विदेशी बाजार में कमजोर रुख के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सोमवार को सरसों, मूंगफली तेल तिलहन, सोयाबीन तेल, बिनौला, कच्चे पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट आई। दूसरी ओर डीआयल्ड केक (डीओसी) की मांग होने से सोयाबीन तिलहन के दाम अपरिवर्तित बने रहे। कारोबारी सूत्रों ने कहा कि तेल उद्योग के प्रमुख संगठन, साल्वेंट एक्स्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने भी माना है कि तेल वर्ष 2021-22 के दौरान देश में हल्के तेल का आयात इस वर्ष, पहले के 48.12 लाख टन से, बढ़कर 61.15 लाख टन हो गया है।
एसईए ने सोमवार को जारी बयान में कहा कि हल्के तेलों में, सोयाबीन तेल का आयात इस साल तेजी से बढ़कर 41.71 लाख टन हो गया, जो वर्ष 2020-21 में 28.66 लाख टन था। इसी तरह, सूरजमुखी तेल का आयात इस साल मामूली बढ़कर 19.44 लाख टन हो गया, जो पिछले साल 18.94 लाख टन था। सूत्रों ने कहा कि खाद्यतेलों के दाम में बीते दिन के मुकाबले तुलना की जाती है लेकिन कीमतों का जो आम रुख है उसे तेज बोला जाना चाहिये। जैसे कि एसईए ने आंकड़ों में बताया है कि हल्के तेलों के आयात बढ़े हैं और इसके अलावा सोयाबीन, मूंगफली, सरसोंजैसे हल्के तेलों का स्थानीय उत्पादन भी हुआहै फिर खाद्य तेलों में महंगाई क्यों है?
एसईए की ओर से सरकार को इस तथ्य के बारे में भी बताना चाहिये कि सरकार के कोटा प्रणाली की वजह से उत्पान्न कम आपूर्ति से आज यह स्थिति बनी है कि आयात अधिक होने के बावजूद थोक में सोयाबीन डीगम तेल उपभोक्ताओं को 10-12 रुपये किलो तथा सूरजमुखी तेल 20-25 रुपये किलो महंगा मिल रहा है। सूत्रों ने कहा कि ‘कोटा व्यवस्था’ की वजह से आयातकों ने आयात शुल्क भुगतान कर महंगे दाम पर अतिरिक्त तेल का आयात ठप्प कर दिया जिसकी वजह से बाजार में कम आपूर्ति की स्थिति बनी है और अधिक आयात होने के बावजूद आयातित सोयाबीन डीगम और सूरजमुखी तेल उपभोक्ताओं को भारी प्रीमियम अदा कर खरीदना पड़ रहा है।
जबकि पामोलीन तेल सस्ता होने और इसका आयात बढ़ने के बाद भी मांग होने के बावजूद यह तेल भाव के भाव बना हुआ है। एसईए को सरकार को ‘कोटा व्यवस्था’ को तत्काल समाप्त करने का सुझाव देना चाहिये था। कोटा व्यवस्था के कारण खाद्यतेल कीमतों के सस्ता करने की मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है। सूत्रों ने बताया कि मलेशिया एक्सचेंज में 4.5 प्रतिशत की गिरावट है जबकि खबर लिखे जाने तक शिकागो एक्सचेंज में एक प्रतिशत की गिरावट है।
उन्होंने कहा कि अनिश्चित बाजार और विदेशों की मनमानी के जाल से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता खाद्यतेल मामलों में आत्मनिर्भरता हासिल करना ही हो सकता है जिसके लिए सरकार को किसानों को प्रोत्साहन एवं लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कर तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा। इसके लिए जरूरी यह भी है कि खाद्यतेलों का वायदा कारोबार न खोला जाए। इससे केवल सट्टेबाजी को बल मिलेगा। सूत्रों ने कहा कि वर्ष 1991-92 में खाद्यतेलों का वायदा कारोबार नहीं होने पर भी खाद्यतेल मामले में देश लगभग आत्मनिर्भर था।
इसके साथ ही तिलहनों के डी-आयल्ड केक (डीओसी) और तिलहन का निर्यात करके देश पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भी कमाता था। लेकिन आज देश की खाद्यतेल मामले में विदेशों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है और भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च भी करना पड़ रहा है। सोमवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 7,450-7,500 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली - 6,785-6,845 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,500 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,505-2,765 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 15,300 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 2,325-2,455 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 2,385-2,510 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 15,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 14,700 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 13,450 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 9,000 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 13,250 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,600 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,600 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,800-5,900 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज 5,610-5,660 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का) 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।
Oil oilseeds prices fall due to weak trend in foreign markets
Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero