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‘तिरुमाला ब्रह्मोत्सवम’ जानें इससे जुड़े रोचक तथ्य और महत्व

‘तिरुमाला ब्रह्मोत्सवम’ जानें इससे जुड़े रोचक  तथ्य और महत्व

‘तिरुमाला ब्रह्मोत्सवम’ जानें इससे जुड़े रोचक तथ्य और महत्व

तिरुमाला तिरुपति मंदिर में मनाया जाने वाला ब्रह्मोत्सवम प्रमुख वार्षिक त्यौहारों में से एक माना जाता हैं। नौ दिनों तक मनाया जाने वाला यह धार्मिक उत्सव भगवान वेंकटेश को समर्पित है। इस त्यौहार का भव्य और शानदार तरीके से आयोजन किया जाता है। इस पर्व में सम्मिलित होने के लिए पूरे देश भर से भक्तगण आते हैं और भगवान वेंकटेश के दर्शन करते है। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति भगवान वेंकेटेश्वर के स्नान अनुष्ठान का दर्शन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस वर्ष ब्रह्मोत्सवम 26 सितम्बर से लेकर 5 अक्टूबर तक मनाया जायेगा।

क्यों मनाया जाता है ब्रह्मोत्सवम ?

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब इंद्र ने एक ब्राह्मण राक्षसी का वध कर दिया था तो उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया था और इस पाप के कारण इंद्र को स्वर्ग का त्याग करना पड़ा था। इस दोष से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने ब्रह्माजी से प्रार्थना की और इनकी इस समस्या से निदान के लिए ब्रह्माजी ने एक समारोह का आयोजन किया। जिसमें ब्रह्माजी ने भगवान वेंकेटश्वर को अपने सिर पर उठाकर एक विशेष अनुष्ठान किया। यह अनुष्ठान भगवान वेंकटेश का पवित्र स्नान था। ब्रह्मोत्सवम का यह पर्व इसी कथा पर आधारित है इसीलिए प्रतिवर्ष यह पर्व मनाया जाता है।

क्या है ब्रह्मोत्सवम का इतिहास ?

इस पर्व को लेकर काफी पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित है क्योंकि इन कथाओं इस पर्व का महत्व साफ़ झलकता है। इस पर्व के इतिहास की बात करें तो एक पौराणिक कथा के अनुसार स्वयं ब्रह्माजी इस अनुष्ठान को करने के लिए धरती पर पधारे थे। इसी कारण से इस पर्व को ब्रह्मोत्सवम के नाम से जाना जाता है। जिसका अर्थ है ब्रम्हा का उत्सव। इसीलिए ब्रह्मोत्सवम के पर्व पर भगवान वेंकटेश्वर के रथ के आगे-आगे ब्रम्हाजी का खाली रथ भी चलता है।

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ब्रह्मोत्सवम का महत्व

ब्रह्मोत्सवम का पर्व कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस पर्व पर तिरुमाला तिरुपति मंदिर में सामान्य दिनों की तुलना में कहीं ज्यादा भीड़ होती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी कोई व्यक्ति भगवान वेंकटेश्वर के इस पवित्र स्नान का दर्शन करता है वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है। यह पर्व धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ ही भक्तों को पौराणिक कथाओं से भी परिचित कराता है और साथ ही हमें इस बात का संदेश भी देता है कि यदि कोई भी व्यक्ति चाहे वह ब्राम्हण या स्वयं देवता ही क्यों ना हो, यदि वह गलत काम करता है तो ईश्वर द्वारा उसे भी दंडित किया जाता है।

कैसे मनाया जाता है ब्रह्मोत्सवम?

तिरुमाला तिरुपति मंदिर में आयोजित यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। जिसमें हर दिन ख़ास होता है और हर दिन के लिए अलग-अलग आयोजन किये जाते है।

पहला दिन

उत्सव के पहले दिन मंदिर के ध्वजा स्तम्भ पर गरुण ध्वज फहराया जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि गरुण ध्वज देवलोक की तरफ लेकर जाता है और सभी देवी-देवताओं को इस पर्व में सम्मिलित करने के लिए आमंत्रित भी करता है। इसके साथ ही विभिन्न देवी-देवताओं को विभिन्न तरह के वाहनों में बिठाकर मंदिर का चक्कर लगाया जाता है और शाम में पूजा-अर्चना की जाती है।

दूसरा दिन 

दूसरे दिन ‘चिन्ना शेषा वाहनम’ नामक जुलूस निकाला जाता है। दूसरे दिन का पर्व नागों के देवता वासुकी को समर्पित होता है। इसमें भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति को पांच फनों वाले वासुकी नाग की प्रतिमा के नीचे बैठाकर जुलूस निकाला जाता है। शाम में भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा को हंसरुपी वाहन पर बैठाकर जूलूस निकाला जाता है। क्योंकि हंस पवित्रता का प्रतीक है और यह अच्छाई को बुराई से अलग करने का काम करता है।

तीसरा दिन

तीसरे दिन ‘सिम्हा वाहनम’ नामक जूलूस निकाला जाता है। इस दौरान भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति को शेररुपी वाहन पर बैठाकर जूलूस निकाला जाता है। जो कि भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को प्रदर्शित करता है, इस अवतार में उनका आधा शरीर शेर का था और आधा मनुष्य का। शाम को मुथयला ‘पल्लकी वाहनम’ का अनुष्ठान किया जाता है। जिसमें भगवान वेंकटेश्वर को उनकी धर्मपत्नी श्रीदेवी और भूदेवी के साथ मोतियों से सुशोभित एक बिस्तर पर पालकी में बैठाकर घुमाया जाता है।

चौथा दिन

चौथे दिन भगवान वेंकटेश की मूर्ति को कल्पवृक्ष के वाहन में बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। ऐसी  मान्यता है कि कल्पवृक्ष सभी वरदानों की पूर्ति करता है और भगवान वेंकटेश्वर भी अपने भक्तों की सभी इच्छाई पूरी करते हैं इसलिए चौथे दिन के अनुष्ठान को ‘कल्पवृक्ष वाहनम’ के नाम से जाना जाता है। शाम के समय ‘सर्व भूपाला वाहनम’ नामक अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। जिसमें कि भगवान वेंकटेश्वर को एक ऐसी पालकी में बैठाकर घुमाया जाता है। जिसे ‘सर्वभूपाल वाहनम’ कहा जाता है। जो कि इस बात का संकेत देता है कि भगवान वेंकटेश्वर सभी के पालनकर्ता है।

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पांचवां दिन 

पांचवें दिन भगवान वेंकेटेश्वर की प्रतिमा को सजाकर एक विशेष तरह का अनुष्ठान किया जाता है। जिसे ‘मोहिनी अवस्थरम’ कहा जाता है, यह भगवान विष्णु के द्वारा मोहिनी रुप धारण किये जाने पर और देवताओं को अमृत पिलाने की घटना को प्रदर्शित करता है। साथ ही भगवान वेंकेटेश्वर अपने वाहन गरुण पर विराजमान होते है और भक्तों के द्वारा उन्हें चारों ओर घुमाया जाता है इसलिए इस अनुष्ठान को ‘गरुढ़ वाहनम’ के नाम से भी जाना जाता है।

छठा दिन

छठे दिन भगवान वेंकेटेश्वर की मूर्ति को हनुमानरुपी वाहन के ऊपर बैठाकर घुमाया जाता है क्योंकि हनुमानजी को भगवान विष्णु के त्रेता अवतार प्रभु श्रीराम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। इस अनुष्ठान को ‘हनुमंत वाहनम’ के नाम से जाना जाता है। शाम के समय भगवान वेंकेटेश्वर की मूर्ति  को सोने से बने हाथी,  जिसे कि ऐरावत के नाम से जाना जाता है उसपर बैठाकर घुमाया जाता है। यह भगवान विष्णु के उस घटना को प्रदर्शित करता है जिसमें श्रीविष्णु ने अपने भक्त गजेंद्र को मगरमच्छ के चंगुल से छुड़ाया था। इस अनुष्ठान को ‘गज वाहनम’ के नाम से  भी जाना जाता है।

सातवाँ दिन 

सातवें दिन भगवान वेंकेटेश्वर की मूर्ति को सूर्यदेव द्वारा चलाये जा रहे रथरुपी वाहन पर बैठाकर घुमाया जाता है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य की उत्पत्ति श्रीनारायाण की आंखों से हुई थी और सूर्य को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है। इस अनुष्ठान को ‘सूर्यप्रभा वाहनम’ के नाम से भी जाना जाता है। शाम को भगवान वेंकेटेश्वर को चंद्रमारुपी वाहन पर बैठाकर घुमाया जाता है और इस अनुष्ठान को ‘चंद्रप्रभा वाहनम’ के नाम से जाना जाता है।

आठवां दिन 

आठवें दिन भगवान वेंकेटेश्वर को उनकी पत्नियों के साथ रथ में बैठाकर घुमाया जाता है। इस दौरान हर तरफ गोविंद नामा स्माराना की गूंज होती है। इस अनुष्ठान को ‘रथोत्सवम’ के नाम से जाना जाता है। शाम में भगवान वेंकेटेश्वर को अश्वरुपी वाहन पर बैठाकर घुमाया जाता है क्योंकि यह उनके कलयुग में आने वाले कल्कि अवतार को प्रदर्शित करता है। इस अनुष्ठान को अश्व वाहनम नाम से भी जाना जाता है।

नौवां दिन

नौवें दिन भगवान वेंकेटेश्वर के लिए एक विशेष अभिषेक का आयोजन किया जाता है। इसमें भगवान वेंकेटेश्वर, पत्नी श्रीदेवा और भूदेवी के साथ अभिषेक किया जाता है। इस अनुष्ठान को ‘चक्र स्नानम’ के नाम से जाना जाता है। इस दौरान भारी संख्या में श्रद्धालु इकठ्ठा होकर पुष्करणी नदी के जल में डुबकी लगाते है। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन इस अनुष्ठान का दर्शन करके पुष्करणी नदी में डुबकी लगाता है। उसके सभी पाप दूर हो जाते है। इस अनुष्ठान को चक्र स्नानम के नाम से भी जाना जाता है। शाम में ‘ध्वजाअवरोहणम’ का अनुष्ठान किया जाता है। जिसमें गरुणध्वज को नीचे उतार लिया जाता है और यह इस बात का संकेत देता है कि ब्रह्मोत्सवम का यह पर्व अब समाप्त हो गया है। 

- रौनक 

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