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चीते आए तो दौड़े विचार (व्यंग्य)

चीते आए तो दौड़े विचार (व्यंग्य)

चीते आए तो दौड़े विचार (व्यंग्य)

चीते आने की खबर से पता चला कि हम इतने दशकों से उनके बिना भी रफ़्तार पकड़े हुए थे। हमारे यहां तो अलग अलग नस्ल के बब्बर शेर भी बहुतेरे हैं। कहां विशाल चेहरे, यशस्वी बाल वाले प्रभावशाली, लोकतांत्रिक स्वतंत्र शेर और कहां चौबीस घंटे निगरानी में रखे जाने वाले चीते। बेशक हमारे यहां जंगली जानवर कम हैं, कुछ की तो पूरी छुट्टी कर दी हमारे वन प्रेमियों ने पर उससे क्या फर्क पड़ता है। हमारे यहां तो सामाजिक जानवर बहुत हैं और उनकी उत्पत्ति, रफ़्तार और व्यक्तित्व आभा दिन रात चौगुनी तरक्की कर रही है। 

जानवर कहो या पशु एक ही बात है लेकिन अगर अंग्रेज़ी में ‘सोशल एनिमल’ कहा जाए तो शालीनता आ जाती है। सोशल शब्द है ही ऐसा। हमारे यहां अधिकृत और पंजीकृत ‘सोशल एनिमल्स’ ने ज़िम्मा लिया हुआ है। इनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। दिक्कत ज़रा सी यह है कि ‘एनिमल्स’ होते हुए भी इन्हें ‘जानवर’ नहीं कह सकते। वे चीतों से कम नहीं ज़्यादा हैं। राज, अर्थ, धर्म और शर्म के जंगल में नंगे होकर दौड़ते हैं। हो सकता है चीता गलत दिशा में भागना शुरू कर दे लेकिन ये कभी फ़ालतू दौड़-भाग नहीं करते।

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हम तो पहले से उच्च स्तरीय वन्य जीवन प्रेमी हैं तभी तो वृक्ष कटवाकर सड़कें बनवाते हैं, कालोनियां खड़ी करते हैं। प्लास्टिक, रबड़ के फूल पौधे उगा रहे हैं। अब संभवत नए स्वाद में, वन्य जीव प्रेम प्रस्फुटित करने के लिए चीते लाए गए हैं। हो तो सकता है, विदेशी चीतों से प्रेरित होकर स्वदेशी प्रेम जागृत हो जाए, वह बात अलग थलग है कि अभी तक पालतू कुत्तों को घर से बाहर पौटी कराना नहीं आया। 

विशेषज्ञ बताते हैं कि चीते परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं यानी वे आदमी से बेहतर हैं लेकिन यहां तो बंदा अपनी परिस्थिति को सुदृढ़ बनाए रखने के लिए शेर की तरह बर्ताव करता है। हो सकता है इस मामले में भी विदेशी चीतों से सीख लें। अब चीते हमारे हैं। यह हमारी संस्कृति के विरुद्ध होगा कि विदेशी नामों के साथ जिएं इन्हें अविलम्ब बदल देना चाहिए। चीता विशेषज्ञों द्वारा वर्षों तक कितना सर्वे, अध्ययन कर योजना बनाकर संभावित व कालजयी परिवर्तन लाने की खातिर इन्हें यहां लाया गया है। इतना तो कभी मानव विकास बारे भी नहीं सोचा होगा।

वैसे तो हमें अब सिर्फ विकसित आदमी की ही ज़रूरत है तभी चीतों की रिहाइश के अडोस पड़ोस से इंसानी झाड़ियां साफ़ कर दी गई हैं। वास्तव में वे इंसान हैं भी नहीं जो उनकी परवाह की जाए। चीतों की बातें राजनीतिक चीते ज्यादा जानते हैं। वैसे भी एक राजनीतिज्ञ चीता हो सकता है मगर चीता राजनीतिज्ञ नहीं हो सकता।

- संतोष उत्सुक

When the cheetah came the thought ran

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