महिलाओं के विरूद्ध हिंसा को धर्म के आईने से नहीं देखा जाना चाहिए: गिरिराज सिंह
नयी दिल्ली। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने शुक्रवार को कहा कि महिलाओं के विरूद्ध हिंसा को धर्म के आईने से नहीं देखा जानर चाहिए तथा किसी पूर्वाग्रह के बिना सभी को ऐसी घटनाओं की कड़ी निंदा करनी चाहिए। लिंग आधारित भेदभाव के विरूद्ध एक महीने तक चलने वाले राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत पर केंद्रित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि प्राय: महिलाएं हिंसा के विरूद्ध अपनी आवाज नहीं उठाती हैं और पीड़िता होने के बावजूद भी वे मौन रहती हैं क्योंकि उन्हें यह डर रहता है कि लोग उनके बारे में क्या सोंचेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘ आज लोग टेलीविजन की दुनिया में (कई विषयों पर) चर्चा करते हैं। लेकिन यह भारत की राजसत्ता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि बेटियों के दर्द का उनके धर्म के आधार पर आकलन किया जाता है।’’ ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री सिंह ने कहा, ‘‘ आज मैं देख रहा हूं कि कुछ महिलाएं (लिंग आधारित हिंसा के विरूद्ध) आवाज उठाती हैं जबकि अन्य इस पर नहीं बोलती हैं क्योंकि लोग इन दीदियों के धर्म के आधार पर (उनकी पीड़ा पर) राजनीतिक टिप्पणियां करते हैं।’’
सिंह ने अपने मंत्रालय की टीम से सभी को साथ लेते हुए राष्ट्रीय अभियान ‘नयी चेतना’ को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि सरकार लैंगिक हिंसा को खत्म करने के लिए कटिबद्ध है। उन्होंने अपने मंत्रालय को महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने तथा इस हद तक उनमें विश्वास भरने के मिशन में सभी को साभ लेने को कहा कि वे (महिलाएं) लिंग आधारित हिंसा के विरूद्ध आवाज उठायें। मंत्रालय की ओर से जारी बयान में सिंह ने कहा, ‘‘ महिलाओं के विरूद्ध हिंसा धर्म के आईने से नहीं देखी जानी चाहिए तथा बिना किसी पूर्वाग्रह के सभी के द्वारा ऐसी घटनाओं की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।’’ महिला विरोधी हिंसा उन्मूलन अंतरराष्ट्रीय दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम में सिंह ने 13 राज्यों में लैंगिक हिंसा के प्रति संवेदनशील 160 संसाधन केंद्रों का डिजिटल तरीके से उद्घाटन भी किया। महिलाओं के विरूद्ध हिंसा खत्म किए जाने पर जोर देते हुए सिंह ने उनसे हिंसा बर्दाश्त नहीं करने का आह्वान किया और लिंग आधारित भेदभाव को खत्म करने के लिए अपनी सरकार की प्रतिबद्धता जाहिर की। उन्होंने कहा, ‘‘ मोदी सरकार जिस तरह विकास के लिए प्रतिबद्ध है, उसी तरह वह महिला सशक्तीकरण के लिए भी प्रतिबद्ध है। मोदी सरकार में महिलाओं को सेना में भी शामिल किया गया है।’’ मंत्री ने यह भी सुझाव दिया कि महिलाओं को आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट्स का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
इस मौके पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री निरंजन ज्योति ने कहा कि ‘सनातन’ धर्म ने महिलाओं को समान दर्जा दिया है। उन्होंने वर्तमान लैंगिक भेदभाव के लिए आक्रांताओं के हमलों एवं उनकी वजह से आये सांस्कृतिक परिवर्तनों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, ‘‘ भारत में सदैव नारी की पूजा की गई है। लैंगिक भेदभाव भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘ आक्रांताओं के आक्रमणों के बाद, सुंदर महिलाओं का अपहरण किया जाता था, इसलिए पर्दा प्रथा अस्तित्व में आयी..... यह हमारी परंपरा नहीं है।’’ मंत्री ने एक घटना का भी उल्लेख किया जब एक बस संचालक ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया था। उन्होंने कहा, ‘‘ मैंने उसे चार तमाचे जड़े... हमें मजबूत होने की जरूरत है, तब कोई हमें छूने की हिम्मत नहीं करेगा। मैं निरक्षर पिता की बेटी हूं, मैं14 साल की उम्र में संन्यासी बन गयी, किसी ने भी मुझ पर नजर डालने की हिम्मत नहीं की।’’ ग्रामीण विकास सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा ने भी कहा कि महिलाओं को हिंसा बर्दाश्त नहीं करना चाहिए और मदद मांगना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘ हिंसा बर्दाश्त करना उचित नहीं है। यदि कहीं कोई हिंसा होती है तो उन्हें (पीड़िता को) सहयोग मांगना चाहिए। हमें उन महिलाओं को महत्व देना चाहिए जिन्होंने लैंगिक हिंसा की स्थिति में सहयोग मांगा है। उन्हें (समाज में) नायिका बनाया जाना चाहिए।
Violence against women should not be seen through the lens of religion says giriraj singh