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अगला दशक ही नहीं बल्कि अगली पूरी सदी ही भारत की होगी

अगला दशक ही नहीं बल्कि अगली पूरी सदी ही भारत की होगी

अगला दशक ही नहीं बल्कि अगली पूरी सदी ही भारत की होगी

अभी हाल ही में अमेरिका के निवेश के सम्बंध में सलाह देने वाले एक प्रतिष्ठित संस्थान मोर्गन स्टैनली ने अपने एक अनुसंधान प्रतिवेदन में यह बताया है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक भारत का होने जा रहा है। इस सम्बंध में उक्त प्रतिवेदन में कई कारण गिनाए गए हैं। भारत में केंद्र सरकार ने विनिर्माण के क्षेत्र में बड़े आकार की कई नई इकाईयों को स्थापित करने के उद्देश्य से हाल ही के समय में कई निर्णय लिए हैं, जिनका उचित परिणाम अब दिखाई देने लगा है। इनमें शामिल हैं, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना, कम्पनियों द्वारा अदा की जाने वाली कर की राशि को 25 प्रतिशत तक कम करना और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना तथा ईज आफ डूइंग बिजिनेस के क्षेत्र में कई निर्णय लेना आदि। इसके चलते चीन से विनिर्माण के क्षेत्र में कई इकाईयां भारत में अपना कार्य प्रारम्भ करने जा रही हैं। भारत में वर्तमान में चीन की तुलना में श्रम लागत भी बहुत कम है। 
 
कोरोना महामारी के दौरान सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों के कामकाज में एक विशेष परिवर्तन दिखाई दिया था। इन संस्थानों ने अपने कर्मचारियों को कार्यालय में न आकर, अपने घर से कार्य करने की छूट प्रदान की थी। यह परिवर्तन भारत के हित में कार्य करता दिख रहा है क्योंकि कर्मचारी यदि कार्यालय के स्थान से घर में ही कार्य कर सकता है तो उसे सिलिकोन वैली (कैलिफोर्निया) में रहने की क्या जरूरत, वह तो मुंबई, बैंगलोर, हैदराबाद, चेन्नई, दिल्ली एवं पुणे में रहकर भी अपना कार्य बहुत आसानी से कर सकता है। इससे कम्पनी को बहुत बचत हो सकती है क्योंकि अमेरिका में वेतन का स्तर भारत की तुलना में बहुत अधिक रहता है। इस प्रकार, बहुत बड़े स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियां अपने कार्य को मुंबई में निवास कर रहे भारतीय इंजीनियरों से करवाने पर गम्भीरता से विचार कर रही हैं। बल्कि कुछ कम्पनियों ने तो तकनीकी कार्य को भारत में आउट्सॉर्स करना शुरू भी कर दिया है। इससे भारत में तकनीकी कार्य के क्षेत्र में रोजगार के बहुत अधिक अवसर निर्मित होने की प्रबल संभावनाएं बन रही हैं। इससे भारत में अधिक आय वाले परिवारों की संख्या में भारी वृद्धि दृष्टिगोचर होगी। भारत में वर्तमान में 50 लाख परिवारों की आय 35000 अमेरिकी डॉलर से अधिक है। आगे आने वाले 10 वर्षों में यह संख्या 5 गुना बढ़कर 250 लाख परिवार होने जा रही है। इससे भारत में विभिन्न वस्तुओं का उपभोग द्रुत गति से बढ़ने जा रहा है। वर्ष 2022 की दीपावली के दौरान भारत में विभिन्न कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों की हुई बिक्री, इस दृष्टि से सबसे स्पष्ट उदाहरण बताया जा रहा है। वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति आय 2278 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है जो 10 वर्षों के दौरान दुगनी से भी अधिक होकर 5242 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष हो जाएगी।

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भारत में शीघ्र ही विनिर्माण क्षेत्र एवं पूंजीगत क्षेत्र में निवेश बहुत भारी मात्रा में बढ़ने जा रहा है। यह न केवल केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं विभिन्न सरकारी संस्थानों के माध्यम से होगा बल्कि निजी क्षेत्र एवं विदेशी निवेशकों द्वारा का भी इसमें भारी योगदान होगा। वर्तमान में, भारत में स्थापित विनिर्माण इकाईयों द्वारा उनकी उत्पादन क्षमता का 75 प्रतिशत के आसपास उपयोग किया जा रहा है। इस क्षमता के उपयोग होने के बाद सामान्यतः नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना प्रारम्भ हो जाती हैं। विनिर्माण इकाईयों की स्थापना, ऊर्जा की खपत में क्रांतिकारी सुधार, डिजिटल क्रांति एवं आधारभूत संरचना के क्षेत्र में अत्यधिक निवेश से भारत में विकास को रफ्तार मिलेगी।    
 
अभी तक चीन पूरे विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र बन गया था और अमेरिका उत्पादों के उपभोग का मुख्य केंद्र बन गया था। परंतु, आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान स्थिति बदलने वाली है। भारत चीन से भी आगे निकलकर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहा है, जिससे भारत में उत्पादों का उपभोग तेजी से बढ़ेगा। अतः भारत न केवल उत्पादों के उपभोग का प्रमुख केंद्र बन जाएगा बल्कि विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र भी बन जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत पूर्व में ही वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है।   
 
भारत में वर्तमान में ऋण व सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 57 प्रतिशत है। जबकि चीन में 225 प्रतिशत एवं अमेरिका में 200 प्रतिशत है। भारत में बैंकों द्वारा प्रतिभूति आधारित ऋण प्रदान किए जाते हैं अतः जिनके पास प्रतिभूति का अभाव होता है, उन्हें बैंकों से ऋण लेने में परेशानी आती है, हालांकि केंद्र सरकार ने इस प्रकार के ऋणों पर अब अपनी गारंटी देना प्रारम्भ किया है परंतु फिर भी बैंकों से ऋणों का उठाव तुलनात्मक रूप से कम ही है। अब आने वाले समय में शीघ्र ही भारतीय बैंकों द्वारा रोकड़ प्रवाह आधारित ऋण प्रदान किए जाएंगे जिससे ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में तीव्र वृद्धि दृष्टिगोचर होगी। इस अनुपात में सुधार से न केवल उत्पादों की मांग में वृद्धि होगी बल्कि बैंकों के तुलन पत्र का आकार भी बढ़ेगा। 
 
वर्तमान के सेवा क्षेत्र के निर्यात में वैश्विक स्तर पर भारत की हिस्सेदारी 3.7 प्रतिशत से बढ़कर 4.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वहीं विनिर्माण क्षेत्र में यह 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 1.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वर्ष 2021-2030 के दौरान पूरे विश्व में बिकने वाली कुल कारों में से 25 प्रतिशत कारें भारत में निर्मित कारें होंगी। साथ ही, 2030 तक यात्री वाहनों की बिक्री में 30 प्रतिशत हिस्सा विद्युत चलित वाहनों का होगा, जिनका निर्माण भी भारत में अधिक होगा। इस प्रकार, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों द्वारा किए जा रहे उत्पादों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 4.5 प्रतिशत पहुंचने की प्रबल सम्भावना है।

वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 900 वाट ऊर्जा का उपयोग होता है जबकि यह आगे आने वाले समय में बढ़कर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 1450 वाट ऊर्जा होने जा रहा है, क्योंकि भारत में 6 लाख से अधिक गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है। हालांकि, फिर भी यह अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 9000 वाट ऊर्जा से बहुत कम ही रहने वाला है। परंतु, इसमें एक सिल्वर लाइनिंग जो दिखाई दे रही है वह यह है कि भारत में ऊर्जा के उपयोग में होने वाली वृद्धि का 70 प्रतिशत से अधिक भाग नवीकरण ऊर्जा के क्षेत्र से प्राप्त होने वाला है। अतः नवीकरण ऊर्जा के क्षेत्र में भारत में निवेश बहुत बड़ी मात्रा में होने जा रहा है, इसमें विदेशी निवेश भी शामिल है। इस कारण से भारत में जीवाश्म ऊर्जा की मांग कम होगी और कच्चे तेल (डीजल, पेट्रोल) की मांग भी कम होगी। इससे पर्यावरण में भी सुधार दृष्टिगोचर होगा। इसके साथ ही, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच जो वर्तमान में 30-40 प्रतिशत जनसंख्या तक ही सीमित है, वह आगे आने वाले समय में बढ़कर 60-70 प्रतिशत जनसंख्या तक हो जाएगी।

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उक्त वर्णित कारणों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान स्तर 3.50 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2031 तक 7.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा और इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। इसी प्रकार, भारत का पूंजी बाजार भी अपने वर्तमान स्तर 3.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर पर 11 प्रतिशत की, चक्रवृद्धि की दर से, वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए अगले 10 वर्षों में 10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा। भारत में घरेलू मांग के लगातार मजबूत होने से एवं भारत में डिजिटल क्रांति के कारण भारतीय नागरिकों की आय में बहुत अधिक वृद्धि होने की सम्भावना के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास का पांचवां हिस्सा भारत से निकलेगा, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

प्रायः यह देखा गया है कि किसी भी देश में विकास चक्र, प्रारम्भ होने के बाद, लगभग 70-80 वर्षों तक लगातार चलता है, हालांकि, इस खंडकाल में अर्थव्यवस्था में कुछ समस्याएं बीच के समय में आती रहती हैं। इस प्रकार, भारतीय अर्थव्यवस्था भी अब विकास चक्र के दौर में प्रवेश कर गई है, इस दृष्टि से यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि “आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक ही नहीं बल्कि अगली पूरी सदी ही भारत की होगी”। 
 
भारत को विदेशी आक्रांताओं एवं अंग्रेजी शासकों द्वारा पिछले 1000 वर्षों तक लगातार लूटा गया है। अब समय आ गया है कि भारत से लूटी गई सम्पत्ति को व्यापार के माध्यम से भारत में हस्तांतरित किया जाए। अतः भारत से लूटी गई सम्पत्ति के पुनः भारत में लौटने का समय अब आ गया है। 
 
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक

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