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विेदेशी बाजारों में गिरावट से तेल-तिलहनों के भाव टूटे, बिनौला में सुधार

विेदेशी बाजारों में गिरावट से तेल-तिलहनों के भाव टूटे, बिनौला में सुधार

विेदेशी बाजारों में गिरावट से तेल-तिलहनों के भाव टूटे, बिनौला में सुधार

विदेशी बाजारों में गिरावट के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बृहस्पतिवार को तेल-तिलहनों के भाव कमजोर हो गये। दूसरी ओर मंडियों में बिनौला की आवक कम होने और नमकीन बनाने वाली कंपनियों की मांग की वजह से बिनौला तेल कीमतें सुधार दर्शाती बंद हुईं। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में 1.5 प्रतिशत की गिरावट रही। जबकि शिकॉगो एक्सचेंज फिलहाल एक प्रतिशत नीचे है। सूत्रों ने कहा कि वायदा कारोबार में बिनौला तेल खली के जनवरी, 2023 माह में डिलिवरी वाले अनुबंध का भाव 3.5 प्रतिशत बढ़ा है जिससे देश में करोडों की संख्या में मौजूद मवेशियों के आहार महंगे होंगे।

यह स्थिति देश के मवेशी पालन और दुग्ध उत्पादक किसानों के लिए अच्छा संकेत नहीं है जो सालाना लगभग 13.3 करोड़ टन दूध का उत्पादन करते हैं। देश में बड़ी संख्या में किसान, निजी उपयोग और अतिरिक्त लाभ पाने के लिए, खेती के साथ साथ मवेशी पालन करते हैं। इससे दूध और दुग्ध उत्पादन प्रभावित हो सकता है क्योंकि मवेशियों के आहार में प्रयोग होने वाले खल में लगभग 80 प्रतिशत का योगदान बिनौला खल का ही होता है। सूत्रों ने कहा कि सरकार ने जिस तरह तेल-तिलहनों के वायदा कारोबार पर रोक की समयसीमा को बढ़ाया है उसके दायरे में बिनौला तेल खली को भी लाना चाहिये। सूत्रों ने दावा किया कि कई बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मलेशिया और अन्य स्थानों पर तेल प्रसंस्करण संयंत्र हैं।

वायदा कारोबार प्रतिबंधित किये जाने के पहले जब आयातक सोयाबीन, सीपीओ का आयात करती थे तो ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां, आयातकों को जिस भाव से तेल बिक्री करती थी उस खेप के देश में पहुंचने तक वायदा कारोबार में सट्टेबाजों की सहायता से दाम नीचे चलवा दिए जाते थे। बैंकों में अपनी साख चलाते रहने के लिए आयातकों को नीचे वायदा भाव के हिसाब से मजबूरन अपना माल बेचना पड़ जाता था और बेचने वाली कंपनी ही यहां आयातकों से कांडला बंदरगाह पर तेल खरीद लेती थी, जिसे रिफाइंड करके बाजार में बेच दिया जाता था।

सूत्रों ने कहा कि ऐसी बड़ी कंपनियों का मकसद देश के तेल-तिलहन कारोबार पर कब्जा जमाना प्रतीत होता है। इसी वजह से कई आयातकों का बैंक कर्ज डूबा है और बैंकों ने उन्हें नकारात्मक सूची में डाल दिया है। देश को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने के लिए वायदा कारोबार पर रोक रखना इस कारण से काफी अहम है। इंदौर स्थित तेल संगठन ‘सोपा’ के अध्यक्ष दाविश जैन ने भी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा तेल- तिलहन के वायदा कारोबार पर अगले एक साल के लिए प्रतिबंध बढ़ाने के फैसले का स्वागत किया है और इसे तेल उद्योग, किसान और उपभोक्ता के हित में बताया है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार के शुल्कमुक्त आयात की छूट अगर केवल उन प्रसंस्करण करने वाली तेल मिलों को दी जाये जो बदले में सोयाबीन के डीआयल्ड केक (डीओसी) का निर्यात करें तो सरकार की तेल कीमतों में कमी लाने की कोशिश को कामयाबी मिलेगी। तेल-तिलहनों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध बढ़ाये जाने का स्वागत करते हुए सूत्रों ने कहा कि जिस देश में खाद्य तेलों की लगभग 60 प्रतिशत की कमी हो, वहां वायदा कारोबार में भाव लगभग छह रुपये किलो नीचे हो, यह सट्टेबाजी और निहित स्वार्थ के बगैर कैसे संभव हो सकता है? इस पर गौर करने की जरूरत है कि कौन लोग तेल तिलहन कारोबार पर दबदबा कायम करना चाहते हैं।

बृहस्पतिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन - 7,040-7,090 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली - 6,485-6,545 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,250 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,445-2,710 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 14,150 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 2,140-2,270 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 2,200-2,325 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,750 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,500 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 11,750 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,550 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,100 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,200 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन 2एक्स- कांडला- 9,250 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,625-5,725 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज- 5,435-5,485 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

Oil and oilseeds prices fall due to fall in foreign markets improvement in cottonseed

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