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मलेशिया में तेजी के रुख से लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में मजबूती
By DivaNews
27 December 2022
मलेशिया में तेजी के रुख से लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में मजबूती मलेशिया एक्सचेंज में आई तेजी की वजह से दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में मंगलवार को सरसों, सोयाबीन और मूंगफली तेल तिलहन सहित कच्चा पामतेल (सीपीओ), पामोलीन और बिनौला तेल कीमतों में मजबूती का रुख देखने को मिला। बाजार सूत्रों ने कहा कि शिकागो एक्सचेंज में छुट्टी थी जबकि मलेशिया एक्सचेंज में सात प्रतिशत की तेजी रही। मलेशिया में आई तेजी का असर स्थानीय तेल तिलहन कीमतों पर भी दिखाई दिया और इन तेलों के दाम में मजबूती रही। सूत्रों ने कहा कि हाल-फिलहाल कुछेक बड़ी दूध कंपनियों ने दूध के दाम बढ़ाये। मदर डेयरी ने सोमवार को पांचवी बार दूध के दाम में लगभग दो रुपये लीटर की बढ़ोतरी की है। ऐसा मवेशीपालन करने वाले किसानों के लागत में वृद्धि होने की वजह से हुआ है। इस लागत वृद्धि की मुख्य वजह खल और ‘डीआयल्ड केक’ (डीओसी) का महंगा होना है। उन्होंने कहा कि खाद्य तेलों की कमी तो हम पाम और पामोलीन तेल जैसे आयातित तेलों से पूरा कर सकते हैं लेकिन इन तेलों से हमें मवेशियों या मुर्गीदाने के लिए जरूरी डीओसी या खल प्राप्त नहीं होता। इन खल और डीओसी को हल्के तेलों (सॉफ्ट आयल) से ही प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए भी देश में सरसों, मूंगफली, सोयाबीन और बिनौला की खेती को बढ़ाने की आवश्यकता है जिससे हम डीओसी और खल प्राप्ति के साथ साथ खाद्यतेलों के मामले में विदेशी आयात और वहां की मनमानी से खुद को बचा सकें तथा खाद्यतेल आयात पर होने वाले भारी मात्रा में विदेशीमुद्रा के खर्च को कम कर सकें। सूत्रों ने कहा कि तेल कारोबार में एक मुहावरा काफी प्रचलित है कि जब खाद्यतेल के दाम सस्ते होंगे तो खल और डीओसी महंगे होंगे। मिल वाले और तेल उद्योग, तेल के दाम में आई कमी के बाद उन्हें अपनी लागत निकालने के लिए खल और डीओसी ऊंची दरों पर बेचते हैं। इस परिस्थिति के कारण भी देशी तेल तिलहन का उत्पादन बढ़ाना अनिवार्य है। इससे विदेशी मुद्रा का खर्च घटने के साथ साथ देश की तेल मिलें पूरी क्षमता से चलेंगी, उत्पादन बढ़ने से आयात पर निर्भरता घटेगी, लोगों को रोजगार मिलेगा, खल और डीओसी की उपलब्धता बढ़ने से दूध और अंडे, दुग्ध उत्पादों के दाम पर दवाब कम होगा। सूत्रों ने कहा कि सबसे अधिक 80 प्रतिशत खल हमें बिनौला से प्राप्त होता है जो कपास गांठों से निकलने वाले बिनौला से जिनिंग मिल तेल निकालती हैं। लेकिन दो साल ऊंचे भाव का स्वाद चख चुके किसान इस बार मंडियों या जिनिंग मिलों में कपास गांठ कम ला रहे हैं। उनपर कोई भंडार सीमा भी नहीं होती। किसान अपनी उपज तेल मिलों तक लायें इसके लिए सरकार को कोई प्रोत्साहक उपाय करना होगा। इसके अलावा बड़ी तेल कंपनियों के अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) निर्धारण की एक सीमा तय करनी चाहिये जिससे कि थोक दाम के मुकाबले एक सीमा तक ही खाद्यतेलों के एमआरपी का निर्धारण हो सके। इसकी सतत निगरानी भी किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय तिलहन उत्पादन बढ़ने से हल्के तेल के साथ साथ डीओसी और खल पर्याप्त मात्रा में मिलने से दूध, अंडों के दाम भी सस्ते होंगे। यदि सस्ते तेलों पर आयात शुल्क लगाकर हालत काबू में नहीं किया गया तो एक दो महीने के बाद पेराई होने वाली सरसों की बुवाई प्रभावित हो सकती है। मंगलवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन - 7,080-7,130 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली - 6,535-6,595 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,400 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,460-2,725 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 14,200 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 2,150-2,280 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 2,210-2,335 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 14,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,650 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 12,000 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,750 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,150 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,400 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,450 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,550-5,650 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज- 5,370-5,390 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।
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