आवारा जानवरों की समस्या को सरकार और पशु प्रेमी गंभीरता से क्यों नहीं लेते?
देश के होनहार इंजीनियरों ने अत्याधुनिक रेलगाड़ी बनाते वक्त कल्पना भी नहीं की होगी कि उनकी टेक्नोलॉजी की ऐसी दुर्दशा भी हो सकती है। भैंसों का झुंड अत्यंत मेहनत और लगने से विकसित की गई आधुनिक तकनीक की धज्जियां भी उड़ा सकता है। तूफानी रफ्तार ट्रेन को पटरी से उतार सकती है। अहमदाबाद के पहले बटवा और मणिनगर के बीच वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन से भैंस टकरा गई थी। देश की पहली हाई स्पीड ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस अभी तीन रूटों पर चल रही है। देसी बुलेट ट्रेन कही जाने वाली वंदे भारत ट्रेन लगातार दूसरे दिन जानवरों से टकराने से हादसे का शिकार हुई।
वंदे भारत ट्रेन के भैंस से टकराने पर महज भैंस मालिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। यह महज एक हादसा भर नहीं है, बल्कि देश में कुप्रबंधन के प्रमाण हैं। ऐसी घटनाओं से देश-विदेश में भारत की कितनी किरकिरी होती है, नीति नियंताओं को शायद इसका अंदाजा नहीं है। यह दुर्घटना बताती है कि भारत में सार्वजनिक स्थानों पर शासन-प्रशासन कैसे चलता है। भैंस ही नहीं बल्कि दूसरे पालतू जानवरों को भी इस देश में खुलेआम घूमने की आजादी है। फिर चाहे वह स्थान ट्रेन की पटरी हो, सड़क हो, राजमार्ग या राष्ट्रीय राजमार्ग हो। भटकते जानवरों से हवाई अड्डे तक अछूते नहीं हैं। इसी वर्ष 19 जुलाई को एक आवारा कुत्ते के लद्दाख एयरपोर्ट पर रनवे पर आ जाने से लेह-दिल्ली जाने वाली फ्लाइट को निर्धारित वक्त पर उड़ान स्थगित करनी पड़ी थी।
देश में यूं तो सार्वजनिक समस्याओं का अंबार लगा हुआ है पर खुले रूप से घूमते जानवरों की समस्या आजादी के बाद से कभी खत्म नहीं हो सकी। यह समस्या बढ़ती ही जा रही है। आवारा जानवरों की समस्या को पशु प्रेमी और सरकारों ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। पशुओं के प्रति क्रूरता के मामलों में जितनी सजगता और सतर्कता बरती जाती है, उतनी कभी उनके पुनर्वास पर नहीं बरती जाती। अन्य समस्याओं की तरह देश का आम नागरिक इन जानवरों की समस्या से त्रस्त है, पर सवाल यही है कि आखिर वे कहें तो कहें किससे। सड़क या दूसरे सार्वजनिक स्थानों पर घूमते जानवरों के प्रबंधन का दायित्व स्थानीय निकायों का होता है। निकायों की हालत किसी से छिपी हुई नहीं है। देश के ज्यादातर निकाय माली हालत का शिकार हैं। निकायों में वित्तीय संसाधनों के अलावा मैन पावर की भारी कमी है। विशेष कर मैट्रो और दूसरे बड़े शहरों की तुलना में निकायों के कामकाज की हालत ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है।
एक बीमा कंपनी की रिपोर्ट 'एको एक्सीडेंट इंडेक्स 2022' के अनुसार, देश में सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण जानवर थे। देश के महानगरों में जानवरों के कारण होने वाले दुर्घटनाओं में कुत्तों के कारण 58.4 प्रतिशत तथा इसके बाद 25.4 प्रतिशत दुर्घटनाएं गायों के कारण हुईं। खासकर चेन्नई में जानवरों के कारण सबसे अधिक 3 प्रतिशत से ज्यादा दुर्घटनाएं दर्ज हुई हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि चूहों के कारण 11.6 प्रतिशत दुर्घटनाएं हुईं। दिल्ली और बैंगलुरू में जानवरों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या 2 प्रतिशत थी।
जानवरों से टकराने की ऐसी दुर्घटनाएं न सिर्फ यात्रियों के लिए जान जोखिम में डालने वाली हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारी किरकिरी होती है। रक्षा, भारत सूचना-प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और दूसरे क्षेत्रों में विश्व में लगातार परचम फहराता जा रहा है। कोविड के टीके का निर्माण इसका बड़ा उदाहरण है। इसके बावजूद सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी और आवारा जानवरों की समस्याओं से देश का सिर शर्म से झुक जाता है। ऐसी समस्याओं के ठोस समाधान के लिए निकायों के अलावा सरकारों ने भी कभी गंभीरता से प्रयास नहीं किए। सवाल यह नहीं है कि वंदे भारत ट्रेन के भैंस से टकराने पर भैंस मालिक के खिलाफ पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर ली, बड़ा सवाल यह है कि आखिर देश में ऐसी अराजकता कब तक व्याप्त रहेगी। हालांकि ऐसी समस्याओं का स्थायी समाधान जानवरों के मालिकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का प्रावधान करना नहीं है, बल्कि इसका ठोस और स्थायी हल जानवरों को खुलेआम छोड़ने से रोकने की नीति बनाना है।
गौरतलब यह भी है कि आवारा जानवरों के साथ किसी तरह की भी क्रूरता अपराध की श्रेणी में आती है। दंड संहिता में इसके लिए दंड का प्रावधान तक निर्धारित है, किन्तु जानवरों से होने वाली दुर्घटनाओं के लिए किसी की जिम्मेदारी तय नहीं है। ऐसे हादसों के लिए जब तक जिम्मेदारी और सजा का प्रावधान नहीं होगा, तब तक जान-माल के नुकसान के साथ ही देश को दुनिया के सामने भैंसों के अत्याधुनिक ट्रेन वंदे भारत की तरह टकराने की पुनरावृत्ति जैसी घटनाओं से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता रहेगा।
-योगेन्द्र योगी
Why dont government and animal lovers take problem of stray animals seriously