देवभूमि उत्तराखंड का सिस्टम पुरानी आपदाओं से सबक नहीं लेकर नयी मुसीबत को निमंत्रण देता है
जगत गुरु शंकराचार्य की तपो भूमि जोशीमठ आज भू-धंसाव के बड़े खतरे के मुहाने पर आ गया है। देश के भू विज्ञानी इसका कारण जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। वैसे देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न प्रकार की छोटी व बड़ी विकास परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन उनमें से वास्तव में बहुत ही कम परियोजनाएं ऐसी होंगी जिसमें प्रकृति के साथ पूरी तरह से सामंजस्य बनाकर के कार्य किया गया हो। हर तरफ अंधाधुंध अव्यवस्थित विकास की अंधी दौड़ में हम व हमारे देश का सिस्टम प्रकृति के साथ कदम ताल मिलाते हुए सामंजस्य बिठाकर कार्य करना भूलता जा रहा है। हालांकि समय-समय पर प्रकृति निरंतर चेतावनी भी देती रहती है, लेकिन फिर भी ना जाने क्यों हम लोगों के व हमारे देश के सिस्टम के कानों पर जूं नहीं रेंगती है।
आज उसी का परिणाम यह है कि उत्तराखंड फिर से अंधाधुंध दोहन व अव्यवस्थित विकास का बड़ा खामियाजा भुगतने के मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है। उसी लापरवाही के चलते धीरे-धीरे अब जोशीमठ में यह हालात हो गये हैं कि जोशीमठ जैसा प्राचीन शहर कभी भी धंसकर मिट्टी में मिल सकता है, क्योंकि जोशीमठ में जमीन धंसने का सिलसिला अब भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है, घरों में व सड़कों पर जमीन धंसने के सबूत के रूप में जगह-जगह बड़े पैमाने पर छोटी व बड़ी दरारें देखी जा सकती हैं। खबरों की मानें तो अब तक लगभग 620 घरों में दरारें आ चुकी है, कुछ जगहों पर दरारों में से जल रिसाव तक भी हो रहा है। रिसाव हो रहे जल को जांच के लिए भिजवाया गया है। इस स्थिति के चलते शहर की बड़ी आबादी के सिर पर ख़तरा मंडरा रहा है। हालांकि प्रशासन अब पल-पल की स्थिति पर नज़र रखे हुए है, उसने ख़तरे वाले बहुत सारे घरों को खाली करवा लिया है और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया, साथ ही प्रशासन ने उस क्षेत्र में चल रहे एनटीपीसी व सड़क के विभिन्न निर्माण को तत्काल प्रभाव से रुकवा दिया है।
इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती पिछले कुछ दिनों से ही लगातार शासन-प्रशासन को चेता रहे थे, लेकिन फिर भी ना जाने क्यों सिस्टम कुंभकर्णी नींद में ही सोता रहा। जिसके चलते ही जोशीमठ क्षेत्र में दुर्घटनाओं की आशंकाओं से भयभीत शहरवासी कुछ दिनों से सड़कों पर आंदोलनरत होकर कड़ाके की ठंड में ठिठुरते हुए रात गुजारने के लिए मजबूर हैं। हालांकि वैसे देखा जाए तो विकास के नाम पर हो रही बंदरबांट, लापरवाही, भ्रष्टाचार और लोभ-लालच ने हिमाचल की गोद में बसे हुए उत्तराखंड के बहुत सारे इलाकों को विकास की आड़ में खोखला करने का कार्य किया है। धरातल पर स्थिति का आकलन करें तो उत्तराखंड का जोशीमठ शहर मनुष्य के द्वारा प्रकृति के ग़लत ढंग से दोहन का आज एक बड़ा उदाहरण बन गया है। लोगों व सिस्टम के द्वारा इस क्षेत्र में किये गये अव्यवस्थित विकास की भेंट चढ़ने के पायदान पर आकर आज जोशीमठ जैसा बड़ा शहर भी खड़ा हो गया है, जो बहुत ही चिंताजनक है।
हालांकि पहले भी उत्तराखंड के निवासियों ने समय-समय पर कई छोटी बड़ी आपदाओं को बेहद करीब से देखा है। राज्य की जनता ने केदारनाथ जैसी दैवी आपदा के दुःख दर्द को भी झेला है। उसके बाद भी राज्य में अंधाधुंध अव्यवस्थित निमार्ण कार्य जगह-जगह भू-खनन व पहाड़ों को काट कर सड़कों के चौड़ी करण के कार्यों में बड़े पैमाने पर नियमों का उल्लघंन करके प्रकृति को भारी नुक़सान पहुंचाया जा रहा है। राज्य में विकास के नाम पर शहर व बहुत सारे गांवों का अस्तित्व या तो खतरे में है या समाप्त हो गया है। अंधाधुंध विकास के चलते जैव विविधता भी दिन प्रतिदिन विनाश को प्राप्त होती जा रही है। ऐसी ही स्थिति की वजह से आध्यात्मिक भूमि जोशीमठ में भय का माहौल व्याप्त है, यहां के निवासी पलायन करने को मजबूर हो रहें हैं। लेकिन अब इस बेहद गंभीर हो चुकी समस्या के समाधान के लिए ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट में अपने अधिवक्ता एसपी मिश्रा के माध्यम से पीआईएल दाखिल की है। वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी स्वयं जोशीमठ आकर हालात को देखा है, जिसके बाद क्षेत्रवासियों में एक उम्मीद की किरण जगी है।
- दीपक कुमार त्यागी
System of uttarakhand invites new troubles without taking lessons from past calamities