकीलों से कहा, ‘‘कल से एक जनवरी तक कोई पीठ उपलब्ध नहीं होगी।’’ शीर्ष अदालत का 16 दिसंबर से दो सप्ताह का शीतकालीन अवकाश आरंभ हो जाएगा। इसके बाद न्यायालय का कामकाज दो जनवरी को आरंभ होगा। अदालत की छुट्टियों संबंधी मामला पहले भी उठाया गया था, लेकिन पूर्व प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण समेत न्यायाधीशों ने कहा था कि लोगों को यह गलतफहमी है कि न्यायाधीशों का जीवन बहुत आरामदायक होता है और वे अपनी छुट्टियों का आनंद उठाते हैं। न्यायमूर्ति रमण ने रांची में ‘न्यायमूर्ति सत्यब्रत सिन्हा स्मारक व्याख्यान माला’ के उद्घाटन भाषण में जुलाई में कहा था कि न्यायाशीध रात भर जागकर अपने फैसलों के बारे में सोचते रहते हैं। उन्होंने कहा था, ‘‘लोगों के मन में यह गलत धारणा है कि न्यायाधीशों की जिंदगी बहुत आराम की होती है, वे सुबह 10 बजे से केवल शाम चार बजे तक काम करते हैं और छुट्टियों का आनंद उठाते हैं, लेकिन यह विमर्श असत्य है...।‘‘ उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की जिम्मेदारी बहुत ही बड़ी होती है क्योंकि उनके फैसलों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जयंत नाथ ने पिछले साल नवंबर में कहा था कि लोगों की यह धारणा गलत है कि अदालतें स्कूल की तरह छुट्टियां मनाती हैं।
भ्रष्टाचार का सीधा सबूत न होने पर भी लोकसेवकों को हो सकती है सजा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकसेवकों को भ्रष्टाचार के केस में कोई सीधा मौखिक या दस्तावेजी सबूत न होने की सूरत में परिस्थिति के आधार पर मौजूद साक्ष्यों के तहत भी सजा दी जा सकती है। जस्टिस एस. ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि शिकायत करने वालों को भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ केस दर्ज कराने और उन्हें सजा दिलाने की ईमानदार कोशिश करनी चाहिए। ताकि गवर्नेस भ्रष्टाचार मुक्त हो। बेंच ने कहा कि अगर शिकायतकर्ता बयान से मुकर जाता है या सबूत पेश नहीं कर पाता तो किसी दूसरे गवाह के मौखिक या दस्तावेजी सबूत को स्वीकार कर अपराध साबित कर सकते हैं।
हिन्दू मुस्लिम के बीच विवाद की सुनवाई के हक वक़्फ़ ट्रिब्यूनल को नहीं
वाराणसी के ज्ञानवापी स्थित शृंगार गौरी की पूजा की अनुमति के खिलाफ याचिका की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने कहा कि वक्फ ऐक्ट में मुस्लिमों के बीच विवाद की सुनवाई हो सकती है। हिंदू- मुस्लिम के बीच विवाद की सुनवाई का अधिकार वक्फ अधिकरण को नहीं है। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमिटी की याचिका की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति जेजे मुनीर कर रहे हैं। हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने काशी विश्वनाथ मंदिर कानून के हवाले से कहा कि पूरा ज्ञानवापी परिसर विश्वनाथ मंदिर क्षेत्र है। दीन मोहम्मद केस में केवल गुंबदों के नीचे नमाज पढ़ने की इजाजत दी गई है। मालिकाना हक नहीं दिया गया है। शृंगार गौरी की आजादी से पहले से पूजा होती आ रही है, इसलिए पूजा नहीं रोकी जा सकती। जिलाधिकारी वाराणसी द्वारा विवाद के दौरान पूजा रोकना संवैधानिक अधिकारों का उल्लघन है। अधीनस्थ अदालत ने विपक्षी वादियों के पूजा के अधिकार के मुकद्दमे की पोषणीयता पर मुस्लिम पक्ष की आपत्ति निरस्त कर सही किया है। याचिका खारिज होने योग्य है। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन व विष्णु जैन की बहस जारी है। इनका कहना है कि जिला प्रशासन ने 1993 में आजादी से पहले से चली आ रही श्रृंगार गौरी की पूजा रोक दी। कानून में पूजा का अधिकार सिविल अधिकार है। जिसकी सुनवाई करने का सिविल कोर्ट को अधिकार है। हिंदू विधि के अनुसार मंदिर ध्वस्त होने के बाद भी जमीन का स्वामित्व मूर्ति में निहित रहता है। मूर्ति एक विधिक व्यक्ति हैं। जिसे अपने अधिकार की रक्षा के लिए वाद दायर करने का अधिकार है।
खीरी केसा का ट्रायल कब तक पूरा होगा
सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबरको उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे व लखीमपुर हिंसा के आरोपी आशीष मिश्रा को कब तक हिरासत में रखा जा सकता है? न्यायालय ने सत्र अदालत के न्यायाधीश से लखीमपुर खीरी में अक्टूबर 2021 में प्रदर्शनकारी किसानों को कुचलने के मामले में कथित हत्या और संबंधित अपराधों के मुकदमे की सुनवाई पूरी करने के लिए संभावित समय-सारिणी स्पष्ट करने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका का विरोध करते हुए अपराध को “गंभीर” करार देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार से यह भी कहा कि वह एसयूवी (स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल) में सवार तीन लोगों की हत्या के सिलसिले में दायर दूसरे मामले में स्थिति को लेकर एक हलफनामा दायर करे। इसी एसयूवी से कथित तौर पर किसानों को कुचल दिया गया था। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि आरोपी, पीड़ितों और समाज सहित सभी पक्षों के हितों में संतुलन साधने की जरूरत है। पीठ ने कहा कि यह एक अच्छा कदम है और मुकदमे के दौरान कोई संवेदनशील गवाह सामने आता है, तो राज्य को उसको भी सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। इसके साथ ही पीठ ने मामले में सुनवाई की अगली तारीख 11 जनवरी तय की।
बिलकिस बानो केस में SC ने जल्द पीठ गठित करने से किया इनकार
2002 के गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप और उसके परिवार की हत्या करने के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 लोगों की जल्द रिहाई को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एक नई बेंच गठित करने के अनुरोध पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। बिल्किस बानो के वकील ने भारत के मुख्य न्यायाधीश, डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा के समक्ष अनुरोध किया था, इस मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों में से एक न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी के बाहर निकलने के बाद उन्हें एक नई पीठ स्थापित करने पर विचार करने के लिए कहा था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "याचिका को सूचीबद्ध किया जाएगा। कृपया बार-बार एक ही बात का उल्लेख न करें। यह बहुत परेशान करने वाला है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बलात्कार और हत्या के अपराध में दोषी ठहराए गए 11 लोगों की जल्द रिहाई को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
No vacation bench of sc corrupt public servants without direct evidence punished