Religion

Gyan Ganga: लक्ष्मणजी से सलाह ना लेकर विभीषण से क्यों सागर पार करने का हल पूछ रहे थे भगवान?

Gyan Ganga: लक्ष्मणजी से सलाह ना लेकर विभीषण से क्यों सागर पार करने का हल पूछ रहे थे भगवान?

Gyan Ganga: लक्ष्मणजी से सलाह ना लेकर विभीषण से क्यों सागर पार करने का हल पूछ रहे थे भगवान?

भगवान श्रीराम जी समस्त वानर सेना को, अपने साथ लेकर सागर के किनारे पहुँचे। मंथन यह करना था कि आखिर इतने विशाल सागर को कैसे पार किया जाये? प्रभु श्रीराम जी के साथ उपस्थित तो एक से एक वीर योद्धा व विद्वान थे। लेकिन श्रीराम जी ने अपने संबोधन में केवल दो ही महानुभवों का मत सुनना चाहा। और वे दोनों में से, एक तो थे श्रीविभीषण जी, एवं दूसरे थे बालि के भाई राजा सुग्रीव। श्रीराम हालाँकि परम बलवान श्रीहनुमान जी, एवं काल के अवतार श्रीलक्ष्मण जी से भी सागर पार करने का हल पूछ सकते थे, जोकि क्षण भर मे समाधान निकाल सकते थे। लेकिन श्रीराम जी ने अपने अनुज श्रीलक्ष्मण जी से पूछने की बजाय, अपने भूतपूर्व शत्रु बालि, व वर्तमान शत्रु रावण के भाई से पहले पूछना उचित समझा। श्रीराम जी ने दोनों से जानना चाहा, कि इस वीभत्स सागर को आखिर, पार कैसे किया जाये। कारण कि सागर में एक से एक भयंकर जीव हैं। अनेक जाति के मगर, साँप और मछलियां इसमें भरी हुई हैं-

‘सुनु कपीस लंकापति बीरा।
केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा।।
संकुल मकर उरग झष जाती।
अति अगाध दुस्तर सब भाँति।।’

भगवान श्रीराम जी की इस लीला के पीछे भी महान भाव छुपा हुआ था। वे दोनों को संदेश देना चाहते थे, कि ऐसा नहीं, कि हम केवल बातों-बातों से ही किसी का सम्मान करते हैं। हम वास्तविकता के धरातल पर भी, व्यक्ति को प्रमुख स्थान देते हैं। क्या हमने यह जानने की कभी इच्छा भी प्रकट की है, कि प्रभु श्रीराम जी उन दोनों के समक्ष ही यह प्रश्न क्यों रखा? तात्विक मंथन यह कहता है, कि श्रीराम जी सागर को एक साधारण पानी का सागर थोड़ी न मान रहे हैं। अपितु यह संदेश प्रेषित करना चाह रहे हैं, कि मात्र केवल हमारे दैहिक मिलन से ही जीव का कल्याण नहीं होता है। हमसे अगर कोई मिल भी ले, लेकिन मान लीजिए, कि उसने सीता जी रूपी भक्ति को नहीं पाया, तो निश्चित ही हमारा मिलन अभी अधूरा माना जायेगा। हमारी प्राप्ति को तभी सार्थक व संपूर्ण मानना चाहिए, जब कोई भी जीव भक्ति स्वरूपा श्रीसीता जी से भी मिल लेता है। श्रीसीता जी को प्राप्त करना इतना आसान भी नहीं है। कारण कि इस महान उपलब्धि हेतु भयंकर कष्ट व बाधाओं से गुजरना पड़ता है।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: सिंहासन की बजाय प्रभु श्रीराम की अखण्ड भक्ति ही क्यों चाहते थे विभीषण

श्रीहनुमान जी सागर पार करके, माता सीता जी को पाने का महान पराक्रम तो पहले ही सपफ़लता पूर्वक कर चुके हैं। और श्रीलक्ष्मण जी मईया को तब से ही समर्पित हैं, जब से वे जनकपुरी होकर आये हैं। माता सीता जी से भेंट व शरणागति तो श्रीविभीषण जी एवं सुग्रीव की शेष थी। श्रीसीता जी को पाने हेतु सागर पार करने की अनिवार्यता ऐसी है, कि यह सिद्धांत प्रत्येक साधक पर लागू होना है।

श्रीविभीषण जी का भाग्य तो देखिए। वे कितने ही माह, माता सीता जी के समीप ही, लंका नगरी में रहे। लेकिन उनकी माता सीता जी से एक बार भी भेंट नहीं हुई। प्रभु से मिलने से पहले, भक्ति रूपी शक्ति से मिलने की अनिवार्यता का अनुपालन उन्हें भी तो करना ही था। यही भक्ति का शश्वत सिद्धांत है।

श्रीराम जी से सुग्रीव ने कुछ भी सलाह नहीं दी। लेकिन श्रीविभीषण जी अवश्य ही अपना मत रखते हैं-

‘कह लंकेस सुनहु रघुनायक।
कोटि सिंधु सोषक तव सायक।।
जद्यपि तदपि नीति असि गाई।
बिनय करिअ सागर सन जाई।।’

श्रीविभीषण जी ने कहा, कि हे प्रभु! वैसे तो आपका एक ही बाण, करोड़ों सागर को सुखाने के लिए प्रयाप्त है। लेकिन तब भी, नीति तो यही कहती है, कि हमें सागर के पास जाकर विनती करनी चाहिए। कारण कि, सागर तो वैसे भी आपके पूर्वजों में से एक हैं। वे आपको अवश्य ही कोई बीच में से रास्ता दे देंगे। और सभी रीछ व वानर सेना, बिना प्रयास के ही सागर पार हो जायेगी।

भगवान श्रीराम जी ने देखा, कि श्रीविभीषण जी की सरलता तो वाकई में उच्च स्तर की है। वे तो प्रत्येक जीव को ही, स्वयं एवं मेरे चरित्र जैसा ही मान रहे हैं। श्रीविभीषण जी अगर परम सरल न होते, तो क्या वे रावण जैसे शुष्क व दुष्ट हृदयी व्यक्ति को समझाने का प्रयास करते? उन्हें लगता है, कि सभी जन सहज व सरल ही होते हैं। उन्हें सागर का स्वभाव भी सहज ही प्रतीत होता हैं। श्रीविभीषण जी को लगा कि सागर की मनोवृति भी सहज है। और जैसे मैं किसी का भी निवेदन सरलता से मान लेता हूँ, ठीक वैसे ही सागर भी सबकी मान लेता होगा। लेकिन भक्ति मार्ग पर चलते हुए, लक्ष्य सहज व आसान हो जाये, भला ऐसा कब होता है? लेकिन श्रीविभीषण जी के मन में भ्रम न रह जाये। तो उनकी बात तो एक बार के लिए रखनी ही होगी। श्रीराम जी ने कहा, कि मित्र तुमने नीति तो अच्छी कही। निश्चित ही ऐसा ही किया जायेगा।

श्रीराम जी को तो, श्रीविभीषण जी की यह सीख बहुत अच्छी लगी, लेकिन क्या अन्य भी उनसे सहमत थे? सहमत न भी हों, लेकिन कोई असहमति में तो नहीं था? जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

-सुखी भारती

Why was god asking vibhishan the solution to cross the ocean without consulting laxmanji

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero