History Revisited: रूपकुंड की वो झील जो इंसानों के कंकाल उगलती है
ये कहानी है ऐसे कुंड की जिसका रहस्य 1200 सालों से अनसुलझा है। इस कुंड के रहस्य को हजारों इंसानों ने अपनी आंखों से देखा है। लेकिन इसकी सच्चाई आज तक गुमनाम है। आखिर क्यों इस कुंड में मछलियों की जगह मिलते हैं, इंसानों के कंकाल? आखिर कैसे बर्फीली वादियों में एक सामूहिक कब्रगाह बन गया? आखिर क्या है झील के अंदर और बाहर मिलने वाली इंसानी हड्डियों का सच? आज आपको इस रिपोर्ट के माध्यम से बताएंगे उत्तराखंड के चमोली जिले के रूपकुंड की कहानी जो कंकाल उगलती है। दरअसल, उत्तराखंड के हिमालय की बर्फीली चोटियों के बीच स्थिति रुपकुंड झील की कहानी कुछ ऐसी ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां एक अरसे से इंसानों के कंकाल बिखड़े हुए हैं। यही वजह है कि इसे लेक ऑफ स्कैलटन भी कहा जाता है। उत्तराखंड में स्थित ये झील समुंद्र तट से करीब 5000 मीटर की ऊंचाई पर है। यूं तो ये झील पूरे साल बर्फ से जमी रहती है। मगर मौसम और सीजन के हिसाब से छोटी-बड़ी भी होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्मी के दिनों में बर्फ पिघलने लगता है। यही वक्त होता है जब यहां इंसानों के कंकाल नजर आते हैं। बर्फ में दबे होने के कारण उनमें से कई पर मांस भी लगा होता है। 1942 में पहली बार एक ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड को ये कंकाल दिखे थे। उस समय ये माना गया था कि ये कंकाल जापानी सैनिकों के हैं।
रुपकुंड नाम क्यों पड़ा?
कंकाल वाली इस झील का एक सिरा भगवान शिव और माता पार्वती से भी जुड़ा माना जाता है। दावे किए जाते हैं कि ये वही कुंड है जिसे भगवान शिव ने अपने त्रिशुल से बनाया था। जिससे निकले पानी को पीकर माता पार्वती ने अपनी प्याल बुझाई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत की ओर गमन कर रहे थे। इस दौरान जब माता पार्वती प्यास से व्याकुल हो उठीं तो भोलेनाथ ने अपने त्रिशुल के जरिए कुंड की रचना कर डाली। माता पार्वती ने अंजुलि से कुंड का जल पीकर अपनी प्याल बुझाई। माना जाता है कि जल पीते समय रूपकुंड के जल में अपने श्रृंगार का प्रतिबिम्ब देख वो अति हर्षित हो उठीं। माता पार्वती को प्रसन्न और प्रफुल्लित देख महादेव ने इस कुंड को रूपकुंड का नाम दे दिया।
कैसे बनी कंकालों वाली झील
फिर आखिर प्रेम की प्रतीक माने जाने वाली ये झील इतनी डरावनी और खौफनाक कैसे हो गई? पहले माना गया ये कंकालों में एक समूह एक परिवार का था। लेकिन फिर पता चला कि भारत, ग्रीस और साउथ एशिया के लोगों के कंकाल इनमें शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन कंकालों की स्टडी की गई। नेचर कम्युनिकेशन पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार 71 कंकालों के टेस्ट हुए। इनमें से कुछ की कार्बन डेटिंग हुई और कुछ का डीएनए जांचा गया। कार्बन डेटिंग एक ऐसा टेस्ट है जिससे पता चलता है कि कोई भी अवशेष वो कितना पुराना है। पता चला की ये सभी कंकाल एक समय के नहीं है। इनमें महिलाओं और पुरूषों दोनों के कंकाल पाए गए। अब तक यहां 600 से 800 लोगों के कंकाल पाए गए हैं। हालांकि सारे दावों से इतर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार इसे रहस्यमयी झील के तौर पर पेश करती है।
जितने लोग उतने दावे
हिमालय वो बर्फीला इलाका। देखने में जितना सुहाना लगता है उतना ही रहस्यमयी भी है। बर्फ की गहरी कोख में ऐसे हजारों राज आज भी दफ्न हैं, जिसे सदियों से कोई भी नहीं जान पाया है। कोई कहता है कि ये कंकाल किसी राजा की सेना के जवानों के हैं। कोई इसे देवी के क्रोध का परिणाम मानता है। इस झील के पास ही पहाड़ों की देवी नंदा का मंदिर भी है। उनके दर्शन के लिए एक राजा और रानी ने पहाड़ चढ़ने की ठानी। लेकिन वो अकेले नहीं गए बल्कि अपने साथ पूरा लाव-लश्कर लेकर गए। पूरे राग-रंग में उन्होंने अपने सफर को पूरा किया। लेकिन ये देखकर देवी गुस्सा हो गईं। उनका क्रोध बिजली बनकर उन पर गिरा और वो वहीं मौत के मुंह में समा गए। कहने वाले तो ये भी कहते हैं कि ये किसी महामारी के शिकार लोग हैं। जबकि कुछ लोग इन कंकालों को दूसरे युद्ध में मारे गए जापानी यूरोपीय सैनिकों का मानते हैं। लेकिन इसके पीछे की सच्चाई क्या है, ये अभी तक राज ही बनी हुई है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये कंकालों कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह और उनके आदमियों के हैं। जो 1841 में तिब्बत के युद्ध से लौट रहे थे।
नरकंकाल पर हो चुके हैं कई शोध
भारत, अमेरिका और जर्मनी में स्थित 16 संस्थानों के 28 सह-लेखकों को शामिल करते हुए नवीनतम पांच साल के लंबे अध्ययन में पाया गया कि ये सभी धारणाएं सच नहीं हो सकती हैं। वैज्ञानिकों ने झील में पाए गए 15 महिलाओं सहित 38 अवशेषों का आनुवंशिक रूप से विश्लेषण और कार्बन-डेट किया- उनमें से कुछ लगभग 1,200 साल पुराने बताए जाते हैं। इस शोध के लिए नरकंकालों के सौ सैंपल की ऑटोसोमल डीएनए, माइटोकॉन्डियल और वाई क्रोमोसोम्स डीएनए जांच कराई गई। ये भी जांचा गया कि इन कंकालों में आपस में तो कोई संबंध नहीं था। रिसर्च में ये पाया गया कि ये लोग एक परिवारों के नहीं रहे होंगे। क्योंकि इनके डीएनए के बीच सामानता वाला कारक नहीं पाया गया। जांच में इन कंकालों से कोई बीमारी पैदा करने वाले वैक्टीरिया या कीटाणुओं के अवशेष भी नहीं मिले। इससे इस बात की संभावना अधिक है कि इनकी मौत की वजह महामारी नहीं रही होगी। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि ये सभी कंकाल वहां पर एक साथ एक समय एकट्ठा नहीं हुए। अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि मरे हुए लोग जेनेटिक रूप से अलग-अलग हैं और उनकी मौतों के बीच में 1,000 साल तक का अंतर है। हालांकि किन वजहों से इनकी मौत हुई इसको लेकर अभी तक एकमत होकर कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
- अभिनय आकाश
The lake of roopkund which spews human skeletons