जीएम सरसों पर्यावरणीय परीक्षण के लिए जारी करने के जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) द्वारा दी गई मंजूरी का कड़ा विरोध करते हुए, नागरिकों के मंच - ‘सरसों सत्याग्रह’ ने शुक्रवार को कहा कि इससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को नुकसान होगा। गैर-सरकारी संगठनों, कार्यकर्ताओं और किसानों की भागीदारी वाले इस मंच के अनुसार, ‘‘जीएम सरसों की मंजूरी के संबंध में जो हुआ है, वह बीटी बैंगन से भी बदतर नियामकीय प्रक्रियाओं का पालन करता है और जिस तरीके से जीईएसी ने जल्दबाजी में इसे हरी झंडी दी है वह काफी आपत्तिजनक है।’’
‘सरसों सत्याग्रह’ ने कहा कि हम बीटी बैंगन के हश्र के बारे में जानते हैं। जब इसपर अनिश्चितकालीन रोक लगी था और उसके बाद से इसके सुरक्षित होने के बारे में भारत में एक भी अतिरिक्त अध्ययन नहीं किया गया।’’ भारतीय किसान संघ के मोहिनी मोहन मिश्रा ने एक वर्चुअल संवाददाता सम्मेलन में कहा कि नागरिकों को वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करना हमारी जिम्मेदारी है। हमेंउन्हें बताना है कि जीएम सरसों का परीक्षण एक खरपतवार नाशक सहिष्णु फसल के रूप में नहीं किया गया है और इसकी सुरक्षा और प्रभावकारिता के संबंध में सीमित परीक्षण किया गया है।
मिश्रा ने कहा कि जीएम सरसों को ‘‘पर्यावरणीय जांच के लिए जारी करने’’ की अनुमति देने से पहले इसकी उपज बढ़ने की बात साबित नहीं हुई है। उन्होंने कहा किइसकी वाणिज्यिक खेती वास्तव में भारत की उत्पादकता को कम कर सकती है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने आनुवंशिक रूप से परिष्कृत सरसों के पर्यावरणीय परीक्षण जांच के लिए जारी करने की सिफारिश की है, जो विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी व्यावसायिक खेती का मार्ग प्रशस्त करेगा।
Sarson satyagraha opposed geac nod to environmental testing of gm mustard
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