पीएफआई पर प्रतिबंध का फैसला देर से उठाया गया एक सही कदम है
आखिरकार तमाम किन्तु-परंतु के बीच पीएफआई को बैन कर ही दिया गया। केंद्र कि मोदी सरकार ने 27 अक्टूबर को देर रात्रि एक राजपत्र अधिसूचना जारी कर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के कड़े प्रावधानों के तहत ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पीएफआई (पीएफआई) पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाए जाने की घोषणा की तो इस पर सियासत भी शुरू हो गई। पीएफआई के साथ-साथ ही आठ अन्य संगठनों की भी नकेल कसी गई है। ये सभी संगठन आतंकी गतिविधियों में शामिल थे। प्रतिबन्ध लगाने के बाद पीएफआई ने पहली प्रतिक्रिया में बहुत ठंडा जवाब देते हुए कहा कि सभी को सूचित किया जाता है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को भंग कर दिया गया है। पीएफआई सरकार के इस निर्णय को स्वीकार करता है। पीएफआई पर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। दावा ये भी किया जा रहा है पीएफआई प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमी का ही नया अवतार है। इस आशंका की वजह ये है कि कुछ दिनों से चल रही छापेमारी में देश के अलग-अलग भागों से पीएफआई के जो नेता और पदाधिकारी गिरफ्तार किए गए हैं, इनका पूर्व में सिमी के साथ टेरर कनेक्शन पाया जाचुका था। प्रतिबंध से पूर्व पीएफआई के ठिकानों पर दो बार हुई छापेमारी और इस दौरान अनेक संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया जाना यही बताता है कि इस संगठन का मकड़जाल बेहद मजबूत हो गया था। पहली बार के छापों में एक दर्जन राज्यों में इस संगठन के ठिकानों पर एनआइए और ईडी के छापों के दौरान सौ से अधिक लोगों को पकड़ा गया था। उस समय अनेक ऐसे आपत्तिजनक दस्तावेज मिले थे, जो यही बताते थे कि यह संगठन किसी आतंकी संगठन की तरह देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त है। इसलिस ऐसे संगठन के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करने के साथ ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे समूह सिर न उठा सकें।
पीएफआई के बारे में एक लंबे समय से न केवल यह कहा जा रहा है कि यह प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का नया रूप है, बल्कि यह भी कहा जा रहा था कि यह ऐसी गतिविधियों में लिप्त है, जिन्हें आतंकी हरकतों के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। हैरानी है कि ऐसे संगीन आरोपों से दो-चार होने के बाद भी उसके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई- और वह भी तब, जब रह-रहकर उसके सदस्यों के बारे में ऐसे तथ्य सामने आते रहे कि वे देश को अस्थिर-अशांत करने के षड्यंत्र में लिप्त हैं।
2012 में केरल सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि पीएफआई और कुछ नहीं, बल्कि प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी का ही नया रूप है। पीएफआई कार्यकर्ताओं के अलकायदा और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों से लिंक होने के आरोप भी लगते रहे हैं। एनआईए के सूत्रों का दावा है कि पीएफआई के कई सदस्य पहले स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया और इंडियन मुजाहिदीन जैसे प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े थे। पीएफआई नेता अब्दुल रहमान कथित तौर पर सिमी का राष्ट्रीय सचिव हुआ करता था। सूत्रों का दावा है कि पीएफआई का राज्य सचिव अब्दुल सत्तार भी इसी तरह की ऊंचे पद पर सिमी से जुड़ा हुआ था। पीएफआई की स्थापना 2006 में की गई थी और चार साल बाद 24 जुलाई 2010 को केरल के तत्कालीन सीएम और वामपंथी नेता वीएस अच्युतानंदन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दावा किया था कि पीएफआई केरल को अगले 20 सालों में मुस्लिम बहुल राज्य बनाने की साजिश रच रहा है। इसके लिए संगठन युवाओं को पैसा और हथियार दे रहा है। युवाओं को मुस्लिम बनाने के लिए पैसा और अन्य लालच दिए जा रहे हैं।
दरअसल, पीएफआई नफरत और खून खराबे का कारोबार काफी सलीके से चला रहा था। इसके लोग न केवल विदेशों से अवैध तरीके से धन एकत्र कर रहे थे, बल्कि उसका इस्तेमाल कट्टरता, आतंक और अलगाव को हवा देने में कर रहे थे। अब तो यह भी स्पष्ट है कि यह संगठन हिंदू विरोधी भावनाओं को भड़काने के साथ सामाजिक ताने-बाने और कानून एवं व्यवस्था के समक्ष गंभीर चुनौतियां भी खड़ी कर रहा था। हिंदूफोबिया यानी हिंदुओं को खतरा बताकर उन्हें एक हौवे के रूप में चित्रित करना कोई नई-अनोखी बात नहीं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि पीएफआई इस काम में जुटा हुआ था। वास्तव में हिंदूफोबिया को राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हवा दी जा रही है। इसका ताजा उदाहरण है इंग्लैंड के शहर लेस्टर में हुई हिंदू विरोधी हिंसा। लेस्टर के बाद बर्मिंघम में भी हिंदू विरोधी उन्माद की झलक मिली। ध्यान रहे कि कनाडा और अमेरिका में भी इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं, जो यह बयान करती हैं कि कई अंतरराष्ट्रीय ताकतें हिंदूफोबिया को बल देने में लगी हुई हैं।
कुछ समय पहले इसके संकेत तब मिले थे, जब ज्ञानवापी मामला सतह पर था। उस समय पाकिस्तान और अन्य देशों में सक्रिय भारत विरोधी ताकतों ने हिंदूफोबिया फैलाने का काम एकजुट होकर किया था। इसमें संदेह नहीं कि पीएफआई के संबंध ऐसी कई ताकतों से हैं। इस संगठन के खिलाफ जितने और जैसे प्रमाण मिल चुके हैं, उन्हें देखते हुए उस पर पाबंदी लगाने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए। लब्बोलुआब यह है जब से भारतीय जनता पार्टी ने हिन्दुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया है तभी से मुस्लिम कट्टरपंथी भी अपना सिर उठाने लगे हैं। बाबरी मस्जिद विवाद के बहाने सिमी और पीएफआई को मुस्लिमों को उकसाने का एक नया मौका मिल गया।
-अजय कुमार
The decision to ban pfi is a late but good step