Prabhasakshi Exclusive: हिंदी भाषा पर बोले एसपी बघेल, कहा- ‘लोक-भाषा, लोक-भोजन, लोक-भूषा’ से होता है देश विकसित
राष्ट्र प्रथम की भावना से कार्य करने वाले भारत के आरम्भिक हिंदी समाचार पोर्टल प्रभासाक्षी के बारे में सभी जानते हैं कि यह सूत्रों नहीं, तथ्यों के हवाले से खबरें प्रकाशित करता है। प्रभासाक्षी का सफर दिल्ली में एक छोटे-से कार्यालय से शुरू हुआ था और इन 21 वर्षों में जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण और पूर्वोत्तर के कई राज्यों तक हमारी शाखाएं पहुँच चुकी हैं। आज हिंदी भाषी राज्यों के विभिन्न शहरों में तो प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के ब्यूरो हैं ही साथ ही हमने दक्षिणी, पश्चिमी और पूर्वोत्तर राज्यों में भी अपनी पकड़ बनाना शुरू कर दिया है। यह प्रभासाक्षी का सौभाग्य है कि आरम्भकाल से ही इसे देशभर के हिंदी लेखकों और पत्रकारों का साथ मिला है और इसी टीम भावना का मजबूती से प्रदर्शन करते हुए हम अपना मुकाम बनाने में तेजी से सफल हुए हैं। प्रभासाक्षी की 21वीं वर्षगाँठ पर आयोजित विचार मंथन कार्यक्रम की परिचर्चा जारी है। दिन भर की परिचर्चा की इस नयी कड़ी का विषय है- चिकित्सा शिक्षा की तरह न्यायिक क्षेत्र में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार क्या कदम उठा रही है? भारत के कानून राज्यमंत्री और लोकप्रिय जननेता एसपी सिंह बघेल हमसे जुड़े और इस विषय पर अपनी राय रखी।
एसपी सिंह बघेल ने कहा कि देश की आजादी के समय अगर हम अपने पैरों पर खड़े हो जाते तो आज ये बातें नहीं हो रही होती। लोक-भाषा, लोक-भोजन, लोक-भूषा से ही देश पूरी तरह विकसित होता है। संयोग से हमारे देश में बाहर के बस्ते गए और हिंदुस्तान बंटता गया। यहाँ जब मोहम्मद गोरी से पृथ्वीराज चौहान हार गया था, तब हमारे देश में नयी भाषा आई, जिसको उर्दू, अरबी, फ़ारसी भाषा कहते थे। ये भाषाएं हमारे देश की राजकीय भाषा हो गयी और हमारी रामलिपि और संस्कृत कहीं खो गई। इससे कहीं न कहीं हमारी देवनागरी और हिंदी को नुकसान हुआ और फिर हम अंग्रेजों के गुलाम हो गए और फिर देश में अंग्रेजी आ गयी। आज़ादी के समय हमने देश से अंग्रेजों को तो भगा दिया लेकिन अंग्रेजी को नहीं भगा पाए। अगर आज़ादी के समय अंग्रेजी सिलेबस से बाहर होती और हिंदी संपर्क का साधन होती तो आज हम अपने पैरों पर खड़े हो जाते। उस समय सरकार कांग्रेस की थीं और अगर अंग्रेजी उस समय पाठ्यक्रम में शामिल और अनिवार्य नहीं होती तो आज हम वैसे ही विकसित राष्ट्र होते अपनी भाषा से जैसे रूस अपनी रुसी भाषा से, चीन अपनी चीनी भाषा से, जर्मनी अपनी भाषा से समृद्ध है और विकसित है। उन्होंने आगे कहा कि मैं इस बात के पक्ष में रहता हूँ कि हमेशा अपनी भाषा में बात करनी चाहिए।
प्रभासाक्षी ने अपनी 17वीं वर्षगाँठ से वार्षिक हिंदी सेवा सम्मान प्रदान किये जाने की शुरुआत की थी जोकि हिंदी भाषा के लेखकों, पत्रकारों और सोशल मीडिया मंच के माध्यम से हिंदी की सेवा करने वाले महानुभावों को प्रदान किये जाते हैं। आज 21वीं वर्षगाँठ पर डा. वर्तिका नंदा, डा. गोविंद सिंह, उमेश चतुर्वेदी, आशीष कुमार अंशु, प्रो. हरीश अरोड़ा, डा. रमा, तज़ीन नाज़, दीपक कुमार त्यागी, ब्रह्मानंद राजपूत, योगेंद्र योगी, मृत्युंजय दीक्षित, दीपक गिरकर, संतोष पाठक, रमेश ठाकुर, विजय कुमार, अनीष व्यास, राकेश शर्मा, पवन मलिक, अवधेश शर्मा, विष्णु शर्मा और नवरत्न को दिया गया।
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