अमेरिका में मध्यावधि चुनाव परिणाम ने डोनाल्ड ट्रंप की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है
अमेरिका में मध्यावधि चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन पार्टी की एकतरफा लहर की जो संभावना जताई जा रही थी वह गलत साबित हुई है। पूर्वानुमानों के विपरीत जो बाइडन कई दशकों के अमेरिकी इतिहास में ऐसे राष्ट्रपति बन गये हैं जिनके नेतृत्व वाली पार्टी ने मध्यावधि चुनावों में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया। डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रदर्शन से खुश जो बाइडन अपने अगले कार्यकाल को लेकर भी बहुत आशान्वित नजर आ रहे हैं लेकिन देखना होगा कि उम्र उनका साथ देती है या नहीं। चुनावों के अब तक सामने आये परिणाम यह भी दर्शा रहे हैं कि अमेरिकी जनता ने बीच का रास्ता अपनाया है और किसी एक पार्टी को वह प्रचंड बहुमत देने से बची है।
इन चुनावों से अमेरिकी राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव पर गौर करें तो एक बात पहले ही स्पष्ट है कि अमेरिका के मध्यावधि चुनाव अपने आप में काफी मायने रखते हैं क्योंकि यह 2024 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी भी है। इसीलिए डेमोक्रेट्स ने मध्यावधि चुनाव को न केवल बाइडन प्रशासन की नीतियों पर वोट के रूप में, बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र के भविष्य पर एक जनमत संग्रह के रूप में भी तैयार करते हुए चुनाव लड़ा। बाइडन ने इन चुनाव परिणाम से अपनी स्थिति मजबूत की है तो वहीं पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। ट्रंप पहले ही कई तरह की जांचों का सामना कर रहे हैं और अब जनता ने भी उनका पूरी तरह साथ नहीं दिया है।
इसके अलावा रिपब्लिकन पार्टी के एकछत्र नेता के रूप में अब तक ट्रंप बने हुए थे लेकिन अब पार्टी पर ट्रंप की पकड़ को उनके प्रतिद्वंद्वी रॉन डेसेंटिस चुनौती दे सकते हैं जिन्होंने फ्लोरिडा के गवर्नर की दौड़ में दोहरे अंकों के अंतर से जीत हासिल की है। डेसेंटिस रिपब्लिकन की पहली पसंद बनते जा रहे हैं और संभव है कि वह 2024 के राष्ट्रपति चुनावों की दौड़ में भी शामिल हो जायें। डेसेंटिस के उभार से ट्रंप भी भड़के हुए हैं। उनके हालिया बयानों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि डेमोक्रेट्स से ज्यादा गुस्सा उन्होंने डेसेंटिस पर उतारा है। इन चुनावों के अब तक आये परिणामों पर नजर डाली जाये तो कहा जा सकता है कि ट्रंप का आशीर्वाद जीत की निश्चित गारंटी नहीं था। उम्मीदवार की गुणवत्ता अमेरिका में अभी भी मायने रखती है।
दूसरी ओर, भारतीय-अमेरिकी उम्मीदवारों की जीत इस छोटे जातीय समुदाय की तेजी से बढ़ती महत्वाकांक्षा को साफ प्रदर्शित कर रही है। हालांकि अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी समुदाय की आबादी को देखें तो यह अमेरिका की करीब 33.19 करोड़ की आबादी का सिर्फ एक प्रतिशत है। अमेरिकी मध्यावधि चुनावों में जीत दर्ज कर सत्तारुढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के पांच भारतीय-अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति, रो खन्ना, प्रमिला जयपाल और एमी बेरा ने जहां अमेरिकी की प्रतिनिधि सभा में अपनी जगह पक्की कर ली है तो वहीं कई भारतीय-अमेरिकियों ने राज्य विधायिका चुनाव में जीत दर्ज कर आगे के राजनीतिक रास्ते खोल लिये हैं। भारतीय-अमेरिकी उद्यमी एवं राजनेता श्री थानेदार मिशिगन से कांग्रेस के लिए चुनाव जीतने वाले पहले भारतीय-अमेरिकी बन गये हैं तो इलिनॉयस के आठवें कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट में राजा कृष्णमूर्ति ने लगातार चौथी बार जीत दर्ज की। कैलिफोर्निया के 17वें कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट में भारतीय-अमेरिकी रो खन्ना जीते हैं तो दूसरी ओर अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में इकलौती भारतीय-अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल ने रिपब्लिकन के क्लिफ मून को वाशिंगटन के सातवें कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट में मात दे दी है। कांग्रेस में सबसे लंबे समय तक सेवाएं देने वाले एमी बेरा ने कैलिफोर्निया के सातवें कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट में जीत हासिल की है। राज्य विधायिकाओं में मेरीलैंड में अरुणा मिलर ने जीत दर्ज की और लेफ्टिनेंट गवर्नर पद पर काबिज होने वाली पहली भारतीय-अमेरिकी राजनेता बनीं हैं। इसके अलावा भी कई युवा भारतीयों ने विभिन्न क्षेत्रों में जीत हासिल की है।
चुनाव परिणाम का भारत पर क्या होगा असर?
मध्यावधि चुनाव परिणाम के भारत और अमेरिका के संबंध पर असर की बात करें तो कहा जा सकता है कि इन परिणामों का दोनों देशों के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा और अगले साल इन्हें और गति ही मिल सकती है। देखा जाये तो भारत और अमेरिका के दिपक्षीय संबंधों को अमेरिका के दोनों दलों का समर्थन मिलता रहा है। क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को लेकर चिंता जैसे साझा हित के मुद्दे दोनों देशों को जोड़ते हैं। इसके अलावा यह भी सर्वविदित है कि डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी इस बात को लेकर एक राय रखती हैं कि भारत के साथ सुरक्षा और वाणिज्यिक संबंध पहली प्राथमिकता है। खासकर हिंद-प्रशांत में चीन को रोकने के लिए भारत के साथ तालमेल जरूरी है। इसके अलावा वाणिज्यिक, रक्षा और व्यापार संबंधों को मजबूत करने के लिए क्वाड, आई2यू2 और आईपीईएफ में भी दोनों देशों के बीच तालमेल कायम किया गया है।
अमेरिका में क्या बदलेगा?
बहरहाल, जहां तक मध्यावधि चुनाव परिणाम के बाद अमेरिका में घरेलू नीतियों में आने वाले संभावित बदलाव की बात करें तो हो सकता है कि अब सरकारी खर्च में कटौती हो। क्योंकि सरकारी खर्च बाइडेन प्रशासन के तहत नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। इसके अलावा रिपब्लिकन नेतृत्व अमेरिकी ट्रेजरी के लिए ऋण सीमा में वृद्धि की अनुमति देने के बदले में सामाजिक सुरक्षा और मेडिकेयर में सुधार के लिए डेमोक्रेट्स को मजबूर करने की कोशिश कर सकता है। चुनाव परिणाम चूंकि बाइडन प्रशासन की नीतियों पर जनता की मुहर है इसलिए बाइडन अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के साथ ही अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर आने वाले दिनों में कुछ बड़े फैसले कर सकते हैं। फिलहाल तो सभी नजरें जी-20 से इतर बाइडन और चीनी राष्ट्रपति की मुलाकात पर लग गयी हैं।
-गौतम मोरारका
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