हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए हैं। जैसा कि सभी चुनावों में होता है, जबकि ऐसे उम्मीदवार होंगे जो भारी अंतर से जीत दर्ज करेंगे वहीं ऐसे प्रतियोगी भी होंगे जो अपनी जमानत राशि भी गंवा बैठेंगे। एक प्रत्याशी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही होती है कि वो अपनी जमानत जब्त होने से बचवाएं। लेकिन ये जमानत जब्त होना होता क्या है। ये जमानत राशि कितनी होती है, किसे देनी पड़ती है।
किसी भी चुनाव में जब प्रत्याशी अपना पर्चा भरता है तो उसे एक रकम जमानत के तौर पर चुनाव आयोग में जमा करानी होती है। इसी राशि को चुनावी जमानत राशि कहा जाता है। ये राशि कुछ मामलों में वापस दे दी जाती है। वरना आयोग इसे अपने पास ही रखता है। यह या तो नकद में जमा किया जाना है, या एक रसीद नामांकन पत्र के साथ संलग्न की जानी चाहिए, यह दिखाते हुए कि उक्त राशि भारतीय रिजर्व बैंक या सरकारी खजाने में उम्मीदवार की ओर से जमा की गई है। जमानत राशि हर चुनाव के आधार पर तय की जाती है और चुनाव के आधार पर ही अलग-अलग होती है। जैसे पंचायत के चुनाव के लिए अलग, लोकसभा चुनाव के लिए अलग, विधानसभा के लिए अलग होती है। इसके अलावा जमानत राशि सामान्य के लिए अलग और आरक्षित वर्ग के लिए अलग होती है। इस प्रथा का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल वास्तविक रूप से इच्छुक उम्मीदवार ही चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए नामांकन दाखिल करें।
किस चुनाव के लिए कितनी जमानत राशि
पार्षद चुनाव- 5 हजार (सामान्य), आरक्षित वर्ग- 2500
विधानसभा चुनाव- 10 हजार (सामान्य), आरक्षित वर्ग- 5 हजार
लोकसभा चुनाव- 25 हजार (सामान्य), आरक्षित वर्ग- 12500
जमानत जब्त होती कैसे है?
अधिनियम के अनुसार, यदि उम्मीदवार द्वारा डाले गए वैध वोटों की संख्या डाले गए वैध वोटों की कुल संख्या के 1/6 से कम है, तो चुनाव में जमा राशि जब्त कर ली जाती है। जीतने वाले प्रत्याशी से कम से कम 10 फीसदी वोट जरूरी है। इसके अलावा जीतते हुए प्रत्याशी के मुकाबले 10 फीसदी वोट नहीं मिलने पर भी जमानत जब्त हो सकती है। यदि उम्मीदवार सीमा को पूरा करता है, तो "चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद जितनी जल्दी हो सके जमा राशि वापस कर दी जाएगी।" यदि कोई उम्मीदवार अपना नामांकन वापस ले लेता है या चुनाव से पहले उसकी मृत्यु हो जाती है, तो राशि वापस कर दी जाती है।
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