अल्जाइमर के निदान के लिए शोधकर्ताओं ने विकसित किया नया परीक्षण
अल्जाइमर ऐंड रिलेटेड डिसऑर्डर सोसाइटी ऑफ इंडिया (एआरडीएसआई) की ‘डिमेंशिया इंडिया रिपोर्ट’ के अनुसार, वर्ष 2030 तक लगभग 76 लाख भारतीय अल्जाइमर और अन्य डिमेंशिया की स्थिति से पीड़ित होंगे। माना जाता है कि अल्जाइमर रोग मस्तिष्क की कोशिकाओं में और उसके आसपास प्लाक के असामान्य निर्माण के कारण होता है। प्लाक छोटे प्रोटीन (पेप्टाइड) के समुच्चय होते हैं, जिन्हें एमिलॉयड -बीटा (Aβ) कहा जाता है।
अल्जाइमर रोग के निदान में संज्ञानात्मक कार्यों, मस्तिष्क के आकार और संरचना का अवलोकन SPECT, PET एवं MRI स्कैन और एमिलॉयड प्लाक (Amyloid plaque) की पहचान महत्वपूर्ण है। स्पाइनल टैप (Spinal Tap) के माध्यम से प्रमस्तिष्क मेरु द्रव (Cerebrospinal fluid) से निकालकर या फिर पीईटी स्कैन करके एमिलॉयड प्लाक की पहचान की जाती है। अल्जाइमर की विश्वसनीय पहचान करने में सक्षम होते हुए भी यह विधि अपेक्षाकृत महँगी है, और इसमें चीरफाड़ की आवश्यकता होती है।
एक ताजा अध्ययन में भारतीय शोधकर्ताओं को एक नया चीरफाड़ रहित और प्रभावी फ्लोरोसेंट आणविक परीक्षण विधि विकसित करने में सफलता मिली है। यह संयुक्त अध्ययन; भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर, और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की कोलकाता स्थित घटक प्रयोगशाला - भारतीय रासायनिक जीव विज्ञान संस्थान (आईआईसीबी) के सहयोग से किया गया है। यह अध्ययन, शोध पत्रिका ‘एसीएस केमिकल न्यूरोसाइंस’ में प्रकाशित किया गया है।
आईआईटी जोधपुर से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर डॉ सुरजीत घोष ने कहा, “ऑप्टिकल इमेजिंग विधियाँ, जिनमें ऊतकों और वांक्षित अणुओं को लक्षित करने के लिए फ्लोरोसेंट या रंग-आधारित रसायनों का उपयोग करते हैं, उन्हें बायोमेडिकल क्षेत्र में बेहतर नैदानिक तकनीक माना जाता है।” वह बताते हैं कि फ्लोरोसेंस जाँच रेडियोधर्मी रसायनों या महँगे उपकरणों की अनुपस्थिति में त्वरित और सुरक्षित विश्लेषणात्मक संवेदन का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
फ्लोरोसेंट निदान परीक्षण में एक फ्लोरोसेंट रसायन को इंजेक्ट किया जाता है, जो विशेष रूप से एमिलॉयड प्लाक से जुड़ जाता है, और एक उपयुक्त डिटेक्टर का उपयोग करके फ्लोरोसेंट गुणों में परिवर्तन का आकलन करता है। फ्लोरोसेंट रसायन, विशेष और चुनिंदा रूप से Aβ समुच्चय से जुड़ने में सक्षम होने के अलावा, मस्तिष्क तक पहुँचने के लिए रक्त-मस्तिष्क की बाधा पार करने में भी सक्षम होना चाहिए। जब यह Aβ समुच्चय से जुड़ता है, तो रंग और तीव्रता जैसे इसके फ्लोरोसेंट गुणों में भी बदलाव होना चाहिए। इसके अलावा, आसानी से पहचान के लिए प्रतिदीप्ति दृश्य प्रकाश क्षेत्र में होनी चाहिए। व्यावसायिक रूप से उपलब्ध फ्लोरोसेंट टीएचटी (ThT) परीक्षण में रक्त-मस्तिष्क बाधा पार करने की क्षमता प्रभावी नहीं होती है, और प्रतिदीप्ति तीव्रता में केवल 2.5 गुना परिवर्तन प्रदर्शित होता है।
डॉ घोष बताते हैं - "हमने आणविक डॉकिंग प्रयोगों का उपयोग करते हुए Aβ समुच्चय के साथ आरएम-28 के बाध्यकारी मोड का अध्ययन किया, और पाया कि यह परीक्षण प्रवेश स्थल, आंतरिक क्लेफ्ट्स और Aβ समुच्चय की सतह से जुड़ जाता है। आरएम-28, कृत्रिम वातावरण और वास्तविक, दोनों डायग्नोस्टिक तकनीकों में Aβ समुच्चयों का पता लगाने में टीएचटी को संभावित रूप से प्रतिस्थापित कर सकता है, और नये फ्लोरोसेंट परीक्षण को डिजाइन करने के लिए आणविक मंच के रूप में भी काम कर सकता है।"
शोधकर्ताओं ने बेंज़ोथियाज़ोल आधारित फ्लोरोसेंट अणुओं की एक श्रृंखला को सफलतापूर्वक डिज़ाइन और विकसित किया है, जो चुनिंदा रूप से Aβ समुच्चय से जुड़ सकते हैं। बंध खुलने पर इन सभी अणुओं को एक रंग में प्रतिदीप्ति उत्सर्जित होते देखा गया, और प्रतिदीप्ति तीव्रता में सहवर्ती वृद्धि के साथ उत्सर्जन का रंग दृश्यमान प्रकाश (इंद्रधनुषी-बैंगनी, इंडिगो, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल) स्पेक्ट्रम में लाल की ओर स्थानांतरित होते पाया गया।
एक अणु, जिसे RM28 नाम दिया गया था, जब वह बंध-रहित था, तो पीले रंग का था, और जब इसे Aβ समुच्चय से जोड़ा गया, तो इसका रंग नारंगी हो गया, और बंधन के बाद प्रतिदीप्ति तीव्रता में 7.5 गुना वृद्धि देखी गई। उन्होंने RM28 का परीक्षण करने के लिए अल्जाइमर ग्रस्त चूहों के मस्तिष्क के नमूनों का उपयोग किया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अणु जैविक तरल पदार्थों में स्थिर पाया गया है, और रक्त-मस्तिष्क की बाधा को आसानी से पार कर सकता था। यह प्रतिस्पर्धी जैव-अणुओं की उपस्थिति में Aβ समुच्चय का चयन कर सकता है। उनका कहना है कि नया विकसित यह परीक्षण अल्जाइमर निदान की स्पाइनल टैप या पीईटी स्कैन जैसी विधियों के मुकाबले चीरफाड़ रहित, किफायती और विश्वसनीय विकल्प हो सकता है।
(इंडिया साइंस वायर)
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