अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के बीच वर्ष 2022 में देश में पेट्रोलियम सब्सिडी की परोक्ष वापसी का रास्ता तैयार होने के साथ सुधारों को झटका लगा। हालांकि रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीद की रणनीति अपनाकर भारत बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत करने में सफल रहा। अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतें पिछले दो वर्षों में बहुत अस्थिर रही हैं। वर्ष 2020 की शुरुआत में कोविड-19 महामारी का प्रकोप शुरू होते ही कीमतों में भारी गिरावट आई थी। लेकिन वर्ष 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर रूस के हमला करने के साथ ही तेल कीमतें चढ़नी शुरू हो गईं।
हालत यह हो गई कि तेल के दाम 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए जो कि 14 वर्षों का उच्च स्तर था। हालांकि कुछ महीने बाद ही प्रमुख आयातक चीन से मांग कम होने और आर्थिक मंदी की आशंका गहराने के साथ तेल की कीमतें गिरने लगीं। इस उतार-चढ़ाव के बीच अपने तेल जरूरतों का 85 फीसदी आयात से पूरा करने वाले देश के रूप में भारत को इसका खमियाजा मुद्रास्फीति बढ़ने के रूप में चुकाना पड़ा। इसके दुष्प्रभाव ने महामारी के झटके से उबर रही अर्थव्यवस्था की रफ्तार को भी धीमा किया। हालात पर काबू पाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों- आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल ने एक लंबी अवधि तक पेट्रोल एवं डीजल के खुदरा दामों में बढ़ोतरी नहीं की।
पेट्रोल एवं डीजल की ऊंची कीमतों को देखते हुए नवंबर 2021 में दैनिक आधार पर होने वाली कीमत समीक्षा को बंद कर दिया गया था और यह सिलसिला मार्च 2022 के मध्य तक चला। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से तेल कीमतों में आई तेजी के चलते पेट्रोल और डीजल दोनों की ही कीमतों में बढ़ोतरी शुरू हो गई और जल्द ही इनके दाम 10 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ गए। हालांकि छह अप्रैल से कीमतों में दैनिक बदलाव का सिलसिला थम गया और यह अभी तक कायम है।
इस दौरान सरकार ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क में महामारी के दौरान की गई बढ़ोतरी को वापस ले लिया। इन कदमों से उपभोक्ताओं को राहत मिली लेकिन तेल कारोबार से जुड़ी सार्वजनिक कंपनियों को तगड़ा झटका लगा। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इन कंपनियों का साझा नुकसान 21,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इसके साथ ही तेल सुधारों को भी झटका पहुंचा। ऐसी स्थिति में निजी तेल विक्रेताओं ने संभावित नुकसान से बचने के लिए अपने पेट्रोल पंपों पर नो स्टॉक के बोर्ड टांग दिए। इन निजी तेल वितरकों की बाजार में हिस्सेदारी करीब 10 प्रतिशत है।
फिर सरकार ने दखल देते हुए उन्हें न्यूनतम आपूर्ति बनाए रखने का निर्देश दिया। सरकार ने जुलाई से घरेलू स्तर पर कच्चे तेल के उत्पादन और पेट्रोल, डीजल एवं विमानन ईंधन के निर्यात पर अप्रत्याशित लाभ कर भी लगा दिया। इस कदम से सरकार विदेशी आपूर्ति पर रोक लगाने के साथ ही घरेलू उपलब्धता बढ़ाना चाह रही थी। लेकिन इससे निवेशकों के बीच राजकोषीय अनिश्चितता पैदा हुई। सार्वजनिक पेट्रोलियम कंपनियों को हुए नुकसान की भरपाई करने की पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने घोषणा की।
सरकार पहले ही एलपीजी कीमतों को दो साल तक स्थिर रखने से इन कंपनियों को हुए नुकसान पर 22,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी राशि स्वीकृत कर चुकी है। आने वाले बजट में पेट्रोल-डीजल पर हुए नुकसान के लिए भी ऐसी ही सब्सिडी घोषित की जा सकती है। पुरी ने रूस से तेल आयात पर पश्चिमी देशों के किसी भी दबाव को नकार दिया। तमाम दबावों के बावजूद भारत ने रूस से अपना तेल आयात बढ़ाया है। प्रतिबंधों की वजह से रूसी तेल के सस्ते दाम पर उपलब्ध होने से भारत ने इसके आयात से 35,000-40,000 करोड़ रुपये तक की बचत की है।
वर्ष 2022 में पेट्रोल-डीजल के अलावा सीएनजी और पाइप वाली रसोई गैस के दाम में भी बेहताशा वृद्धि देखने को मिली। घरेलू स्तर पर उत्पादित गैस की कीमतों की समीक्षा के लिए गठित समिति ने कहा है कि शहरी इस्तेमाल वाली गैस पर सब्सिडी दी जानी चाहिए ताकि यह पेट्रोल एवं डीजल से सस्ती हो। हालांकि अभी इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है।
Oil subsidy withdrawal due to price jump but india benefits from oil diplomacy
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