महाराष्ट्र में अति सूक्ष्म ठोस और द्रव कणों (एयरोसोल) से होने वाला प्रदूषण मौजूदा ‘संवेदनशील’ ऑरेंज जोन से 2023 तक ‘अत्यंत संवेदनशील’ रेड जोन में पहुंच सकता है जिससे दृश्यता स्तर कम हो सकता है और राज्य के नागरिकों के लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सामने आ सकती हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन ‘असार’ द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार एयरोसोल की उच्च मात्रा में पीएम2.5 और पीएम10 के साथ समुद्री नमक, धूल, सल्फेट, काला तथा जैविक कार्बन होता है।
अध्ययन के अनुसार, यदि यह शरीर में जाता है तो सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। वातावरण में मौजूदा एयरोसोल की अनुमानित मात्रा ‘एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ’ (एओडी) में मापी जाती है। बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता के सहायक प्रोफेसर डॉ अभिजीत चटर्जी तथा पीएचडी शोधार्थी मोनमी दत्ता ने ‘एक डीप इनसाइट इनटू स्टेट-लेवल एयरोसोल पॉल्यूशन इन इंडिया’ शीर्षक से अध्ययन किया जिसमें दीर्घकालिक (2005 से 2019 तक) प्रवृत्ति के अनुरूप एयरोसोल प्रदूषण का विस्तार से अध्ययन किया गया है।
डॉ चटर्जी ने कहा कि महाराष्ट्र इस समय ऑरेंज ‘संवेदनशील’ क्षेत्र में आता है जहां एओडी 0.4 से 0.5 के बीच है। हालांकि बढ़ता एयरोसोल प्रदूषण एओडी को 0.5 के स्तर से बढ़ा सकता है जो ‘रेड जोन’ होता है। अध्ययन के अनुसार एओडी का मान 0 से 1.0 तक होता है जिसमें 0 साफ आसमान और अधिकतम दृश्यता दर्शाता है, वहीं 1 धुंध की स्थिति को बताता है। डॉ चटर्जी ने कहा कि महाराष्ट्र में 2019 से 2023 के बीच एओडी में वृद्धि करीब सात प्रतिशत हो सकती है।
Study says maharashtra may move to highly sensitive zone of aerosol pollution in 2023
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