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पहले मदरसों का सर्वेक्षण कराने के फैसले पर हंगामा हुआ, अब सर्वे रिपोर्ट पर बवाल हो रहा है

पहले मदरसों का सर्वेक्षण कराने के फैसले पर हंगामा हुआ, अब सर्वे रिपोर्ट पर बवाल हो रहा है

पहले मदरसों का सर्वेक्षण कराने के फैसले पर हंगामा हुआ, अब सर्वे रिपोर्ट पर बवाल हो रहा है

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा मदरसों का सर्वे का कराए जाने का निर्णय जिन लोगों को रास नहीं आया था, उनके लिए सर्वे की रिपोर्ट चौंकाने वाली आई है। उत्तर प्रदेश में लगभग 8500 अवैध या कहें गैर मान्यता प्राप्त मदरसे संचालित हो रहे हैं। इसमें से कई मदरसे गैरकानूनी तरीके से नजूल या ग्राम समाज की जमीनों पर काबिज हैं। लेकिन मदरसे वालों की कारगुजारी को दरकिनार कर तमाम कथित बुद्धिजीवी और धर्म गुरु सर्वे रिपोर्ट सामने आने के साथ ही योगी सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। मुस्लिमों की बड़ी संस्था दारुल उलूम मदरसों के वैध अथवा अवैध होने की प्रक्रिया से इत्तेफाक नहीं रखती है। उसकी नजरों में कोई भी शिक्षण संस्थान जो बच्चों को तालीम देता है, वैध व अवैध नहीं हो सकता है। वैसे सवाल तो दारुल उलूम की मान्यता पर भी उठ रहा है।

योगी सरकार के दिशा-निर्देश पर कराए गए मदरसा सर्वे में सहारनपुर में 306 ऐसे मदरसे मिले हैं, जिनका रजिस्ट्रेशन यूपी मदरसा बोर्ड में नहीं है। इस लिस्ट में प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद का नाम भी शामिल है। हालांकि यहां के प्रवक्ता ने इससे जुड़ा अपना पक्ष भी सबके सामने रखा है। दारुल उलूम देवबंद के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने बताया कि मदरसे का रजिस्ट्रेशन सोसाइटी एक्ट-1866 के तहत कराया गया है। उन्होंने बताया कि दारुल उलूम से देश भर के 4,500 मदरसे संबद्ध हैं। इनमें से 2,100 मदरसे उत्तर प्रदेश के हैं। उन्होंने कहा कि दारुल उलूम देवबंद उत्तर प्रदेश या केंद्र सरकार से किसी प्रकार का कोई अनुदान नहीं लेता है। दारुल उलूम देवबंद मदरसे का संचालन जकात यानी चंदे से मिली मदद से किया जाता है। उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल के दौरान देश में अंग्रेजी पर जोर दिया जा रहा था। उस दौर में अधिकांश हिंदू-मुस्लिम उर्दू भाषा का प्रयोग करते थे।

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बहरहाल, उत्तर प्रदेश में 8500 ऐसे मदरसे हैं, जो बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं। यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता पाए बिना सबसे ज्यादा मदरसे मुरादाबाद में चल रहे हैं। यह जानकारी हाल ही में प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के आदेश पर प्रशासन की ओर से कराए गए मदरसों के सर्वे की रिपोर्ट में सामने आई है। बीते 15 नवंबर को यह रिपोर्ट यूपी शासन को सौंपी गई थी, जिसकी प्रतियां मदरसा शिक्षा बोर्ड को भी भेजी गई हैं। राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि सभी 75 जिलों में मदरसों के सर्वे का काम पूरा हो गया है। कई जिलों के प्रशासन ने सर्वे की रिपोर्ट की प्रतियां हमें भेजी हैं। इसके मुताबिक, सबसे ज्यादा बिना मान्यता के चलने वाले मदरसे मुरादाबाद में मिले हैं। इनकी संख्या 550 है। इसके बाद सिद्धार्थनगर है, जहां 525 मदरसे बिना मान्यता के चल रहे हैं। बहराइच 500 की संख्या के साथ तीसरे नंबर पर है।
                            
जावेद ने कहा कि सर्वे की शुरुआत में इसे लेकर कई भ्रामक जानकारियां फैलाई गई थीं। हमने इसका बचाव किया था और लोगों से कहा था कि सर्वे के पीछे सरकार का कोई छिपा हुआ एजेंडा नहीं है। इस रिपोर्ट के आधार पर मदरसों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि कई ऐसे मदरसे जो बिना मान्यता के चल रहे थे, वे हमसे संपर्क कर रहे हैं और संस्थान को मदरसा बोर्ड से संबद्ध कराने में रूचि दिखा रहे हैं। जावेद ने कहा कि मान्यता मिलने के बाद ये मदरसे सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं का फायदा उठा सकेंगे। उन्होंने कहा कि मदरसा बोर्ड के पास अब प्रदेश के सभी गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की जानकारी है। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि उनमें कितने छात्र पढ़ रहे हैं और उनके पास कितना स्टाफ है। मदरसों के शिक्षकों की योग्यता क्या है और उनकी फंडिंग कहां से होती है। मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है और मदरसा कहां पर है। एक अधिकारी ने बताया कि फिलहाल, यूपी में 25 हजार से ज्यादा मदरसे संचालित हैं, जिनमें से 16 हजार से ज्यादा मान्यता प्राप्त हैं। 558 मदरसों को सरकारी सहायता भी मिल रही है। सभी मान्यता प्राप्त मदरसों में 19 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ाई करते हैं। बीते सात सालों में प्रदेश सरकार ने किसी भी मदरसे को मान्यता नहीं दी है।

मदरसों के सर्वे को लेकर योगी सरकार के अल्पसंख्यक विभाग के मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने कहा कि इस सर्वेक्षण के जरिए सरकार ने प्रदेश में ऐसे मदरसों की डिटेल जुटाई है, जो बिना मान्यता के चल रहे थे। हम जल्दी ही इन डिटेल्स का विश्लेषण करेंगे। चूंकि सरकार के पास सभी मदरसों की डिटेल है तो अब सभी छात्रों को सरकारी योजनाओं और नीतियों का फायदा देना आसान होगा। बता दें कि यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना साल 2017 में की गई थी। इसका मकसद मदरसों के कामकाज में अनियमितताओं की जांच करना था। प्रदेश की योगी सरकार ने बीते 30 अगस्त को राज्य के सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे मदरसों का सर्वे करें। 10 सितंबर को शुरू हुआ सर्वे का यह काम 15 नवंबर को अंतिम रिपोर्ट शासन को भेजे जाने के साथ पूरा हुआ। एक तरफ प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु और कथित बुद्धिजीवी सर्वे की रिपोर्ट पर सवाल खड़ा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक संगठन भी इसमें अपनी सियासी जमीन तलाश रहे हैं। वह इसे योगी सरकार की बंटवारे की राजनीति करार दे रहे हैं।

-अजय कुमार

Uproar over decision to conduct a survey of madrassas in uttar pradesh

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