विदेशी बाजारों में गिरावट के रुख और सस्ते आयातित तेलों की वजह से दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बृहस्पतिवार को सरसों तेल-तिलहन, सोयाबीन तेल, कच्चे पामतेल (सीपीओ), बिनौला और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली, जबकि सामान्य कारोबार के बीच सोयाबीन तिलहन और मूंगफली तेल-तिलहन के भाव पूर्वस्तर पर रहे। मलेशिया एक्सचेंज में दो प्रतिशत की गिरावट थी और शिकॉगो एक्सचेंज फिलहाल लगभग 1.75 प्रतिशत नीचे चल रहा है। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि किसान नीचे भाव में सोयाबीन दाना नहीं बेच रहे हैं।
तेल मिलों को पेराई करने में सोयाबीन तेल के दाम ऊंचा बैठते हैं जिस वजह से उन्हें तेल पेराई में नुकसान है। सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन की अधिक खपत अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीने में होती है। एक दिसंबर को देश में सोयाबीन का बचा हुआ स्टॉक 111.71 लाख टन था। अब जब अगले वर्ष जून, जुलाई में बिजाई होगी तो वह स्टॉक कहां खपेगा? आयातित तेल के दाम टूटे रहे तो निश्चय ही किसान कम बुवाई करने को बाध्य होंगे। सूत्रों ने कहा कि बृहस्पतिवार को वायदा कारोबार में बिनौला तेल खली का भाव 1.5 प्रतिशत बढ़ गया।
इसकी मंडियों में आवक भी 1.09 लाख गांठ से घटकर एक लाख गांठ से कम रह गई। सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों से होने वाले नुकसान को काबू में करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाते हुए, रैपसीड की तरह आयातित सस्ते सूरजमुखी और सोयाबीन तेल पर 38.5 प्रतिशत या 40 प्रतिशत से अधिक आयात शुल्क लगाना चाहिये जो तेल उद्योग, किसानों, उपभोक्ताओं को राहत देगा और महंगाई को भी काबू में लायेगा।
सूत्रों ने कहा कि देश में सूरजमुखी और अन्य ‘सॉफ्ट’ (हल्के) तेल का आयात लगभग 35-40 प्रतिशत का ही होता है और अधिकांश आयात पाम पामोलीन का होता है जिसे गरीब तबके के लोग और खानपान उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है। पामोलीन का असर देशी तेल-तिलहनों पर कोई खास नहीं है इसलिए धनी तबकों में खपत होने वाले सूरजमुखी और सोयाबीन पर आयात शुल्क अधिकतम लगाने के बारे में सोचना चाहिये। इससे कई हित एक साथ पूरे होंगे। एक तो सरकार को राजस्व की प्राप्ति होगी, दूसरा विदेशी मुद्रा खर्च की बचत होगी, किसानों के देशी तिलहन बाजार में आसानी से खप जायेंगे और वे तिलहन उत्पादन बढ़ाने को प्रेरित होंगे और आगामी सरसों की रिकॉर्ड अनुमानित उत्पादन के बाजार में खपने की चिंता खत्म हो जायेगी।
इसके अलावा हमें खल और डीओसी के लिए चिंता नहीं करनी होगी। सूत्रों ने कहा कि हमारा देश अपनी 60 प्रतिशत खाद्य तेलों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है तो ऐसे में सोयाबीन का स्टॉक जमा बचना काफी चिंताजनक है। जब देश में तिलहन उत्पादन भी बढ़ रहा हो तो आयात कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। इसका एकमात्र कारण है कि सस्ते आयातित तेल के कारण हमारे माल बाजार में गैर-प्रतिस्पधी हो रहे हैं।
यह कोई अच्छा संकेत नहीं है और इसे हल करने के लिए आयात शुल्क ज्यादा से ज्यादा किया जाना चाहिये। देश को आयात पर निर्भर रहने के बजाय खुद का तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाने से ही इन समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। बृहस्पतिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन - 7,020-7,070 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली - 6,460-6,520 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,150 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,435-2,700 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 14,000 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 2,125-2,255 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 2,185-2,310 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,050 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 12,900 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 11,350 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,500 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 11,550 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,050 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,150 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,525-5,625 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज- 5,335-5,385 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।
The prices of oil and oilseeds broke amid the decline in foreign markets
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