सपा नेता का आजम खान का माननीय से मुजरिम बनने तक का सफर
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और सपा का मुस्लिम चेहरा आजम खान अब माननीय विधायक की जगह मुजरिम बन गए हैं। आजम सपा का वह चेहरा हैं जो कभी समाजवादी पार्टी की सरकार में अघोषित मिनी मुख्यमंत्री हुआ करते थे। पार्टी में उनका नंबर दो या तीन का कद था। ऐसा इसलिए था क्योंकि सपा में मुलायम के बाद नंबर दो के लिए शिवपाल यादव और आजम खान में अघोषित ‘युद्ध’ चलता रहता था, लेकिन अब न मुलायम रहे और न ही शिवपाल यादव पार्टी में हैं, लेकिन अखिलेश का हौसला बढ़ाने के लिए आजम जरूर मौजूद थे, लेकिन वह भी मुसीबत में फंस गये हैं। पहले मुलायम सिंह की मृत्यु और अब आजम की राजनीति पर लगा ब्रेक, महीने भर के भीतर समाजवादी पार्टी के लिए दूसरा झटका है। उल्लेखनीय है कि आजम की विधानसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई है।
राजनीति में उत्थान से लेकर पतन और अब सजायाफ्ता होने तक के बीच का आजम का सियासी सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक (अब दिवंगत) मुलायम सिंह ने मुस्लिम वोटों की खातिर आजम खान को खुली छूट दी थी। मुलायम के संरक्षण में पश्चिमी यूपी का बड़ा मुस्लिम चेहरा बन गए आजम को अखिलेश ने भी कभी नहीं छोड़ा। यही वजह थी समाजवादी पार्टी की सरकार के समय आजम खान इतना बेखौफ हो जाते थे कि ना उन्हें कानून की चिंता रहती थी ना ही पुलिस की। आजम खान की बदजुबानी की बात की जाए तो वह पीएम, सीएम, डीएम और एसएसपी जैसे बड़े अधिकारियों तक को खुले मंच पर गालियां देते थे। महिलाओं के अंडरवेयर के रंग बताते थे। सेना में जातिवाद ढूंढ़ते थे। दंगाइयों का साथ देते थे। कुल मिलाकर आजम मौजूदा राजनीति की ऐसी जिंदा मिसाल हैं जिसमें राजनीतिक संरक्षण पाकर एक बदजुबान एक वर्ग विशेष का रहनुमा बन जाता है। सत्ता के गुरूर में आजम ने जो विष बेल बोई थी, अब उन्हें उसी की सजा मिल रही है। उनकी बदजुबानी के चलते आजम खान को एमपी/एमएलए कोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई है, जिसके चलते उनकी विधायिकी चली गयी और उनके सियासी सफर पर भी ग्रहण नजर आने लगा है।
मामला 2019 का था। आजम लोकसभा का चुनाव लड़े थे। चुनाव प्रचार के दौरान सात अप्रैल को वह मिलक इलाके के खातानगरिया गांव में जनसभा को संबोधित करने गए थे। संबोधन के दौरान आजम ने वहां के तत्कालीन जिलाधिकारी आंजनेय कुमार सिंह, उनकी मां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की। आजम पर इस सभा के माध्यम से मुस्लिमों को भड़काने व कटुता फैलाने जैसे आरोप लगाए थे। इसके बाद प्रभारी वीडियो अवलोकन टीम अनिल कुमार चौहान की तरफ से मिलक थाने में नौ अप्रैल 2019 को आजम के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। आजम के भड़काऊ भाषण का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। आजम को आईपीसी की धारा 153 ए, धारा 505 और धारा 125 के तहत दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा सुनाई गई थी। यह इन धाराओं में अधिकतम सजा है। आजम खान पिछले काफी समय से सीतापुर जेल में बंद थे और कुछ माह पूर्व उनको जमानत मिली थी। आजम से पूर्व उनकी पत्नी और पुत्र को भी जेल से जमानत पर रिहा किया गया था।
खैर, आजम के विवादित बयानों की बात की जाए तो वह जब अपने पर आए तो विपक्ष तो दूर उनके सियासी रहनुमा रहे मुलायम सिंह यादव भी बयानों की धार से नहीं बचे। वर्ष 2009 में जब आजम खान ने मुलायम सिंह यादव का साथ छोड़ा था तो उनके खिलाफ खूब बरसे थे। उन्होंने मुलायम सिंह यादव की सफेद धोती के नीचे खाकी निकर होने जैसा बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया था। इस पर खूब विवाद बढ़ा। लेकिन, सपा के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अपने दोस्त के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया था। अखिलेश सरकार में मंत्री रहते हुए जौहर विवि, मेयरों के अधिकार समेत कई विधेयकों को लेकर आजम तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक से भिड़ गए थे। राज्यपाल ने विधानसभा में आजम के भाषण की सीडी तलब कर ली। विधानसभा को करीब 33 लाइनें हटानी पड़ीं। इस पर राम नाईक ने आजम के मंत्री होने की बुनियादी योग्यता पर सवाल खड़े कर दिए थे।
हाल में ही सजा पाए आजम खान साल 1980 से राजनीति में सक्रिय हैं। आजम का सियासी सफर अलीगढ़ से शुरू हुआ। अलीगढ़ विवि में पढ़ाई के दौरान आजम ने छात्र राजनीति में पहला कदम रखा था। आजम रामपुर के 10 बार विधायक रह चुके हैं। आजम 2019 में मोदी लहर में भी रामपुर से लोकसभा का चुनाव जीते थे। इसी वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में आजम ने विधानसभा का चुनाव लड़ा था, विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद आजम ने सांसदी से इस्तीफा दे दिया था। लोकसभा में भी कई बार उन्हें विवादित बयानबाजी के लिए खरी-खोटी सुनना पड़ी थी। उत्तर प्रदेश की राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है कि हेट स्पीच के मामले में दोषी पाए जाने पर किसी विधायक की सदस्यता रद्द हुई हो। रामपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने आजम को भड़काऊ भाषण के मामले में दोषी पाया और 3 साल की सजा सुनाई। उनकी रामपुर सदर सीट के विधायक की कुर्सी छिन गई। अब 74 वर्षीय आजम अगले 6 साल तक चुनावी हुंकार नहीं भर सकते। इसी के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में 27 अक्टूबर 2022 का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। हालांकि सजा के एलान के कुछ समय बाद ही उन्हें जमानत मिल गई थी, इसलिए उन्हें जेल तो नहीं जाना पड़ा लेकिन, उनके राजनीतिक कॅरियर पर बड़ा संकट आ गया है। दरअसल, नियम यह है कि किसी विधायक को कोर्ट अगर कम से कम दो साल की सजा सुना दे, तो विधानसभा से उसकी सदस्यता रद्द हो जाती है। इसके बाद दोषी के ऊपरी कोर्ट में चुनौती देने के बाद अगर निचली अदालत का फैसला गलत पाया जाए, तो वह बाइज्जत बरी हो सकता है और उसे विधायकी भी वापस मिल सकती है।
बड़ी बात यह है कि कोर्ट के मामले कई साल तक विचाराधीन रहते हैं। ऐसे में जरूरी नहीं कि आजम खान जिस न्याय की उम्मीद कर रहे हैं, वह उन्हें जल्दी मिल जाए। आजम खान 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते। यह भी संभव है कि ऊपरी अदालत में याचिका दाखिल करने के बाद उनका मामला इतने साल तक विचाराधीन ही रहे। सपा नेता कोशिश पूरी करेंगे, लेकिन 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में वह अपनी भागीदारी शायद न दे सकें। आजम समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और कई वर्षों का राजनीतिक अनुभव रखते हैं। कुछ समय के लिए जरूर आजम तब समाजवादी पार्टी से बाहर हो गए थे, जब पार्टी में अमर सिंह की चलने लगी थी, जिनसे आजम का छत्तीस का आंकड़ा था। आजम की उम्र का हिसाब लगाया जाए तो इस समय वह लगभग 74 साल के हैं। 27 अक्टूबर 2022 को उनके राजनीतिक सफर पर 6 साल का बैन लग गया। यानि अब वह 2028 में वापस से चुनाव लड़ सकेंगे। तब तक आजम खान 80 वर्ष के हो जाएंगे और वह पहले ही कई बीमारियों से जूझ भी रहे हैं। सवाल यह है कि क्या तब तक वह इस स्थिति में होंगे कि प्रदेश की राजनीति कर पाएं? या फिर रामपुर कोर्ट के इस फैसले को आजम खान के सियासी सफर का अंत कहा जा सकता है?
आजम को सजा सुनाई गई है इससे उनके सियासी सफर पर तो असर पड़ेगा ही इसका राजनैतिक नुकसान समाजवादी पार्टी को भी उठाना पड़ सकता है। आजम खान के बराबर का पार्टी में कोई दूसरा मुस्लिम चेहरा नहीं है। कहने को मुरादाबाद और संभल के दो मुस्लिम सांसद हसन और बर्क पार्टी में ही है, लेकिन यह पार्टी के लिए कभी वोटर बटोरने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। प्रदेश में निकाय चुनाव आने वाले हैं और सपा के लिए मुस्लिम वोट बैंक काफी महत्वपूर्ण है। सपा का बड़ा मुस्लिम चेहरा आजम खान की विधायकी छिन जाना वोटरों को जो संदेश देगा, वह सपा के लिए अच्छा नहीं है। इसके अलावा 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आजम खान की भागीदारी नहीं होगी और 2027 के यूपी विधानसभा में आजम खान नहीं लड़ पाएंगे।
बात आजम के अपराधों की कि जाए तो उन पर न सिर्फ सौ से अधिक मुकदमे दर्ज हो चुके हैं बल्कि 81 केस तो ऐसे हैं जिनमें चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है। बेटे के दो जन्म प्रमाण पत्र बनवाने का मामला हो या फिर बेटे के दो पैन कार्ड का। कोसी की परती भूमि हो या फिर वक्फ की फर्जी डीड बनाकर शत्रु संपत्ति कब्जाने का आरोप, सूबे में योगी सरकार आते ही पूर्व मंत्री एवं सपा सांसद मोहम्मद आजम खां यूपी सरकार के निशाने पर आ गए हैं। योगी सरकार द्वारा उनकी घेराबंदी इस तरह से की गई कि आजम की दिनोंदिन मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। जिसके चलते अब तक सौ से अधिक केस दर्ज हो चुके हैं। रामपुर में ही नहीं उनके खिलाफ मुरादाबाद, बदायूं, लखनऊ में भी मुकदमें दर्ज हैं। मनी लॉड्रिंग में ईडी की जांच जारी है। वहीं, जल निगम भर्ती घोटाले में भी एसआईटी रिपोर्ट दे चुकी है। सपा सांसद आजम खां पर भैंस लूटने से लेकर सरकारी जमीन कब्जाने, नदी की जमीन पर कब्जा करने, शत्रु संपत्ति कब्जाने, फर्जी दस्तावेज तैयार करने, धोखाधड़ी, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, आचार संहिता उल्लंघन, अमर्यादित टिप्पणी करने सरीखी धाराओं में कई केस दर्ज हैं। योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश शासन के एंटी भू-माफिया पोर्टल पर आजम खां का नाम दर्ज कर उन्हें भू-माफिया घोषित किया जा चुका है।
आजम के खिलाफ रामपुर में चल रहे मुकदमों और उसकी प्रगति की बात की जाए तो 102 मुकदमों में आजम नामजद आरोपी हैं। 01 केस में उनकी नामजदगी झूठी पाई गई तो 09 मुकदमे पूर्व में शासन वापस ले चुका है। 81 मुकदमों में पुलिस उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है। वहीं 04 केस विवेचानाधीन हैं। रामपुर से इतर अन्य जनपदों में दर्ज केस में स्थिति में 01 जून 2019 को जौहर यूनिवर्सिटी में कोसी नदी क्षेत्र की पांच हेक्टेयर जमीन कब्जाने और सरकारी कार्य में बाधा डालने के आरोप में नायब तहसीलदार केजी मिश्रा ने आजम खां और आले हसन खां पर अजीमनगर थाने में मुकदमा कराया था। 02 जुलाई 2019 को अधिवक्ता मुस्तफा हुसैन ने मुरादाबाद के कार्यक्रम में मुरादाबाद के सांसद एसटी हसन द्वारा जयाप्रदा के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर आजम खां, उनके बेटे विधायक अब्दुल्ला आजम समेत छह लोगों के खिलाफ सिविल लाइंस थाने में मुकदमा कराया था। 12 जुलाई 2019 को जौहर यूनिवर्सिटी के लिए 26 किसानों की जमीन कब्जाने के आरोप में राजस्व निरीक्षक मनोज कुमार ने आजम और आले हसन खां पर अजीमनगर थाने में मुकदमा कराया। 30 जुलाई 2019 को यूनिवर्सिटी से मदरासा आलिया की किताबें बरामद होने पर चोरी के मुकदमे में आजम का नाम शामिल था। 11 सितंबर 2019 को आजम के खिलाफ बकरी चोरी, गाय चोरी व हत्या का भी मुकदमा दर्ज हुआ था। शहर कोतवाली में यह मुकदमा यतीमखाना घोसियान की नसीमा खातून ने दर्ज कराया था। इसी तरह से 18 सितंबर 2019 को क्वालिटी बार संचालक गगन अरोड़ा ने सिविल लाइंस कोतवाली में सांसद आजम खां, उनके करीबी डीसीडीएफ के पूर्व चेयरमैन मास्टर जाफर, सेवानिवृत्त सीओ आले हसन खां और सहकारी संघ के तत्कालीन सचिव कामिल खां के खिलाफ लूट आदि धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था। 04 नवंबर 2019 को भाजपा नेता आकाश सक्सेना ने आजम खां और अब्दुल्ला पर दो पैन कार्ड बनवाने का मुकदमा कराया।
आजम खान ने एमपी/एमएलए कोर्ट से बाहर निकलने के बाद कहा कि यह अधिकतम सजा है। इस मामले में जमानत अनिवार्य शर्त है, उस आधार पर मुझे जमानत मिल गई है। मैं इंसाफ का कायल हो गया हूं। कोर्ट ने अपने फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए आजम को सात दिन का समय दिया है। यदि ऊपरी अदालत में आजम की अपील स्वीकार नहीं हुई तो वह किसी जेल में कैदी नंबर के साथ जेल के भीतर दिखाई पड़ सकते हैं। कोर्ट ने जिला निर्वाचन कार्यालय, रामपुर से कहा है कि वह अपील होने तक विवादित भाषण की मूल हार्ड डिस्क सुरक्षित रखें। आजम को सजा सुनाए जाने के बाद पूर्व विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार यदि सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में दो साल से ज्यादा की सजा होती है तो उनकी सदस्यता रद्द हो जाएगी। जिस दिन अदालत ने अपना फैसला सुनाया उसी दिन से सदस्यता समाप्त और उनकी सीट रिक्त हो जाएगी। प्रावधान है कि जेल से रिहा होने के 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
बहरहाल, विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कोर्ट का फैसला आने के दूसरे ही दिन रामपुर शहर सीट के विधायक मोहम्मद आजम खां की विधानसभा की सदस्यता समाप्त कर दी। दसवीं बार के विधायक और संसद के दोनों सदनों के सदस्य रह चुके आजम खां का लंबा राजनीतिक अनुभव सपा के लिए मायने रखता है। हाल ही में सपा संस्थापक व पिता मुलायम सिंह यादव को खोने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए विधानसभा में आजम खां के न होने से चुनौती और बढ़ सकती है। पहले मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव के साथ उन्होंने पार्टी के तमाम उतार-चढ़ाव देखे। पार्टी के बड़े फैसलों में उनकी सलाह अपरिहार्य मानी जाती थी। यहां तक कि वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में जब सपा को बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री के पद पर अखिलेश की ताजपोशी के फैसले में भी वह साझेदार थे। अपनी तकरीरों, दलीलों और व्यंग्यबाणों से वह सदन में सत्ता पक्ष के कवच को भेदने की कूवत रखते थे। यह बात और है कि अठारहवीं विधान सभा के गुजरे सात माह के दौरान आजम एक दिन भी सदन में नहीं बैठे।
-अजय कुमार
Political journey of samajwadi party leader azam khan