
जोशीमठ में एकाएक नहीं आई है आपदा, प्रकृति और पर्यावरण की अनदेखी का परिणाम है यह त्रासदी पर्यावरण एवं प्रकृति की दृष्टि से हम बहुत ही खतरनाक दौर में पहुंच गए हैं क्योंकि संभव है कि मानव की गतिविधियां ही इसके विनाश का कारण बन जाएं। आज के दौर में समस्या प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने, पर्यावरण विनाश एवं प्राकृतिक आपदाओं की हैं। सरकार की नीतियां, उपेक्षाएं एवं विकास की अवधारणा ने ऐसी स्थितियों को खड़ा कर दिया है कि सरकार की बजाय न्यायालयों को बार-बार अपने डंडे का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। जोशीमठ एवं चंडीगढ़ ऐसी ही स्थितियों के ताजे गवाह बने हैं। जोशीमठ की भूमि में पड़ी दरारें एक बड़ी त्रासदी के साथ वहां रहने वाले लोगों के जीवन-संकट का कारण बनी है। यह पर्यावरण एवं प्रकृति की उपेक्षा एवं तथाकथित अनियोजित विकास का परिणाम है, ऐसे ही अनियोजित विकास के कारण चंडीगढ़ जैसे महानगर किसी बड़े संकट को भविष्य में झेलने को विवश न हो, इसके लिये चंडीगढ़ में रिहाइशी इलाकों के स्वरूप में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, वह दूरगामी महत्त्व का है। यह न सिर्फ चंडीगढ़ को एक विरासत के रूप में बचाने की फिक्र है, बल्कि एक तरह से विकास के नाम पर चलने वाली उन गतिविधियों पर भी टिप्पणी है, जिसकी वजह से कोई शहर आम जनजीवन से लेकर पर्यावरण तक के लिहाज से बदइंतजामी का शिकार हो जाता है। आधुनिक राजसत्ताओं को पर्यावरण की दुश्मन मानें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आर्थिक एवं भौतिक तरक्की अक्सर प्रकृति एवं पर्यावरण के विनाश का कारण बनती रही है। हमें विकास की कार्ययोजनाएं पर्यावरणीय आधारित बनानी होगी।
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