अहंकार से मुक्त संयमी हृदय को मनुष्य का सहज स्वभाव माना गया है। संयमी व्यक्ति आध्यात्मिक, विवेकशील, ईमानदार और समाज का भला करने वाला होता है। ऐसे लोग ही विजयी कहलाते हैं। संयम के अभाव में व्यक्ति में क्रोध, हिंसा और मानसिक अशांति बनी रहती है। इसका प्रभाव उनके जीवन पर भी देखने को मिलता है, जिसके फलस्वरूप असंयमी व्यक्ति उद्दंड और सभी को कष्ट देने लगता है। उनके विचार सात्विक नहीं रह जाते। जिस मनुष्य में इन सब गुणों का अभाव होता है वह इन्द्रियों का दास बन जाता है। यदि मनुष्य जीवन में किसी पूजा आचमन या योग ध्यान का अभ्यास नहीं करता है लेकिन जीवन संयमित है तो वह सदा दुर्गुणों से दूर रहेगा और सभी सांसारिक सुखों से पूर्ण जीवन व्यतीत करेगा।
रावण को सभी वेदों का ज्ञान था, उसने शिव तांडव और युद्धीशा तंत्र और प्रकुठा कामधेनु जैसी कृतियों की रचना की थी, देवताओं को भी परास्त करने वाला महाज्ञानी था। लेकिन उसे अपनी शक्ति का अहंकार हो गया था, अहंकार जैसे दुर्गुणों के कारण रावण का वध हुआ। रावण वध के उपरांत विभीषण ने श्री राम से कहा रावण महाअहंकारी था उसे अपनी शक्ति का अहंकार था 'आपने रावण का वध करके महान विजय प्राप्त की है'। तब श्री राम ने कहा 'यह तो साधारण विजय है, असाधारण विजय तो अपने दुर्गुणों पर संयम पा लेना होता है। संयमित व्यक्ति संसार को जीत सकता है'। संसार के व्यसनों और इन्द्रियों पर विजय ही सच्ची विजय है।
जो मनुष्य धर्म के मार्ग पर चलते हैं वही सच्ची विजय के अधिकारी हैं, धर्म व्यक्ति धैर्यवान बनाता है। यदि मनुष्य सत्य का मार्ग अपनाये तो उसको विजयी होने से कोई नहीं रोक सकता है। शौर्य की प्राप्ति में सत्य ही सहायक है, विवेक, धर्म, दया और संयमी व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता, संयमी और अहंकार से रहित व्यक्ति किसी से छल नहीं करता और असत्य से दूर रहता है। काम, क्रोध, अहंकार, द्वेष, लालच से दूर होकर संसार का भला करता है। सांसारिक चंचलता से दूर होकर क्षमाशील बनता है। सांसारिक बातों से दूरी बनाकर मन को स्थिर बनाने का प्रयास करें सांसारिक घटनाएं मन को व्यथित करती हैं जिससे शरीर और मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । भगवदगीता के अनुसार ध्यान और योग के द्वारा हम खुद को जान सकते हैं यह आपको स्वयं पर नियंत्रण के मार्ग प्रदर्शित करता है। कामनाओं से रहित जीवन की ओर अग्रसर करता है ।
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