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पुत्रदा एकादशी व्रत से होती है संतान सुख की प्राप्ति

पुत्रदा एकादशी व्रत से होती है संतान सुख की प्राप्ति

पुत्रदा एकादशी व्रत से होती है संतान सुख की प्राप्ति

आज पुत्रदा एकादशी है, पुत्रदा एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है, तो आइए हम आपको पुत्रदा एकादशी व्रत के महत्व एवं व्रत की विधि के बारे में बताते हैं।

जाने पुत्रदा एकादशी के बारे में
पौष मास की शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस साल पुत्रदा एकादशी 2 जनवरी को पड़ रही है। ऐसा माना जाता है कि पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान का सुख प्राप्त होती है। इस व्रत को करने वाले भक्त न केवल स्वस्थ तथा दीर्घायु संतान प्राप्त होती है बल्कि सभी प्रकार के दुख भी दूर हो जाते हैं। 

पुत्रदा एकादशी के दिन कैसे करें पूजा
पौष मास में आने वाली पुत्रदा एकादशी का खास महत्व है। इसलिए इस दिन विशेष प्रकार से पूजा की जाती है। इसके लिए दशमी के दिन खाना खाने के बाद दातुन से मुंह धोएं जिससे भोजन का अंश मुंह में न रहे। इसके बाद सुबह उठकर पवित्र मन से व्रत करने का संकल्प करें। प्रातः जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। उसके बाद धूप और दीप से कृष्ण जी की पूजा करें और दीपदान भी करें। यही नहीं एकादशी के दिन व्रत रखकर रात्रि जागरण करें और कीर्तन करें। भगवान से अपने किए गए पापों के लिए क्षमा मांगें। इसके बाद द्वादशी के दिन सभी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दें उसी बाद ही खाना खाएं।

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पुत्रदा एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा
प्राचीन काल में भद्रावती नाम का एक नगर था जिसमें सुकेतु राजा राज्य करते थे। राजा सुकेतु के पास सबकुछ था लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी इससे वह दुखी रहते थे। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। एक दिन राजा और रानी निःसंतान होने के कारण दुखी हुए और अपने मंत्री को अपना राज्य सौंपकर जंगल में तपस्या करने चले गए। तपस्या के दौरान वह इतने दुखे हुए कि उन्होंने आत्महत्या करने की सोची लेकिन तभी उन्हें अपने विचार पर दुख हुआ और उन्होंने यह विचार त्याग दिया। इसी समय उन्हें आकाशवाणी सुनायी दी और वह उसी के अनुसार चलते रहे। इस प्रकार चलते हुए वह साधुओं की एक मंडली में पहुंच गए जहां उन्हें पुत्रदा एकादशी के महत्व का पता चला। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करना प्रारम्भ किया जिसके प्रभाव से उन्हें संतान पैदा हुई। इसके बाद पुत्रदा एकादशी का महत्व और भी बढ़ गया। 

इन नियमों का पालन जरूर करें
पौष पुत्रदा एकादशी बहुत खास होती है इसलिए इस व्रत को विशेष प्रकार से रखना चाहिए। एकादशी व्रत को दशमी से ही शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए दशमी के दिन लहसुन –प्याज न खाएं और भोजन भी सात्विक करें। साथ ही भगवान विष्णु की पूजा कर दीपदान करें। एकादशी के दिन कोशिश करें कि दिन रसाहार करें और शाम को फलाहार ग्रहण करें। इसके बाद एकादशी की रात को कीर्तन करें और द्वादशी को ब्राह्मणों को दान दें। ध्यान रखें कि द्वादशी के दिन भी सदैव सात्विक भोजन ग्रहण करें। इस प्रकार एकादशी के साथ ही दशमी और द्वादशी को भी कुछ विशेष नियमों का पालन करें। 
 
साथ ही पूरे दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें। मन में किसी भी प्रकार का मानसिक या कामुक विकार न लाएं। इस दिन किसी भी व्यक्ति, महिला, बुजुर्ग, पशु, पक्षी आदि का अपमान न करें। ऐसा करने पर व्रत निष्फल हो जाता है। यथासंभव किसी गरीब व्यक्ति या भिखारी को भोजन अवश्य कराएं। यदि ऐसा संभव न हो तो गाय व कुत्ते को रोटी डाल सकते हैं। अथवा पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था कर सकते हैं।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के नियम
शास्त्रों के अनुसार पुत्रदा एकादशी पर निर्जला या फलाहारी उपवास रखने से बहुत लाभ मिलता है। जिन लोगों को स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं हैं, वह निर्जला उपवास न रखें। वह इस दिन फलाहारी व्रत का पालन करें। एकादशी व्रत रखने से पहले दशमी तिथि से ही व्रत संबंधित नियमों का पालन करें। इसलिए दशमी तिथि को भी सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। इस दिन जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का स्मरण करें। इस दिन अपना पूरा ध्यान भजन-कीर्तन और श्रीहरि की आराधना में लगाएं। व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन करें और और किसी के लिए भी मन में नकारात्मक भाव ना रखें। साथ ही इस दिन वाद-विवाद से बचना चाहिए। इस नियम का पालन न करने से अशुभ प्रभाव पड़ता है। साथ ही एकादशी तिथि के दिन मांस, मदिरा का सेवन करना वर्जित है। ऐसा करने से श्रीहरि एवं माता लक्ष्मी क्रोधित होते हैं और व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

पुत्रदा एकादशी का है धार्मिक महत्व
दक्षिण भारत में श्रावण पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है। पंडितों के अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। यही नहीं पुत्रदा एकादशी के व्रत से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। अगर पूर्णमनोयोग से निसंतान दंपति इस व्रत को करें तो उन्‍हें संतान सुख अवश्‍य मिलता है। 

पुत्रदा एकादशी पर करें इस तरह पूजा
पुत्रदा एकादशी व्रत में व्रती को दशमी के दिन से ही सात्विक आहार खाना चाहिए। यही नहीं ब्रह्मचर्य के नियमों का भी पालन करें। व्रत के दिन सुबह नहा कर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा करें। रात में कीर्तन करते हुए जगे रहें। उसके बाद द्वादशी के दिन के सूर्योदय के बाद पूजा होनी चाहिए। इसके बाद पारण में किसी भूखे या पात्र ब्राह्मण को भोजन कराएं। 

पुत्रदा एकादशी के दिन इन नियमों के पालन से होगा लाभ
दशमी को रात में शहद, चना, साग, मसूर की दाल और पान नहीं खाएं। एकादशी के दिन झूठ बोलने और बुराई करने से बचें। दशमी को मांस और शराब के सेवन नहीं करें। एकादशी के दिन चावल और बैंगन नहीं खाना बेहतर होता है। एकादशी और दशमी को मांग कर खाना नहीं खाना चाहिए। साथ ही व्रत के दिन जुआ नहीं खेलें।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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