विकास की छत के नीचे (व्यंग्य)
यह एक शानदार सच है कि विकास का वास्तविक मतलब सड़क, पुल, बांध, बरसात के बाद गड्ढों की बढ़िया मरम्मत व इमारतों आदि का निर्माण होता है। विकास का अर्थ यह तो हो नहीं सकता कि सब एक समान फलें फूलें, ठिगने बंदों का कद लंबा हो जाए। नागरिकों की सभी किस्म की सेहत बेहतर हो। काम करने वालों का सम्मान बढ़े, अच्छा काम करने वालों का सामान भी बढ़े। सामान के बिना ज़िंदगी कहां चलती, बसती और बढ़ती है। जीवन में पर्याप्त सामान न मिले, पेट भर जाए लेकिन मन न भरे तो मुश्किल होती ही है।
देश की राजधानी में, बेलदार को रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया। यह भी विकास ही है कि हेराफेरी करने वाले सभी लोगों को रंगे हाथों गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। वह नादान, कमसिन इंसान सहयोग राशि की पहली किश्त संभालते पकड़ा गया। बेचारा अनाड़ी, अभी, अखिलाड़ी था। अगर उसने हेराफेरी करने वालों गुरुजनों की कहानियां सुनकर, पढ़कर, देखकर थोड़ा अभ्यास किया होता तो फंसता नहीं । बताते हैं सख्त क़ानून ने कई लोग पकड़ लिए। पढ़कर दुःख हुआ कि एक इंजीनियर व सहायक कामगार की जोड़ी तो सिर्फ सात हज़ार की रिश्वत लेती पकड़ी गई।
देश में स्वच्छता अभियान जारी है। वह बात बिलकुल अलग है कि कूड़ा और कूड़ा उठाने वाले परेशान हैं लेकिन सहायक सफाई निरीक्षक चंद हज़ार की रिश्वत के कूड़े में धरा गया। उसने भी यह जानने और समझने की कोशिश नहीं की कि कैसे हेराफेरी वाले पूजा, धर्म कर्म जैसे सामाजिक कार्य करते हैं ताकि हौसला निरंतर रहे। छोटी हेराफेरी के लिए मामूली प्रयास चाहिए। उसे लगा होगा कोई उसकी शिकायत नहीं करेगा क्यूंकि विशाल कारनामों में भी शिकायत न करने की रिवायत जान पकड़ रही है। लोग अपना काम निकलवाकर किनारे हो जाते हैं, लेकिन इसी व्यवस्था ने फंसा दिया उन्हें।
बेचारे समझ नहीं पाए कि हेराफेरी कितनी साफ़ सुथरी शैली में संपन्न की जाती है। रिश्वत लेने, देने, खाने, पीने और निगलने वाले तंदरुस्त, मस्त, चुस्त रहते हैं। दरअसल वे लोग बहुत ईमानदारी, भागीदारी, अनुशासन और सलीके से काम करते हैं। पूरी साफ़ सफाई और स्वच्छता बरतते हैं। उम्दा किस्म के झाड़ू और दस्ताने प्रयोग करते हैं। उड़ती धूल को ज़रा सी हवा नहीं लगने देते। नमी नहीं उगती इसलिए जंग भी नहीं लगता। यह ठीक है कि काम करवाने वाला, काम और अपनी हैसियत के हिसाब से भ्रष्टाचार फैला सकता है। जगह के स्तर और राजनीतिक पहचान के आधार पर, डर और दर अलग हो सकती है।
छोटी जगह में तो काम दाएं या बाएं हाथ से हो जाया करते हैं। राजधानी जैसे शहर का चरित्र तो एक से एक बिंदास काम करवा सकू लोगों का है। वहां तो एक बिकाऊ व्यक्ति करोड़ों में भी बिक सकता है। सिखाने वालों की वहां कमी नहीं। कोचिंग के इतने अड्डे हैं कि बंदा कन्फ्यूज़ हो जाए कि कहां सीखूं और कितना सीखूं। गुरु बनाऊं तो किसे। कुछ लोग अपना कर्तव्य ठीक से न निभा सकने के कारण भ्रष्टाचार और उसकी सखी रिश्वत को नीचा देखने को मज़बूर करते हैं।
वह बात अलग है कि इनके कारण अन्य लोग, जो भविष्य में विकास और भ्रष्टाचार के परचम गाड़ना चाहते हैं, चौकन्ने हो जाते हैं। स्वाभाविक है वे अपना काम ज़्यादा मुस्तैदी से करना चाहेंगे ताकि यह कौशल अधिक निखरे।
- संतोष उत्सुक
Under the roof of development