भारत के अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव में 59 देशों से मिली प्रविष्टियां
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भारत के अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव में 59 देशों से मिली प्रविष्टियां इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (आईआईएसएफ)-2022 के एक प्रमुख घटक के रूप में इंटरनेशनल साइंस फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (आईएसएफएफआई) का आयोजन आगामी 21 से 23 जनवरी को भोपाल में किया जा रहा है। आईआईएसएफ के 8वें संस्करण के अंतर्गत आयोजित होने वाले इस अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्मोत्सव में 59 देशों से विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार पर आधारित कुल 437 फिल्म प्रविष्टियां प्राप्त हुई हैं। 

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साइंस कांग्रेस में संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने कहा कि कोविड में स्टेरॉयड के विवेकपूर्ण उपयोग में सबक सीखा
National साइंस कांग्रेस में संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने कहा कि कोविड में स्टेरॉयड के विवेकपूर्ण उपयोग में सबक सीखा

साइंस कांग्रेस में संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने कहा कि कोविड में स्टेरॉयड के विवेकपूर्ण उपयोग में सबक सीखा कोविड-19 महामारी के दौरान स्टेरॉयड का अंधाधुंध इस्तेमाल म्यूकरमायकोसिस के मामलों में वृद्धि के पीछे एक प्रमुख कारक था। एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ ने बुधवार को भारतीय विज्ञान कांग्रेस में यह बात कही। वर्ष 2021 में देश में कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके लोगों में गंभीर लेकिन दुर्लभ फंगल संक्रमण म्यूकरमायकोसिस के काफी मामले देखने को मिले थे। मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में बाल रोग और संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ तनु सिंघल ने कहा कि महामारी ने पर्यावरण को स्वच्छ रखने और स्टेरॉयड जैसी दवाओं के विवेकपूर्ण इस्तेमाल सहित कई सबक सिखाए। मंगलवार से शुरू हुई पांच दिवसीय विज्ञान कांग्रेस में ‘कोविड-19 से जुड़े माध्यमिक संक्रमण’ पर एक प्रस्तुति देते हुए उन्होंने यह टिप्पणी की। सम्मेलन से इतर डॉ सिंघल ने पीटीआई-से कहा कि भारत में मई 2021 तक कोविड-19-संबंधित म्यूकरमायकोसिस के 50,000 से ज्यादा मामले आए थे। डॉ सिंघल ने कहा कि राज्यों के बीच महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में म्यूकरमायकोसिस या ‘ब्लैक फंगस’ संक्रमण के मामले दर्ज किए गए और इसके कई कारण हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इनमें से एक हमारा पर्यावरण है जहां कचरे के सड़ने, उष्णकटिबंधीय जलवायु और आर्द्रता के कारण फंगल रोगाणुओं की संख्या अधिक होती है।’’ संक्रामक रोग विशेषज्ञ ने कहा कि महामारी के मद्देनजर अस्थायी कोविड-19 उपचार केंद्र स्थापित किए गए थे और अस्पतालों में अच्छा ‘वेंटिलेशन’ नहीं था तथा फंगल संक्रमण की ज्यादा आशंका थी। यह पूछे जाने पर कि कोविड-19 के कम मामलों के बीच क्या म्यूकरमायकोसिस के मामले अब भी आ रहे हैं, डॉ सिंघल ने कहा, ‘‘शायद ही कोई नया मामला हो क्योंकि वायरस (कोरोना वायरस) अब कम संक्रामक है, लोगों को टीका लगाया गया है, बीमारी (कोविड-19) की गंभीरता कम है तथा स्टेरॉयड का इस्तेमाल कम हो गया है।

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‘जमीनी नवाचारों को सशक्त बनाने में विज्ञान-प्रौद्योगिकी की अहम् भूमिका’
Proventhings ‘जमीनी नवाचारों को सशक्त बनाने में विज्ञान-प्रौद्योगिकी की अहम् भूमिका’

‘जमीनी नवाचारों को सशक्त बनाने में विज्ञान-प्रौद्योगिकी की अहम् भूमिका’ स्थानीय ज्ञान प्रणालियों की क्षमता की पहचान और उनकी खामियों को दूर करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेप जरूरी है। स्थानीय ज्ञान प्रणाली को मजबूती मिलने से स्थानीय समुदायों के जीवन-यापन के रास्ते खुल सकते हैं, और उनके सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। बुधवार को नई दिल्ली में टेकनींव@75 कार्यक्रम के समापन के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव डॉ एस.

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जी20 में भारत की अध्यक्षता के साथ शुरू होगा साइंस-20
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जी20 में भारत की अध्यक्षता के साथ शुरू होगा साइंस-20 बीस देशों के अंतर-सरकारी और अंतरराष्ट्रीय मंच जी20 में 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। औद्योगिक और विकासशील दोनों देशों के इस संघ का मुख्य फोकस वैश्विक अर्थव्यवस्था के गवर्नेंस पर रहा है। हालाँकि, पिछले कई वर्षों से जी20 देशों का समूह जलवायु परिवर्तन के शमन और सतत् विकास जैसी अन्य वैश्विक चुनौतियों के समाधान की दिशा में काम कर रहा है। इस कड़ी में, जी20 के कई कार्यकारी समूहों की स्थापना की गई है, जिनमें साइंस-20 (एस20) शामिल है।   जी20, एस20 और इसके जैसे अन्य कार्यसमूहों की अध्यक्षता वर्ष 2023 में भारत के पास रहेगी। वर्ष 2023 के लिए एस20 का विषय "

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आठवें अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित
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आठवें अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस); विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी); जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी); वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा विज्ञान भारती (विभा) के सहयोग से भोपाल में आगामी 21-24 जनवरी को इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (आईआईएसएफ) 2022 का आयोजन किया जा रहा है। 

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“विज्ञान पुरस्कारों के युक्तिकरण से बढ़ेगा वैज्ञानिकों का मनोबल”
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“विज्ञान पुरस्कारों के युक्तिकरण से बढ़ेगा वैज्ञानिकों का मनोबल” सभी मंत्रालयों को भारत सरकार द्वारा प्रदान किये जाने वाले पुरस्कारों की संपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणाली बदलने के लिए अपने सभी पुरस्कारों की समीक्षा, युक्तिकरण और पुन: संयोजन करने के लिए कहा गया है। 

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भोपाल में आयोजित होगा आठवाँ भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव
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भोपाल में आयोजित होगा आठवाँ भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव विज्ञान का महाकुंभ कहे जाने वाले इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (आईआईएसएफ) का 8वाँ संस्करण भोपाल में आयोजित किया जा रहा है। राजा भोज की नगरी में 21-24 जनवरी, 2023 को आयोजित होने वाले इस अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में देश-विदेश के वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीविद, नीति-निर्माता, शिल्पकार, स्टार्टअप्स, किसान, शोधार्थी, छात्र और नवोन्मेषक हिस्सा ले रहे हैं। 

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फरीदाबाद स्थित राष्ट्रीय लाइफ साइंस डेटा केंद्र देश को समर्पित
Proventhings फरीदाबाद स्थित राष्ट्रीय लाइफ साइंस डेटा केंद्र देश को समर्पित

फरीदाबाद स्थित राष्ट्रीय लाइफ साइंस डेटा केंद्र देश को समर्पित केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय; राज्य मंत्री पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा, डॉ जितेंद्र सिंह ने फरीदाबाद, हरियाणा में निर्मित राष्ट्रीय लाइफ साइंस डेटा केंद्र - इंडियन बायोलॉजिकल डेटा सेंटर (IBDC) बृहस्पतिवार को राष्ट्र को समर्पित कर दिया है। 

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भारत देगा आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कोष में 50 लाख अमेरिकी डॉलर
International भारत देगा आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कोष में 50 लाख अमेरिकी डॉलर

भारत देगा आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कोष में 50 लाख अमेरिकी डॉलर भारत ने जन स्वास्थ्य, नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत कृषि के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कोष में 50 लाख अमेरिकी डॉलर के अतिरिक्त योगदान की घोषणा की। आसियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की कंबोडिया की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान यह घोषणा की गई। शनिवार को उन्होंने आसियान-भारत शिखर सम्मेलन को संबोधित किया।

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दुनिया की 25 फीसदी आबादी रोजाना मिर्च खाती, तीखेपन का विज्ञान
International दुनिया की 25 फीसदी आबादी रोजाना मिर्च खाती, तीखेपन का विज्ञान

दुनिया की 25 फीसदी आबादी रोजाना मिर्च खाती, तीखेपन का विज्ञान रॉबर्टो सिल्वेस्ट्रो, पीएचडी शोधार्थी, जीव विज्ञान, यूनिवर्सिटी डु क्यूबेक ए चिकोटिमी (यूक्यूएसी) सगुनेय (कनाडा), छह नवंबर (द कन्वरसेशन) दुनिया की 25 फीसदी आबादी फिलहाल रोजाना मिर्च खाती है। तीखापन या इसकी धारणा, दुनियाभर के अधिकतर व्यंजनों में होती है। जीनस कैप्सिकम (परिवार सोलानेसी) मिर्च दुनिया के सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों में से एक है, जो हजारों व्यंजनों में इस्तेमाल होता है और कभी-कभी इसे एक अलग व्यंजन के रूप में भी खाया जाता है। वन पारिस्थितिकी-भौतिक विज्ञानी के रूप में हम अन्य जीवित प्राणियों और आसपास के वातावरण के साथ संवाद करने के लिए पौधों द्वारा विकसित अनुकूलन लक्षणों का अध्ययन करते हैं। मिर्च और तीखापन पर शोध बहुविषयक विज्ञान का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। पिछले दशकों में कई शोधकर्ताओं ने इस सबसे अनोखी और वांछनीय मौखिक संवेदना के बारे में विशिष्ट जानकारी प्रदान की है। एक संक्षिप्त इतिहास वर्ष 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस के नयी दुनिया की तलाश तक मिर्च दुनिया के अधिकांश लोगों के लिए अज्ञात थी। कई मूल सिद्धांतों ने दक्षिण अमेरिका के विभिन्न हिस्सों को ‘‘उस’’ स्थान के रूप में चिह्नित किया जहां से मिर्च आई थी। एक फाईलोजेनेटिक विश्लेषण में पाया गया कि उनका संबंध पश्चिमी से उत्तर-पश्चिमी दक्षिण अमेरिका के एंडीज के साथ एक क्षेत्र से है। ये पुरानी मिर्च जंगली ‘‘छोटे लाल, गोल, बेरी जैसे फल’’ थे। इंसानों के भोजन का हिस्सा बनने का सबसे पहला प्रमाण मेक्सिको या उत्तरी मध्य अमेरिका में 6,000 साल पहले का है। 16वीं शताब्दी में मिर्च यूरोप पहुंची। वर्तमान में, मिर्च की पांच घरेलू प्रजातियां हैं। खायी जाने वाली प्रजातियों में कैप्सिकम एनम, सी चिनेंस, सी फ्रूटसेन्स, सी बैकाटम और सी प्यूब्सेंस हैं। सबसे अधिक किस्मों वाली प्रजाति सी.

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अमृतकाल में अहम होगी विज्ञान संचार और लोकप्रियकरण की भूमिका
Proventhings अमृतकाल में अहम होगी विज्ञान संचार और लोकप्रियकरण की भूमिका

अमृतकाल में अहम होगी विज्ञान संचार और लोकप्रियकरण की भूमिका भारत को 21वीं सदी में विकसित राष्ट्र बनने का एकमात्र आधार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी होगी। वरिष्ठ विज्ञान पत्रकार एवं लेखक पल्लब बागला ने यह बात विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के स्वायत्त संगठन विज्ञान प्रसार के 33वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित अपने विशेष व्याख्यान के दौरान कही है। विज्ञान संचार और लोकप्रियकरण के जरिये समाज में वैज्ञानिक चेतना जागृत करने के उद्देश्य से 11 अक्तूबर 1989 को विज्ञान प्रसार की स्थापनी हुई थी। चार दशकों की अपनी पत्रकारीय यात्रा के दौरान पल्लब बागला ने भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित बदलावों को करीब से देखा है और उन्हें कवर किया है। 

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