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मानव विकास में आगे (व्यंग्य)

मानव विकास में आगे (व्यंग्य)

मानव विकास में आगे (व्यंग्य)

पिछले दिनों एक बढ़िया पुल गिर जाने के कारण, कुछ बंदों की जान चले जाना बताता है कि हम विकासजी के शासन में, मानव विकास में कितना आगे हैं। ऐसी ही घटनाओं के कारण संयुक्त राष्ट्र का मानव विकास सूचकांक विभाग, फिर से हमारी तरफ देखकर अपना झंडा लहराना शुरू कर देता है जिस पर छपा होता है, देखो देखो मानव सूचकांक में तुम कितना नीचे खिसक गए हो। वे अपने फीते से हमारा स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच, सभ्य जीवन स्तर की प्रगति नापते रहते हैं। यह बहुत गलत बात है। 

हमने जो भी, जैसी भी तरक्की की, अपने बढिया मेड इन इंडिया, आईएसआई मार्क फीते से नापनी या मापनी चाहिए। जो चीज़ें बढ़ रही हैं, अपना नजरिया सकारात्मक रखते हुए, उन्हें आगे बढ़ता हुआ ही माना जाना चाहिए। हमें मानना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय मानव सूचकांक परीक्षा में, हमारे ज़्यादा अंक आए हैं। इसे कुछ लोग मानव अविकास में आगे मान भी लेंगे तो क्या होने वाला है। शब्दों को तोड़ना मरोड़ना ही तो है। जैसे हम रिपोर्ट्स में करते हैं। आंकड़े पकाते हुए उनमें समायोजन का चूर्ण डाला जाता है, जिससे सब ठीक हो जाता है। 

स्वस्थ जीवन की बात करें तो हमारे यहां दुनिया भर से, स्वास्थ्य सुधारने के लिए मेडिकल टूरिज्म स्कीम के अंतर्गत करोड़ों लोग आते हैं। अपने महंगे ऑपेरशन यहां कम खर्चे में करवाते हैं। क्या हुआ जो कभी कभार कुछ इलाकों में, स्थानीय लाश को साइकिल, ठेले, कंधे या पीठ पर ले जाना पड़ता है। हमारे यहां तो महंगे अस्पताल भी पैसे लेकर लाशों का इलाज करते रहते हैं। सरकारी अस्पतालों में सिफारिश हो तो बिना ताली बजाए इलाज होता है। क्या हुआ अगर आम लोगों को टैस्ट कराने की तारीख महीनों बाद मिलती है। गर्भवती महिलाओं को ज़मीन पर घंटों बैठकर अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता है। यह बातें ध्यान देने लायक नहीं हैं।

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शिक्षा का क्षेत्र जुगाडू होने की उपयोगी शिक्षा देता है। एक से एक बढ़िया, प्राइवेट महंगे स्कूल हैं जो अंग्रेजों के ज़माने से कामयाब हैं। राजनीतिज्ञों, कर्मचारियों, सरकारी अध्यापकों के बच्चे भी उनमें पढ़ते हैं। उनकी पहुंच बेचारे सरकारी स्कूलों तक नहीं है। वैसे भी वे अपने बच्चों जिस मर्जी प्राइवेट स्कूल में पढाएं यह उनका सवैंधानिक अधिकार है जी। सरकारी स्कूलों की इमारतें बढ़िया नौकरी के केंद्र बने हुए हैं। वहां बहुतों का मानव विकास होता है जिनमें नेता, अफसर और ठेकेदार भी शामिल हैं। क्या हुआ अगर कुछ स्कूलों में बच्चे कम और शिक्षक ज़्यादा हैं लेकिन जाति पाति की शिक्षा तो मिलती है न।  
 
सभ्य जीवन तो हमारा महंगा जेवर है। हम पारम्परिक, सामाजिक और धार्मिक स्वतंत्रता के पुजारी हैं। ज्यूं ज्यूं विकासजी का शासन अपनी जड़ें गहरी कर रहा है हम ज्यादा सुसंस्कृत होते जा रहे हैं। हमारे राजनीतिक, धार्मिक प्रतिनिधि अपनी यशस्वी ज़बान से नियमित रूप से सभ्य एवं सामाजिक बयान जारी कर राष्ट्रीय सदभाव में बढ़ोतरी करते हैं।  इस तरह से मानव विकास को भरपूर प्रोत्साहन मिलता है। क्या हुआ अगर कुछ लोग इन बातों से कुप्रेरित होकर मानवता का अविकास करने लगते हैं और हमारा देश विश्वस्तर पर वास्तव में कम अंक  प्राप्त करता है। कम अंक लाने वाले विद्यार्थी की प्रतिभा को कमतर आंकना मानवीयता नहीं मानी जाती। क्या देश में हर साल करोडपति और अरबपति बढ़ते जाना मानव विकास नहीं है। नजरिया सकारात्मक रखना बहुत ज़रुरी है जी।

- संतोष उत्सुक

Satire on human development

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