कुछ महीनों पहले पाकिस्तान और तालिबान एक ही सिक्के के दो पहलू हुआ करते थे। यहां तक की नीति इस्लामाबाद में बनती थी और दांव काबुल से चला जाता था। हकीकत तो ये है कि तालिबान के हाथ में सत्ता की बागडोर भी पाकिस्तान की मदद से ही आई। लेकिन अब दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे दिख रहे हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बॉर्डर पर पिछले कुछ दिनों से चल रही गोलीबारी थमने का नाम नहीं ले रही है। दोनों देशों के बीच जंग छिड़ती दिख रही है। बताया जा रहा है कि तालिबानी सैनिक, तोप, मशीन गन और मोर्टार के जरिए पाकिस्तानी सेना पर घातक हमले कर रहे हैं। वहीं जवाब में पाकिस्तानी सेना भी तालिबानी सैनिकों पर हमले कर रही है।
क्यों भिड़ें पाकिस्तान और तालिबान
सीमा विवाद की वजह से पिछले 15 दिनों से हालात तनावपूर्ण बने हुए थे। अचानक वो तनाव गोलीबारी में बदल गया। दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गई। रूक-रूक कर पिछले कई दिनों से गोलीबारी हो रही है जिसमें कई लोग जख्मी हो चुके हैं वहीं एक पाकिस्तानी सैनिक के ढेर होने की भी खबर है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बॉर्डर पर खूनी संग्राम छिड़ा हुआ है। दोनों देशों के बीच आर-पार की जंग के हालात दिखने लगे हैं। बॉर्डर से जुड़े विवाद को लेकर इस बार कोई भी देश झुकने को तैयार नहीं नजर आ रहा है। माहौल ऐसा है कि जैसे जंग से ही बॉर्डर तय किया जाएगा।
डूरंड लाइन से बना जंग का माहौल
पिछले छह महीनों से पाकिस्तान और तालिबान के रिश्तों में दरार दिख रही थी। लेकिन डूरंड लाइन का विवाद छिड़ते ही दोनों तरफ से जंग का माहौल छिड़ गया। जबकि ये वो विवाद है जिसके निपटने की उम्मीद डेढ़ साल से लगाई जा रही थी। तालिबान के हाथ में सत्ता आने के बाद से ही पाकिस्तान ने सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश तेज कर दी थी। लेकिन पिछले 15 दिन में कई बार पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सेना आमने सामने आ गई। तालिबान किसी भी कीमत पर डूरंड लाइन को मानने पर राजी नहीं है। दूसरी तरफ पाकिस्तान भी टस से मस होने को तैयार नहीं है।
पश्तून को विभाजित करने वाली रेखा
डूरंड रेखा रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच 19वीं शताब्दी के खेल की विरासत है जिसमें अफगानिस्तान को अंग्रेजों द्वारा रूस के विस्तारवाद की भय की वजह से के खिलाफ एक बफर के रूप में इस्तेमाल किया गया था। 12 नवंबर 1893 में अफगान शासक आमिर अब्दुल खान और ब्रिटिश सरकार के सचिव सर मार्टिमर डूरंड ने सरहद हदबंधी के समझौते पर दस्तखत किए। दूसरे अफगान युद्ध की समाप्ति के दो वर्ष बाद 1880 में अब्दुर रहमान राजा बने, जिसमें अंग्रेजों ने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया जो अफगान साम्राज्य का हिस्सा थे। डूरंड के साथ उनके समझौते ने भारत के साथ अफगान "सीमा" पर उनके और ब्रिटिश भारत के "प्रभाव के क्षेत्रों" की सीमाओं का सीमांकन किया। डूरंड्स कर्स: ए लाइन अक्रॉस द पठान हार्ट नामक किताब के लेखर राजीव डोगरा के अनुसार सात-खंड के समझौते ने 2,670 किलोमीटर की रेखा को मान्यता दी। डूरंड ने आमिर के साथ अपनी बातचीत के दौरान अफगानिस्तान के एक छोटे से नक्शे पर खींच दी थी। 2,670 किलोमीटर की रेखा चीन की सीमा से लेकर ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा तक फैली हुई है। इसके खंड 4 में कहा गया है कि "सीमा रेखा" को विस्तार से निर्धारित किया जाएगा और ब्रिटिश और अफगान आयुक्तों द्वारा सीमांकित किया जाएगा। जिसमें स्थानीय गावों के हितों को शामिल करने की भी बात थी।
अफगान-पाक तनाव
1947 में स्वतंत्रता के साथ भारत-पाक बंटवारा हुआ और उसे डूरंड रेखा विरासत में मिली। इसके साथ ही पश्तून ने रेखा को अस्वीकार कर दिया और अफगानिस्तान द्वारा इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया। 1947 में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के शामिल होने के खिलाफ मतदान करने वाला अफगानिस्तान एकमात्र देश था।
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