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टोपी पहनाने वाले (व्यंग्य)

टोपी पहनाने वाले (व्यंग्य)

टोपी पहनाने वाले (व्यंग्य)

नेताजी सेक्रेटरी के रग-रग से वाकिफ़ थे। उन्होंने सेक्रेटरी की चिंता का कारण पूछा। सेक्रेटरी ने कहा– साहब! पाँच साल पहले आप इसी तरह तैयार होकर भाषण देने गए थे और सौभाग्य से विधायक भी बन गए। लेकिन सच्चाई यह है कि आपका किया एक भी वादा पूरा नहीं हुआ। अब हम किस मुँह से जनता का सामना करेंगे? अगर कहीं जनता भड़क गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे। 

नेताजी सिगरेट का कश लगाते हुए बड़े इत्मिनान के साथ कहा– देखो सेक्रेटरी! यह जनता भी बड़ी अजीब होती है। यदि वे मुर्गमुसल्लम खा रहे हों और उनसे वह थाली छीन ली जाए तो वे रोटी-सब्जी खाने लगते हैं। अगर रोटी-सब्जी छीन ली जाए तो चावल-दाल खाने लगते हैं। और चावल-दाल छीन ली जाए तो पानी पीकर रह जाते हैं। जनता बड़ी जुगाड़ु होती है। ऐसे में अगर उनसे यह वादा कर दिया जाए कि हम घर के प्रत्येक सदस्य को दस-दस किलो चावल मुफ्त देंगे तो वे अपना मुर्गमुसल्लम भुलाकर फिर से हम पर विश्वास करने लगेंगे। यह जनता किसी सिगरेट से कम नहीं है।

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पाँच साल तक इनका जितना कश लगाया जा सकता है, लगाओ और किए हुए वादों को धुएँ के माफिक़ हवा में गायब हो जाने दो। जनता हमेशा आज में जीती है। इसलिए तुम चिंता मत करो। मेरे पास जनता को बहलाने के बहुत सारे वादे हैं। वादों के दो बिस्कुट फेंकते ही कुत्ते की तरह दुम हिलाते हुए मेरे आगे-पीछे हिलने-डुलने लगेगी। सो जल्दी करो, कहीं दूसरे नेताजी आकर हमसे बड़ा वादा न कर जाएँ। 

- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

Satire on politics

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