महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बुधवार को विधानपरिषद में कहा कि कर्नाटक के साथ सीमा विवाद को हल करने की राज्य सरकार की कोशिश ‘कमजोर मानसिकता’ के साथ शुरू की गई थी। उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्य (कर्नाटक) से मराठी-भाषी गांवों के विलय की मांग करते हुए प्रथम मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण द्वारा लाये गये प्रस्ताव में इसके लिए समय सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। शिंदे का यह बयान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रुख के अनुरूप प्रतीत होता है, जिसने कर्नाटक के साथ सीमा विवाद को पिछले छह दशकों से हल करने में नाकाम रहने के लिए राज्य की पूर्ववर्ती सरकारों को जिम्मेदार ठहराया है।
राज्य विधानमंडल के उच्च सदन में मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र विधानसभा में पहला प्रस्ताव तत्काल मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण ने लाते हुए यह मांग की थी कि बेलगाम (बेलगावी), करवार और अन्य गांवों का विलय महाराष्ट्र में किया जाए। इस प्रस्ताव में, चव्हाण ने इस मुद्दे के लिए समय सीमा निर्धारित नहीं की थी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सीमा विवाद का हल करने के लिए संघर्ष कमजोर मानसिकता के साथ शुरू हुई थी।’’ शिंदे ने सदन को यह भी आश्वासन दिया कि कर्नाटक के विवादित इलाकों में रहने वाले लोगों को हर कानूनी सहायता मुहैया की जाएगी।
मुख्यमंत्री ने कर्नाटक के मंत्री सी. एन. अश्वत नारायण और विधायक लक्ष्मण सावदी के इस बयान की भी निंदा की कि मुंबई को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर देना चाहिए। शिंदे ने कहा कि राज्य सरकार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कर्नाटक सरकार को पत्र भेजेगी तथा महाराष्ट्र सरकार के सख्त एतराज से अवगत कराएगी। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी विधानसभा में इसी तरह का बयान दिया। शिंदे ने कहा कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को इस मुद्दे पर अपने मंत्रियों से बात करनी चाहिए। इससे पहले, शिवसेना (यूबीटी) नेता उद्धव ठाकरे ने कहा था कि कर्नाटक और महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों को उच्चतम न्यायायलय का फैसला आने तक केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर देना चाहिए।
Shinde said efforts to resolve border dispute with karnataka were started with a weak mindset
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