हिमाचल प्रदेश में चुनाव हो चुके हैं और परिणाम आने में अब 48 घंटे से भी कम समय शेष रह गए हैं। एग्जिट पोल के अनुमान हिमाचल में कांटे की टक्कर बता रहे हैं। हिमाचल में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के बीच मुकाबला नेट-टू-नेट फाइट का बताया जा रहा है। हिमाचल में राज बदलेगा या फिर सत्ता परिवर्तन का रिवाज इसका पता तो 8 दिसंबर को ही चलेगा। लेकिन साल 1998 में विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों को बहुमत नहीं मिली थी। लेकिन चुनाव बाद हुए सियासी खेल ने पूरे उलटफेर ने अलग ही कहानी कायम कर दी थी। ऐसे में आपको हिमाचल चुनाव से जुड़ा ये दिलचस्प वाक्या बताते हैं।
इस कहानी में नरेंद्र मोदी का अहम रोल है। उस दौर में नरेंद्र मोदी हिमाचल के प्रभारी हुआ करते थे। चुनाव से पहले प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में चुनाव लड़े जाने का निर्णय लिया गया। चुनाव के नतीजे न ही बीजेपी और न ही कांग्रेस के मुफीद पाए गए। बीजेपी के हिस्से में 29 सीटें आईं और कांग्रेस को 32 सीटें हासिल हुई। अधिक सीटें होने की वजह से कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला। वीरभद्र सिंह ने सीएम पद की शपथ भी ले ली। लेकिन जब आखिर में बहुमत सिद्ध करने की नौबत आई तो उससे पहले ही वीरभद्र सिंह ने मैदान छोड़ दिया। नतीजतन हफ्ते भर पुरानी सरकार गिर गई।
सुखराम का मिला साथ
65 सीटों पर हुए चुनाव के परिणाम आने से पहले ही एक और घटना देखने को मिली जब परिणाम तो बीजेपी के मास्टर वीरेंद्र धीमान के पक्ष में आए लेकिन उससे पहले ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। परिणाम स्वरूप बीजेपी के पास 28 विधायक रह गए। इस चुनाव में सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस को चार सीटें मिली थी। उन्होंने बीजेपी को अपना समर्थन दे दिया। लेकिन अब भी आंकड़ा कांग्रेस के बराबर का ही था। इधर निर्दलीय रमेश धवाला वीरभद्र को समर्थन देने के बाद अब बीजेपी के साथ जा मिले। इसके पीछे बीजेपी के वर्तमान के बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का हाथ बताया जाता है। नड्डा को ही धवाला को मनाने की जिम्मेदारी मिली थी। इस तरह बीजेपी की संख्या 33 हो गई। हालांकि वो अब भी बहुमत के आंकड़े से पीछे थी।
बीजेपी ने चला विधानसभा अध्यक्ष वाला दांव
बीजेपी ने एक और चाल चलते हुए कांग्रेस के एक विधायक गुलाब सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया। गुलाब सिंह सुखराम के करीबी माने जाते थे। उनके विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस विधायकों की संख्या कम हो गई। विधानसभा अध्यक्ष की गिनती न पक्ष और न ही विपक्ष में होती है। फिर इस तरह राज्य में प्रेम कुमार धूमल की सरकार बन गई। प्रेम कुमार धूमल ने 5 साल तक सूबे में सरकार चला
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