जाने-माने भाषाविद नोम चोमस्की सहित 250 से अधिक शिक्षाविदों की ओर से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर विश्व भारती के एक प्रोफेसर को हटाए जाने और उनसे हस्तक्षेप की अपील करने के तीन दिन बाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी करके इस बात पर अप्रसन्नता जताई है। विश्वविद्यालय ने अपने बयान में इस बात पर अप्रसन्नता जताई कि हस्ताक्षरकर्ताओं ने वास्तविक हालात का पता लगाए बगैर पत्र पर हस्ताक्षर किए।
विश्व भारती की प्रवक्ता डॉक्टर महुआ बनर्जी की ओर से शुक्रवार शाम को जारी बयान में यह दावा किया गया कि प्रोफेसर सुदीप्त भट्टाचार्य एक संगठन के पदाधिकारी थे, जिसकी कोई संस्थागत मान्यता नहीं है और कार्यकारी परिषद ने कदाचार के लिए उनके खिलाफ पूर्व में 14 बार आरोप पत्र पेश किए थे। बयान में कहा गया कि भट्टाचार्य के कदाचार में परिसर में विश्वविद्यालय की संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने के लिए छात्रों को उकसाना, पूर्व में कुलपति तथा रजिस्ट्रार का घेराव,2020 में प्रख्यात स्तंभकार तथा राज्यसभा सदस्य स्वप्न दासगुप्त का घेराव आदि शामिल है।
विश्वविद्यालय ने दावा किया कि अधिकतर हस्ताक्षरकर्ता बंगाल से और एक ही सरकारी विश्वविद्यालय से हैं। गौरतलब है कि जाने-माने भाषाविद नोम चोमस्की सहित 250 से अधिक शिक्षाविदों ने नौ जनवरी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर “अवांछनीय” कार्यों को लेकर विश्व भारती के प्रोफेसर सुदीप्त भट्टाचार्य की सेवा समाप्ति की सूचना दी और उनके हस्तक्षेप की मांग की। यह पत्र नौ जनवरी को लिखा गया था। पत्र में विश्व भारती द्वारा की गई कार्रवाई को “अवैध” बताया गया है।
पत्र में कहा गया कि विश्वविद्यालय ने विभिन्न मौकों पर भट्टाचार्य द्वारा कथित रूप सेजिन कार्यों का उल्लेख ‘‘कदाचार की सूची’’ में किया है उन्हें सत्यापित करने के लिये कोई जांच नहीं की गई। पत्र की एक प्रति ‘पीटीआई’ को उपलब्ध कराई गई है। राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र में कहा गया कि भट्टाचार्य को 22 दिसंबर को केंद्रीय विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की बैठक में उनके ‘‘विश्व भारती के साथ सेवा/अनुबंध को समाप्त करने’’ के बारे में बताया गया था।
पत्र में कहा गया, ‘‘कदाचारों को तारीखों और घटना के अन्य विवरण या विशिष्ट कार्यों के लिए निर्दिष्ट किए बिना सूचीबद्ध किया गया है जिसके लिए प्रोफेसर भट्टाचार्य को अभ्यारोपित किया गया है। यह स्पष्ट है कि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और शिक्षक संघ के पदाधिकारी के खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने से पहले विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा कोई उचित जांच नहीं की गई थी।’’ पत्र पर चोमस्की, अर्थशास्त्री अमिय बागची, सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज के पूर्व निदेशक पार्थ चटर्जी, एक्सएलआरआई के प्रोफेसर सुमित सरकार और यादवपुर विश्वविद्यालय के एमेरिटस प्रोफेसर सुप्रिया चौधरी सहित विभिन्न शिक्षाविदों के हस्ताक्षर हैं।
संपर्क किए जाने पर भट्टाचार्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ जिन्होंने वीसी के कुशासन के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत की है विश्व भारती ने उसकी छवि खराब करने का अभियान शुरू किया है। पिछले बयान में भी यह दिखता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ मैं न्याय की अपनी लड़ाई से पीछे नहीं हटूंगा। शिक्षण समुदाय और छात्र मेरे साथ है।’’ छात्रों का एक वर्ग कथित तौर पर अपने कुछ साथियों को छात्रावास में जगह देने से इनकार करने और छह अन्य को निलंबित किए जाने के विरोध में 23 नवंबर से प्रदर्शन कर रहा है। विश्वविद्यालय ने हालात के मद्देनजर दीक्षांत समारोह और वार्षिक पौष मेले (दिसंबर में आयोजित होने वाला मेला) का आयोजन नहीं किया है।
Visva bharati expressed displeasure for writing letter to president for removal of a professor
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