The Kashmir Files Review: कश्मीरी पंडितों के दर्द महसूस कराती है द कश्मीर फाइल्स, याद रहेगी अनुपम खेर की एक्टिंग
द कश्मीर फाइल्स कश्मीरी पंडितों के पलायन के दर्द को दिखाती है। कश्मीरी पंडितों का यह दर्द आपको बेचैन कर देगा। ऐसा नहीं है कि लोग कश्मीर का यह व्याकुल सच नहीं जानते कि कैसे आतंकियों ने कश्मीरी हिंदुओं को उनकी जमीन से बेदखल किया। बेरहमी से कत्ल किया। उनकी महिलाओं बच्चों पर शर्मनाक अत्याचार किए। कश्मीरी लोग कैसे देश प्रदेश की सरकार, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और मीडिया कैसी तत्वों के बावजूद अपनी ही धरती पर शरणार्थी बनकर रह गए और उन्हें आज तक न्याय नहीं मिला। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इसी दर्द की कहानी को कश्मीर फाइल्स के जरिए पर्दे पर उतारा है।
यह कहानी रिटायर्ड टीचर पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) और उनके परिवार को केंद्र में रखते हुए चलती है। उनके बहाने कश्मीरियों के जख्मों और तकलीफों को बयां करती है। जेएनयू दिल्ली में पढ़ने वाला उनका जवान पोता कृष्णा (दर्शन कुमार) जब कश्मीर पहुंचता है, तो पुष्कर नाथ के पुराने दोस्तों आईएएस ब्रह्मा दत्त (मिथुन चक्रवर्ती), डीजीपी हरि नारायण (पुनीत इस्सर), डॉ महेश कुमार (प्रकाश बेलावाडी) और पत्रकार विष्णु राम (अतुल श्रीवास्तव) से मिलता है। वहां उसका सामना हकीकत से होता है। वह उस आतंकी फारुख मलिक बिट्टा (चिन्मय मांडलेकर) से भी मिलता है, जो उसके परिवार समेत कश्मीर की बर्बादी का जिम्मेदार है। विश्वविद्यालय में कश्मीर को देश से अलग करने के नारे लगाने वाले कृष्णा को वहां सच्चाई पता चलती है और उसकी आंखों के आगे से पर्दा हटता है। विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म में कश्मीर से जुड़े दुष्प्रचारों को फिल्म में दिखाने की कोशिश तो की है लेकिन उसे लेकर बहुत ज्यादा मुखर नहीं हुए हैं। कश्मीर फाइल्स में वह राजनीति से अधिक वहां के हिंसक घटनाक्रम और कश्मीर को भारत से तोड़ने वाली षड्यंत्रकारी सोच पर फोकस करते हैं।
इस फिल्म में दिखाई गई हिंसा कहीं कहीं आप को झकझोर देती है। एक सीन में चावल की कोठी में छुपे पंडित के बेटे को जब आतंकी गोलियों से छलनी कर देता है तो उसके खून से सने चावल बिखर जाते हैं। आतंकी पंडित की बहू से कहता है कि अगर वह इस चावल को खाएगी, तभी उसकी और उसके परिवार के दूसरे लोगों की जान बच सकती है। वह चावल खाती है। एक दूसरे सीन में आतंकी पुलिस की वर्दी में 24 कश्मीरी हिंदुओं को एक लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून देते हैं। वे कश्मीरी हिंदुओं और भारत का अपमान करने वाले नारे लगाते हैं।
लगभग 3 घंटे की इस फिल्म का पहला हिस्सा जहां कश्मीर में 1990 में हुए भीषण नरसंहार पर केंद्रित है, वहीं दूसरे में निदेशक कृष्णा के बहाने नई पीढ़ी के असमंजस को दिखाते हैं, जिसे बताया कुछ गया है और सच कुछ और है। कश्मीर की आजादी के नारे, बेनजीर भुट्टो के वीडियो और फैज की नज़्म हम देखेंगे के बहाने निर्देशक आतंकियों और अलगाववादियों के इरादे जाहिर करते हुए नई पीढ़ी की उलझन को सामने लाते हैं। काली बिंदी लगाई हुई वामपंथी उदारवादी प्रो. राधिका मोहन के रूप में पल्लवी जोशी जहां युवाओं को गुमराह करने वालों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
फिल्म बहुत सारे पंडितों की सच्ची कहानियों और दस्तावेजों पर आधारित है। यह फिल्म बार-बार फ्लैशबैक में जाती है और 1 सीध में नहीं चलती। तथ्यों पर ज्यादा जोर देने की वजह से कहीं-कहीं यह फिल्म डॉक्युड्रामा की तरह भी लगती है। निर्देशक ने आर्टिकल 370 से लेकर शरणार्थी कैंपों में कश्मीरियों की दुर्दशा को और उस पर राजनेताओं की संवेदनहीनता को उभारा है। यह फिल्म कई बातों को सामने लाती है जो लोगों को जानी चाहिए। यह मनोरंजन का नहीं बल्कि संवेदना का सिनेमा है।
The kashmir files review the kashmir files makes you feel pain kashmiri pandits