Literaturearticles

इंसान से आगे नहीं रोबोट (व्यंग्य)

इंसान से आगे नहीं रोबोट (व्यंग्य)

इंसान से आगे नहीं रोबोट (व्यंग्य)

मुझे विदेशियों द्वारा शोध के लिए उठाए विषयों से हमेशा हैरानी होती है। पता नहीं क्यूं अजीब विषयों पर दिमाग खपाते रहते हैं। पिछले दिनों जो शोध किया वह पूरी इंसानियत को दुखी करने वाला है। इनके अनुसार इंसान का दिमाग बहुत फितरती साबित हुआ है। प्राकृतिक बुद्धि कम पड़ रही थी तभी तो कृत्रिम बुद्धि बनाई ताकि मुश्किल और असंभव काम करवाए जा सकें। अपना मानसिक बोझ उस पर लाद सकें लेकिन कृत्रिम बुद्धि तो कुबुद्धि साबित हो रही है। 

अमेरिकाजी के संस्थानों ने रिसर्च का तेल निकालने के बाद पाया है कि रोबोट्स इंसानों की तरह व्यवहार करते हुए रुढ़िवादी व्यवहार सीख रहे हैं। कोई इनसे पूछे यह रोबोट्स बनाए किसने। समझदार, उतावले इंसान ने ही न। इंसान कुछ बनाएगा तो अपने जैसी चीज़ ही बनाएगा। अपनी संतान में अपनी जैसी व्यवहारिक आदतें ही रोपित करना चाहेगा। वह बात गलत है कि इसका दोष खराब न्यूटल नेटवर्क को दिया जा रहा है। अब कोई पूछे यह नेटवर्क किसने बनाया। विकास पथ पर भागते, अस्त व्यस्त होते जा रहे इंसान ने ही। अब इंसान ही रोबोट को दोष दे रहे हैं कि स्त्री पुरुष में भेदभाव कर रहा है, लोगों का रंग सफ़ेद, काला, भूरा देखकर नौकरी के लिए उनका चयन कर रहा है। काले आदमी को मजदूर समझ रहा है और सफ़ेद को राजा।

इसे भी पढ़ें: संतुष्टि एक स्वादिष्ट वस्तु है (व्यंग्य)

इन बेचारे रोबोट्स की भी क्या गलती जो पुरुषों को ज़्यादा ताक़तवर समझ रहा है और स्त्री को कम। विदेशों में नस्ल और रंगभेद तो रोम रोम में भरा पड़ा है मगर हमारे देश में रोबोट को ऐसा करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। यहां तो इंसान गर्भ में ही जाति, धर्म, छोटा, बड़ा, घटिया या बढ़िया की शिक्षा ग्रहण कर लेता है। जिन रक्त कणों से शारीरिक हिस्से बनते हैं उनमें ऊँच नीच, महान या अमहान के ज़रूरी तत्व शामिल कर दिए जाते हैं। रोबोट्स जैसी तुच्छ मशीनों को हम इस तरह मीन मेख निकालने वाले काम नहीं सौंपते। ऐसे काम तो यहां के ख़ास लोग आंख मींच कर कर देते हैं। हैरानी होती है कि अमेरिकाजी जैसा खुले दिमागवाला, जनसंख्या से ज़्यादा बंदूकें रखने वाला प्रगतिशील देश कैसे कैसे सर्वे करवाता है। 

वैसे घुमा फिराकर भी देखा जाए तो ज़िंदगी का सच यही है वह बात दीगर है कि हम इस खरेखरे खुरदरे सच को नकारते रहें कि नहीं नहीं, ऐसा नहीं है । क्या स्त्री पुरुष का भेदभाव अभी कायम नहीं है। क्या जातिभेद पर इन्द्रधनुष जैसा रंग नहीं चढ़ा दिया गया है। क्या मजदूरी का चेहरा उजला हो गया है। जो बात गोरे रंग में है वह भूरे, पीले या काले रंग में कहां।  चाहे विज्ञापन का अंदाज़ बदल दो लेकिन क्रीम की बिक्री कहां कम होती है। पैसा अभी भी काफी कुछ करवा रहा है। अच्छा इलाज, खूबसूरत बीवी, मकान, गाड़ी, घुमक्कड़ी, खाना पीना, ताक़त, राजनीति, धर्म और ....। 

हमारे यहां मीलों लम्बे काम तो चंद इंच की ज़बान ही कर देती है। एक बंदा ज़बान चलाता है और करोड़ों का काम बिना रोबोट के हो जाता है। रोबोट को छोडो हमारे यहां तो ईष्ट को भी घसीट लिया जाता है । हालांकि वे शांत, तटस्थ रहते हैं। इंसान, प्रार्थना कर खुद ही मनचाहे आशीर्वाद लेता रहता है। रोबोट भी तो इंसान की बुद्धि और धन से बनाया जाता है तो इंसान से आगे कैसे निकल सकता है। 

Robots are not ahead of humans

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero