दक्षिण की जनता तो हिंदी से करती है प्रेम, सिर्फ राजनेता ही करते हैं राजभाषा का विरोध
Column दक्षिण की जनता तो हिंदी से करती है प्रेम, सिर्फ राजनेता ही करते हैं राजभाषा का विरोध

दक्षिण की जनता तो हिंदी से करती है प्रेम, सिर्फ राजनेता ही करते हैं राजभाषा का विरोध स्वाधीनता संग्राम में सपना तो था राष्ट्रभाषा बनाने का, लेकिन संविधान सभा की बहसों तक पहुंचते-पहुंचते हिंदी राजभाषा की जिम्मेदारी तक ही सिमट गई। यह बात और है कि कायदे से अपना वह स्थान भी वह संपूर्णता में नहीं हासिल कर पाई। संविधान लागू होने से पंद्रह साल तक की उसे जो मोहलत मिली, वह लगातार बढ़ती चली गई। जब भी उसे संपूर्णता में आगे बढ़ाने की कोशिश हुई, उसके विरोध में स्थानीय राजनीति खड़ी हो गई। विरोध की तीखी शुरुआत 25 जनवरी 1965 को जो हुई, वह हर बार तब और तेजी से उभर आती है, जब भी राजभाषा बनाने की दिशा में सरकारी स्तर पर कोई कदम उठाया जाता है। ऐसा ही नजारा एक बार फिर दिख रहा है। इसका माध्यम बनी है संसदीय राजभाषा समिति की हालिया रिपोर्ट, जिसमें उसने उच्च और तकनीकी शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए हिंदी पर जोर देने की वकालत की है। इस रिपोर्ट में केंद्रीय नौकरियों में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करने और उसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के लिए गंभीर और ठोस प्रयास करने की भी सिफारिश की गई है।

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गिलगित बाल्टिस्तान समेत PoK में अत्याचारों की जो बात राजनाथ सिंह ने कही है, वह एकदम सही है
Column गिलगित बाल्टिस्तान समेत PoK में अत्याचारों की जो बात राजनाथ सिंह ने कही है, वह एकदम सही है

गिलगित बाल्टिस्तान समेत PoK में अत्याचारों की जो बात राजनाथ सिंह ने कही है, वह एकदम सही है रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत की उत्तर में विकास यात्रा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के गिलगित और बाल्टिस्तान के हिस्सों में पहुंचने के बाद पूरी होगी। साथ ही उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लोगों पर जो अत्याचार किये जा रहे हैं उसके अंजाम पाकिस्तान को भुगतने होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि गिलगित और बाल्टिस्तान के बारे में बात करके भारत क्या संदेश देना चाहता है और वो कौन-से अत्याचार हैं जो पीओके के लोगों पर किये जा रहे हैं। साथ ही हमें यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का जम्मू-कश्मीर से पीओके के बारे में चार महीने के भीतर दिया गया यह दूसरा बयान है। हम आपको याद दिला दें कि इससे पहले जब जुलाई में रक्षा मंत्री जम्मू-कश्मीर गये थे तब भी उन्होंने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को फिर से हासिल करने की वकालत करते हुए कहा था कि यह भारत का हिस्सा है और रहेगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह भी कहा था कि हम पर बुरी नजर डालने वाला कोई भी हो, भारत मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।

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ऋषि सुनक अल्पसंख्यक होने के कारण नहीं बल्कि अपनी योग्यता के चलते प्रधानमंत्री बने हैं
Column ऋषि सुनक अल्पसंख्यक होने के कारण नहीं बल्कि अपनी योग्यता के चलते प्रधानमंत्री बने हैं

ऋषि सुनक अल्पसंख्यक होने के कारण नहीं बल्कि अपनी योग्यता के चलते प्रधानमंत्री बने हैं ब्रिटेन में ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर भारत में बधाइयों का तांता लगना चाहिए था लेकिन अफसोस है कि हमारे नेताओं के बीच फूहड़ बहस चल पड़ी है। कांग्रेस के दो प्रमुख नेता, जो काफी पढ़े-लिखे और समझदार हैं, उन्होंने बयान दे मारा कि सुनक जैसे ‘अल्पसंख्यक’ को यदि ब्रिटेन-जैसा कट्टरपंथी देश अपना प्रधानमंत्री बना सकता है तो भारत किसी अल्पसंख्यक को अपना नेता क्यों नहीं बना पाया?

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हू जिंताओ के साथ जो हश्र हुआ उसे ही कहते हैं ‘जैसी करनी वैसी भरनी’
Column हू जिंताओ के साथ जो हश्र हुआ उसे ही कहते हैं ‘जैसी करनी वैसी भरनी’

हू जिंताओ के साथ जो हश्र हुआ उसे ही कहते हैं ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ राजनीति और इतिहास की दुनिया में एक कहावत बार-बार दोहराई जाती है। कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि 22 अक्टूबर 2002 की तारीख को हिमालय के दूसरी तरफ, द ग्रेट चाइना वाल के उस पार जो कुछ हुआ, क्या उसे 14 मार्च 1998 की पुनरावृत्ति कहेंगे?

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भारत पर दो सौ वर्षों तक राज करने वाले ब्रिटेन पर अब भारतवंशी का राज
Column भारत पर दो सौ वर्षों तक राज करने वाले ब्रिटेन पर अब भारतवंशी का राज

भारत पर दो सौ वर्षों तक राज करने वाले ब्रिटेन पर अब भारतवंशी का राज भारतीय मूल के ऋषि सुनक एक नया इतिहास रचते हुए ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री की शपथ ले चुके हैं। उन्होंने पेनी मोरडॉन्ट को मात देते हुए जीत हासिल की है। कंजरवेटिव पार्टी का नेतृत्व करने की रेस ऋषि सुनक जीत चुके हैं। पार्टी ने उन्हें अपना नया नेता चुन लिया है। यह पहली बार हुआ है जब कोई भारतीय मूल का व्यक्ति ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना है। हालांकि इससे ब्रिटेन पर छाए राजनीतिक और आर्थिक संकट के बादल कितने कम होंगे, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन सुनक के बहाने यदि ब्रिटेन आर्थिक संकट से उबरने में सक्षम हो सका तो यह न केवल सुनक के लिये बल्कि भारत के लिये गर्व का विषय होगा। भले ही सुनक के सामने कई मुश्किल चुनौतियां और सवाल हैं, लेकिन उन्हें एक सूरज बनकर उन जटिल हालातों से ब्रिटेन को बाहर निकालना है।

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आमदनी के लिए केदारनाथ यात्रियों के साथ वन्यजीवों का जीवन संकट खतरे में
Column आमदनी के लिए केदारनाथ यात्रियों के साथ वन्यजीवों का जीवन संकट खतरे में

आमदनी के लिए केदारनाथ यात्रियों के साथ वन्यजीवों का जीवन संकट खतरे में धार्मिक पर्यटन से ज्यादा कमाई के लालच में उत्तराखंड में यात्रियों के साथ ही जैव विविधता और वन्य जीवों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है। केदारनाथ में हेलीकॉप्टर हादसे में 6 लोगों की मौत का हादसा नया नहीं है। पिछले 9 सालों में केदारनाथ में पांच हेलीकॉप्टर दुर्घटनाए हो चुकी हैं। वर्ष 2020 में हेलीकॉप्टर के ऊंचाई की निर्धारित दूरी के उल्लंघन के 74 मामले सामने आ चुके हैं। इसकी तहत हेलीकॉप्टर 250 मीटर से नीची उड़ान नहीं भर सकते। इसके बावजूद पर्यटन क्षेत्र से लोगों और सरकारी तंत्र ने कोई सबक नहीं सीखा। मौजूदा हालात को देख कर यही लगता है कि सरकारी तंत्र को और किसी बड़े हादसे का इंतजार है, शायद इसी के बाद ऐसे मामले पर अंकुश लग सके। हेलीकॉप्टर संचालित करने वाला कंपनियां सिर्फ अपना मुनाफा वसूलने के लिए धार्मिक यात्रियों की जान जोखिम में डाल रही हैं। आश्चर्य की बात यह है कि सरकारी एजेंसियां कंपनियों की मनमानी रोकने में नाकाम रही हैं।

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हिन्दी में उच्च शिक्षा गांव-देहात, गरीब बच्चों के लिए योगी सरकार का तोहफा
Column हिन्दी में उच्च शिक्षा गांव-देहात, गरीब बच्चों के लिए योगी सरकार का तोहफा

हिन्दी में उच्च शिक्षा गांव-देहात, गरीब बच्चों के लिए योगी सरकार का तोहफा मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी घोषणा की है कि वह भी अपने यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिन्दी में कराने की तैयारी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में कराये जाने का साहसिक निर्णय लिया है उसका अनुसरण अन्य राज्यों में भी होना जरूरी है। फिलहाल तो मध्य प्रदेश पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में शुरू हो रही है। यह अच्छी बात है कि जब हमारे यहां अपनी मातृ भाषा में पढ़कर डाक्टर इंजीनियर बाहर निकलेंगे तो उनका आम जनता से जुड़ाव भी बेहतर तरीके से हो सकेगा। इसी लिए मध्य प्रदेश सरकार के फैसले का स्वागत हो रहा है। जश्न भी मनाया जा रहा है,लेकिन सवाल यह है कि यह सब तो आजादी के बाद ही हो जाना चाहिए था,इसके लिए 75 वर्षो तक यदि इंतजार करना पड़ा तो इसका जिम्मेदार कौन है। क्या यह सच नहीं है कि 1947 में हमें अंग्रेजों की गुलामी से भले ही आजादी मिल गई थी,लेकिन दो सौ वर्ष की गुलामी का असर आज भी हमारी मानसिकता और रहन-सहन पर हावी है। इसकी सबसे बड़ी कीमत हमारी मातृ भाषा हिन्दी और तमाम राज्यों की क्षेत्रीय भाषाओं को चुकानी पड़ी। निश्चित रूप से आजादी के पश्चात हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए हमारे सिस्टम और उस दौर की सरकारों को भूमिका भी अच्छी नहीं रही होगी,नहीं तो हालात ऐसे नहीं होते। अपने ही देश में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए जब हिन्दी पखवाड़ा मनाना पड़े तो समझा जा सकता है कि हिन्दी के प्रति हमारी कैसी उदासीनता रही होगी।

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भ्रष्टाचार पर राजनीति से कमजोर होता लोकतंत्र
Column भ्रष्टाचार पर राजनीति से कमजोर होता लोकतंत्र

भ्रष्टाचार पर राजनीति से कमजोर होता लोकतंत्र पिछले सालों में शीर्ष मंत्रियों, सांसदों, विधायकों एवं राजनैतिक दलों के शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के मामलों में जांच एंजेन्सियों की कार्रवाई की साहसिक परम्परा का सूत्रपात हुआ है, तभी से इस तरह की कार्रवाईयां में राजनीतिक दलों को अपना जनाधार बढ़ाने की जमीन नजर आने लगी है। इन शर्मनाक, अनैतिकता, भ्रष्टाचार एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन की घटनाओं में शामिल राजनीतिक अपराधियों को भरतसिंह से उपमित करना राजनीतिक गिरावट की चरम पराकाष्ठा है। अपने नेताओं के काले कारनामों पर परदा डालने के लिये राजनीतिक दलों के तथाकथित कार्यकर्ता प्रदर्शन करते हुए सड़कों पर उतर आते हैं जो आम जनता के लिये परेशानी का सबब बनते हैं। यह कैसा राजनीति चरित्र गढ़ा जा रहा है?

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खाद्य उत्पादों की बर्बादी को रोकने के लिए कड़े कदम उठाना बहुत जरूरी हो गया है
Column खाद्य उत्पादों की बर्बादी को रोकने के लिए कड़े कदम उठाना बहुत जरूरी हो गया है

खाद्य उत्पादों की बर्बादी को रोकने के लिए कड़े कदम उठाना बहुत जरूरी हो गया है इस पृथ्वी पर रहने वाले मानवों की भलाई के लिए खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुकसान को रोका जाना आज की बड़ी आवश्यकता बन गया है। पूरे विश्व में ही आज खाद्य पदार्थों की बर्बादी बड़े स्तर पर हो रही है। इससे नागरिकों की खाद्य सुरक्षा पर भी एक गम्भीर प्रश्न चिह्न लग गया है। यूनाइटेड नेशन्स के पर्यावरण कार्यक्रम के एक अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में 14 प्रतिशत खाद्य पदार्थों का नुकसान खाद्य पदार्थों को उत्पत्ति स्थल से खुदरा बिक्री स्थल तक पहुंचाने में हो जाता है। इसके अलावा, अन्य 17 प्रतिशत खाद्य पदार्थों का नुकसान इन्हें खुदरा बिक्री स्थल से उपभोक्ता के स्थल तक पहुंचाने में हो जाता है। खाद्य पदार्थों के इतने बड़े नुकसान का वातावरण में उत्सर्जित हो रही कुल गैसों में 8 से 10 प्रतिशत तक का योगदान रहता है। आज खाद्य पदार्थों में इस भारी मात्रा में हो रहे नुकसान का असर पूरे विश्व में रह रहे मानवों को खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने पर बहुत विपरीत रूप से पड़ रहा है एवं खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में लगातार हो रही कमी के चलते ही विश्व के सभी देशों में मुद्रास्फीति की समस्या भी खड़ी हो गई है।    खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुकसान की समस्या दिनों दिन बहुत गम्भीर होती जा रही है। यह केवल खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुकसान से जुड़ा हुआ विषय नहीं है बल्कि इन पदार्थों के उत्पादन पर खर्च किये जाने वाले समय, पानी, खाद, श्रम, एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने हेतु लागत एवं अन्य स्त्रोतों के अपव्यय का गम्भीर विषय भी शामिल है। विभिन्न खाद्य पदार्थों के होने वाले अपव्यय एवं नुकसान में एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने ले जाने में खर्च होने वाले डीजल, पेट्रोल का भी न केवल अपव्यय होता है बल्कि वातावरण में एमिशन गैस को फैलाने में भी इसकी बहुत बड़ी भूमिका रहती है। खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करने वाली आपूर्ति चैन एवं इन खाद्य पदार्थों के कुल जीवन चक्र पर भी विपरीत असर पड़ता है। कुल मिलाकर खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुकसान से सभी देशों पर ही हर प्रकार से बहुत विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।  वर्ष 2014 में किए गए एक अध्ययन प्रतिवेदन के अनुसार खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुकसान से देश को भारी आर्थिक हानि भी होती है। इस प्रतिवेदन के अनुसार भारत को वर्ष 2014 में इस मद पर 92,156 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था। न केवल खाद्य सामग्री के उत्पादन तक बल्कि खाद्य सामग्री के उत्पादन के बाद भी भारी नुकसान होते हुए देखा गया है। भारत में इस नुकसान का आकलन वर्ष 1968 से किया जा रहा है एवं इस नुकसान को नियंत्रित करने के प्रयास भी निरंतर किए जा रहे हैं परंतु उचित परिणाम अभी तक दिखाई नहीं दे रहे हैं। विशेष रूप से उत्पादन के बाद के नुकसान को समाप्त करने के लिए आज सम्पूर्ण सप्लाई चैन को ही ठीक करने की जरूरत है। उचित स्तर पर अधोसंरचना के विकसित न होने के चलते भी अक्सर सब्ज़ियों एवं फलों का अधिक नुकसान होते देखा गया है।इसे भी पढ़ें: मोदी सरकार की नीतियों की बदौलत कृषि क्षेत्र में तेजी से बढ़े हैं रोजगार के अवसर140 करोड़ नागरिकों की जनसंख्या वाले भारत जैसे एक विकासशील देश के लिए एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि के खाद्य पदार्थों का नुकसान, बहुत भारी नुक्सान है, जो देश की आर्थिक प्रगति को भी सीधे-सीधे ही प्रभावित कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार यदि खाद्य पदार्थों के इस नुकसान को रोक दिया जाये तो देश के सकल घरेलू उत्पाद में भी उछाल लाया जा सकता है एवं इससे अंततः नागरिकों की आय में वृद्धि हो सकती है।  खाद्य पदार्थों का अपव्यय एवं नुकसान विभिन्न स्तरों पर होता है। सबसे पहले तो किसान द्वारा विभिन्न प्रकार की फसलों की बुआई के समय से ही खाद्य पदार्थों का अपव्यय एवं नुकसान प्रारम्भ हो जाता है। फिर फसल के पकने के बाद फसल की कटाई करने से लेकर फसल के उत्पाद को मंडी में पहुंचाने तक भी खाद्य पदार्थों का अपव्यय एवं नुकसान होता है। मंडी से खुदरा व्यापारी तक उत्पाद को पहुंचाने पर भी नुकसान होता है। इसके बाद खुदरा व्यापारी से खाद्य पदार्थों को उपभोक्ता तक पहुंचाने में भी नुकसान होता है। हालांकि इस पूरी चैन में कोई भी व्यक्ति खाद्य पदार्थों में नुक्सान होने देना नहीं चाहता है परंतु फिर भी इसे रोक पाने में असमर्थता-सी महसूस की जा रही है।    खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुकसान को रोकने हेतु सबसे पहले तो अधोसंरचना को विकसित करने एवं सप्लाई चैन का अर्थपूर्ण उपयोग करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। कोल्ड स्टोरेज हालांकि बहुत बड़ी मात्रा में स्थापित किए जा रहे हैं परंतु यह अभी भी इनकी लगातार बढ़ रही मांग की पूर्ति करने में सक्षम नहीं हो पा रहे है। दूसरे, कोल्ड स्टोरेज को ग्रामीण इलाकों में भी स्थापित किए जाने की आज आवश्यकता है। नागरिकों को खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुकसान से अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान की जानकारी देकर उनमें इस सम्बंध में पर्याप्त जागरूकता लाने की भी जरूरत है। कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के साथ ही इन पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने ले जाने के लिए अच्छे रेल एवं रोड मार्ग के साथ ही यातायात की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध होना भी बहुत जरूरी है। ग्रामीण इलाकों में ही फूड प्रॉसेसिंग इकाईयों की स्थापना भी की जानी चाहिए ताकि खाद्य पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने ले जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़े अथवा कम आवश्यकता पड़े।  कभी कभी आवश्यकता से अधिक पैदावार होने से भी किसानों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। आवश्यकता से अधिक पैदावार हो जाने से इन पदार्थों की कीमतें बाजार में बहुत कम हो जाती हैं जैसे, आलू, टमाटर, प्याज आदि फसलों के बारे में अक्सर देखा गया है। जिसके चलते किसान को बहुत नुकसान होता है और वह इन फसलों को बर्बाद करने में ही अपनी भलाई समझता है। इस प्रकार की समस्याओं को हल करने के लिए केंद्रीय स्तर पर विचार किया जाना चाहिए एवं विभिन्न पदार्थों के उत्पादन की सीमा तय की जा सकती है ताकि देश में किस पदार्थ की जितनी आवश्यकता है उतना ही उत्पादन हो। और, इस प्रकार की फसलों की बर्बादी को रोका जा सके। कब, कैसे, कहां, कितनी मात्रा में किस फसल का उत्पादन देश में किया जाना चाहिए, इस पर गम्भीरता से आज विचार किये जाने की आवश्यकता है। ताकि, विभिन्न पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान पर अंकुश लगाया जा सके।   खाद पदार्थों के नुकसान का प्रभाव वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे उत्सर्जन (गैसों) के बढ़ने के रूप में भी देखा जा रहा है। यदि आवश्यकता के अनुरूप ही खाद्य पदार्थों का उत्पादन होने लगे और खाद्य पदार्थों के नुकसान एवं अपव्यय को पूर्णतः रोक लिया जाये तो देश को होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने के साथ ही वातावरण में उत्सर्जन (गैसों) की मात्रा भी कम की जा सकती है।  -प्रह्लाद सबनानी सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधकभारतीय स्टेट बैंक

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राजस्थान में कांग्रेस भले दो खेमों में विभाजित है, पर भाजपा तो कई गुटों में बँटी हुई है
Column राजस्थान में कांग्रेस भले दो खेमों में विभाजित है, पर भाजपा तो कई गुटों में बँटी हुई है

राजस्थान में कांग्रेस भले दो खेमों में विभाजित है, पर भाजपा तो कई गुटों में बँटी हुई है राजस्थान में अगले विधानसभा चुनाव होने में करीबन एक साल का समय बाकी रह गया है। चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं ने अब चुनावी मैदान में आकर लोगों से जन संपर्क करना शुरू कर दिया है। मगर राजस्थान में सत्तारुढ़ दल कांग्रेस व मुख्य विपक्षी दल भाजपा में बड़े नेताओं की लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। जिससे दोनों ही बड़े दलों का चुनावी अभियान भी प्रभावित हो रहा है। राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जहां अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपने पूरे दाव पेंच आजमा रहे हैं। वहीं उनके विरोधी पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान के भरोसे मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। भाजपा की स्थिति तो कांग्रेस से भी अधिक खराब है। जहां कांग्रेस में गहलोत व पायलट के दो ही खेमे हैं। वहीं भाजपा में तो हर बड़े नेता का अपना खेमा है। आपसी गुटबाजी को मिटाने के लिए भाजपा के बड़े नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष लगातार राजस्थान का दौरा कर पार्टी के सभी नेताओं को एकजुट करने का प्रयास करते हैं। मगर जैसे ही दिल्ली से आए बड़े नेता राजस्थान से बाहर निकलते हैं। उसके तुरंत बाद ही प्रदेश भाजपा के नेता फिर से एक दूसरे की टांग खिंचाई में लग जाते हैं।इसे भी पढ़ें: राजस्थान के मंत्री ने राहुल गांधी की 'तुलना' प्रभु राम से की, बीजेपी बोली- चापलूसी की हद, विवाद बढ़ने पर कांग्रेस ने दी सफाईभाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया आज भी खुद के मुख्यमंत्री होने का भ्रम पाले हुए हैं। उनका व्यवहार पूर्व मुख्यमंत्री का न होकर आज भी मुख्यमंत्री की तरह का ही रहता है। वसुंधरा राजे मानती हैं कि राजस्थान में भाजपा की सबसे बड़ी नेता वही हैं। उनके बिना कभी भी प्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं बन सकती है। एक समय था जब राजस्थान में वसुंधरा का मतलब ही भाजपा होता था। मगर अब समय पूरी तरह से बदल चुका है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा में क्षेत्रीय नेता कमजोर पड़े हैं। वहीं केंद्रीय नेतृत्व मजबूत हुआ है।

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भारत विरोधी दुष्प्रचार के चलते कई देशों में बढ़ी है हिंदुओं के खिलाफ हिंसा
Column भारत विरोधी दुष्प्रचार के चलते कई देशों में बढ़ी है हिंदुओं के खिलाफ हिंसा

भारत विरोधी दुष्प्रचार के चलते कई देशों में बढ़ी है हिंदुओं के खिलाफ हिंसा इस महीने भारत सहित पूरी दुनिया में इस तरह की घटनाएं देखने व सुनने को मिलीं जिससे लगा है कि भारत विरोध, विशेषकर हिन्दूफोबिया अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। अन्तर केवल इतना आया है कि विरोध की इस लड़ाई का रणक्षेत्र जो पहले भारत था आज वह विदेशी भूमि बनता दिख रहा है। अमेरिकी संस्था नेटवर्क कंटेजियन रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध में खुलासा हुआ है कि हिन्दुओं के खिलाफ नफरत और हिंसा के मामलों में रिकॉर्ड 1000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इंस्टीट्यूट के सह-संस्थापक जोएल फिंकेलस्टाइन ने कहा कि हिन्दू विरोधी मीम्स, नफरत और हिंसक एजेण्डा गढ़ा जा रहा है। इन हमलों और नफरत का माहौल बनाने में श्वेत वर्चस्ववादी और कट्टरपन्थी इस्लामिक लोगों का हाथ है। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों में हिन्दुओं पर हिंसा बढ़ी है। हिन्दूफोबिया को एक साजिश के तहत बढ़ाया जा रहा है।

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प्रशासन से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त होने पर ही आएंगे आम जनता के ‘अच्छे दिन’
Column प्रशासन से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त होने पर ही आएंगे आम जनता के ‘अच्छे दिन’

प्रशासन से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त होने पर ही आएंगे आम जनता के ‘अच्छे दिन’ प्रशासनिक सुधार की जरूरत महसूस करते हुए नौकरशाहों को दक्ष, जिम्मेदारी, ईमानदार, कानूनों की पालना करने वाले एवं उनकी समयबद्ध कार्यप्रणाली की आवश्यकता लंबे समय से रेखांकित की जाती रही है। जबकि बार-बार ऐसे उदाहरण सामने आते रहे हैं जिनसे पता चलता है कि देश की नौकरशाही न केवल अदालतों के फैसलों का पालन करने-कराने में विफल हो रही है, बल्कि उनके भ्रष्टाचार से जुड़े मामले एवं लापरवाह नजरिया देश के विकास की एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहा है। निश्चित ही उनकी भ्रष्टाचारयुक्त कार्यप्रणाली, अपने आपको सर्वेसर्वा मानने की मानसिकता, जनता के प्रति गैरजिम्मेदाराना व्यवहार, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कोताही, ये स्थितियां देश को अपने उद्देश्य हासिल करने में भी विफल कर रही हैं। उनके अहंकार का उदाहरण है राजस्थान के नागौर के एक एसडीएम और सरकारी डॉक्टर का एक-दूसरे से तू-तू मैं-मैं करना। भ्रष्टाचार के उदाहरणों में प्रमुख है झारखंड की खान सचिव और उनके करीबियों पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी में 19 करोड़ की राशि नगद मिलना एवं कानून की अनुपालना में कोताही का ताजा मामला आइटी अधिनियम की धारा 66-ए का है। नौकरशाह ही वास्तव में देश के विकास को गति देते हैं, लेकिन इनमें जब काम करने के बजाय पैसे कमाने की होड़ और काम अटकाने की प्रवृत्ति दिखाई देती है, तो निराशा होती है।

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कांटे की चुनावी लड़ाई वाले हिमाचल के विधानसभा चुनावों में इस बार बहुत कुछ नया है
Column कांटे की चुनावी लड़ाई वाले हिमाचल के विधानसभा चुनावों में इस बार बहुत कुछ नया है

कांटे की चुनावी लड़ाई वाले हिमाचल के विधानसभा चुनावों में इस बार बहुत कुछ नया है हिमाचल प्रदेश में 68 सदस्यीय विधानसभा के चुनावों की तारीखों को ऐलान के साथ ही चुनावी शंखनाद हो गया है। देखा जाये तो हिमाचल का चुनाव कोरोना काल के बाद पहला चुनाव भी है जिसमें किसी तरह का कोविड प्रोटोकॉल नहीं होगा। हम आपको याद दिला दें कि कोरोना काल में 2020 में बिहार, 2021 में असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और इस साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में चुनाव कराना आयोग के लिए कड़ी मशक्कत का काम रहा था।

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अखिलेश और शिवपाल के बीच की दूरी खत्म करवाएंगे लालू और नीतीश कुमार
Column अखिलेश और शिवपाल के बीच की दूरी खत्म करवाएंगे लालू और नीतीश कुमार

अखिलेश और शिवपाल के बीच की दूरी खत्म करवाएंगे लालू और नीतीश कुमार समाजवादी पार्टी के भीष्म पितामह मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनके शुभचिंतकों को समाजवादी पार्टी के अस्तित्व को लेकर चिंता सताने लगी है। कहीं पार्टी में स्थितियां बेहद खराब ना हो जाएं इसको लेकर सबसे ज्यादा परेशान मुलायम सिंह यादव के समधी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव नजर आ रहे हैं। उनको समाजवादी पार्टी की असलियत पता है। वह जानते हैं कि अखिलेश के लिए तब तक राह आसान नहीं जब तक उनके सिर पर किसी अनुभवी व्यक्ति का हाथ नहीं होगा। कहने को तो अखिलेश के साथ उनके चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव खड़े हुए हैं लेकिन राजनीति के जानकार कहते हैं प्रोफेसर साहब के पास ऐसी राजनैतिक काबिलियत नहीं है जिसके बल पर कार्यकर्ताओं और संगठन को मजबूती प्रदान कर सकें।

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गहलोत के बारे में फैसला सोनिया नहीं करेंगी, अध्यक्ष बनते ही खडगे लेंगे बड़ा निर्णय
Column गहलोत के बारे में फैसला सोनिया नहीं करेंगी, अध्यक्ष बनते ही खडगे लेंगे बड़ा निर्णय

गहलोत के बारे में फैसला सोनिया नहीं करेंगी, अध्यक्ष बनते ही खडगे लेंगे बड़ा निर्णय राजस्थान कांग्रेस में चल रहे घटनाक्रम को लेकर कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह से सतर्क नजर आ रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी राजस्थान पर पूरी नजर रखे हुए हैं। जिस तरह से 25 सितंबर को दिल्ली से आए कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षकों मल्लिकार्जुन खड़गे व अजय माकन के सामने कांग्रेस के विधायकों ने प्रदर्शन किया था। उससे पार्टी में चल रही अंदरूनी फूट उजागर हो गई थी। जयपुर की घटना से कांग्रेस आलाकमान सकते में आ गया था। उस घटना से कांग्रेस पार्टी पूरे देश में एकबारगी तो बैकफुट पर नजर आने लगी थी। इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राजस्थान गए पार्टी पर्यवेक्षकों से पूरे घटनाक्रम की लिखित में रिपोर्ट ली थी ताकि जरूरत पड़ने पर उसी के मुताबिक कार्यवाही की जा सके।

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मुलायमजी और अटलजी से जुड़ा एक पुराना किस्सा मुझे याद आ रहा है
Column मुलायमजी और अटलजी से जुड़ा एक पुराना किस्सा मुझे याद आ रहा है

मुलायमजी और अटलजी से जुड़ा एक पुराना किस्सा मुझे याद आ रहा है मुलायम सिंह जी और अटलजी से मेरा 55-60 साल पुराना संबंध रहा है। मेरे पिताजी श्री जगदीशप्रसाद वैदिक अटलजी से भी ज्यादा घनघोर जनसंघी थे। जनसंघ और संघ के सारे अधिकारी इंदौर में मेरे घर को अपना ठिकाना ही समझते थे। लेकिन 1962 में इंदौर के छात्र नेता के तौर पर मैंने डॉ.

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सियासी अखाड़े के अपराजेय पहलवान थे मुलायम, उनका चले जाना बड़ी क्षति है
Column सियासी अखाड़े के अपराजेय पहलवान थे मुलायम, उनका चले जाना बड़ी क्षति है

सियासी अखाड़े के अपराजेय पहलवान थे मुलायम, उनका चले जाना बड़ी क्षति है विधि का मुकम्मल विधान तो यही है कि जो आया है वो जाएगा। लेकिन जाने वाला अपने जीते जी करके क्या गया?

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भारत की आर्थिक उपलब्धियों को कम नहीं आंकें, हमारे यहाँ मंदी की कोई संभावना नहीं है
Column भारत की आर्थिक उपलब्धियों को कम नहीं आंकें, हमारे यहाँ मंदी की कोई संभावना नहीं है

भारत की आर्थिक उपलब्धियों को कम नहीं आंकें, हमारे यहाँ मंदी की कोई संभावना नहीं है ऐसा कहा जाता है कि अर्थशास्त्र एक जटिल विषय है। जिस प्रकार शरीर की विभिन्न नसें, एक दूसरे से जुड़ी होकर पूरे शरीर में फैली होती हैं और एक दूसरे को प्रभावित करती रहती हैं, उसी प्रकार अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलू (रुपए की कीमत, ब्याज दरें, मुद्रा स्फीति, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, वित्त की व्यवस्था, विदेशी ऋण, विदेशी निवेश, वित्तीय घाटा, व्यापार घाटा, सकल घरेलू उत्पाद, विदेशी व्यापार, आदि) भी आपस में जुड़े होते हैं और पूरी अर्थव्यवस्था एवं एक दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं। विषय की इस जटिलता के चलते अक्सर कई व्यक्ति अर्थव्यवस्था सम्बंधी अपनी राय प्रकट करने में गलती कर जाते हैं। जैसे, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले आम बजट पर विपक्षी नेताओं द्वारा अक्सर यह टिप्पणी की जाती है कि इस बजट में तो आंकड़ों की जादूगरी की गई है और वित्त मंत्री तो आंकड़ों के बाजीगर हैं। दूसरे, अर्थशास्त्र की जटिलता के चलते ही देश के कई नागरिक भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति को कमतर आंकते हैं। वैसे, अर्थशास्त्र के बारे में एक और बात कही जाती है कि कुछ अर्थशास्त्री, आधी अधूरी (हाफ कुकड/बेक्ड) जानकारी के आधार पर जितना बताते हैं उससे कहीं अधिक छुपाते भी हैं।

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WHO ने भारत में बने कफ सिरप पर जो आरोप लगाये हैं उसके सबूत भी तो देने चाहिए
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WHO ने भारत में बने कफ सिरप पर जो आरोप लगाये हैं उसके सबूत भी तो देने चाहिए भारत दुनिया भर में फॉर्मेसी का हब माना जाता है। भारत में बनने वाली दवाएं और टीके इत्यादि दुनियाभर में उच्च गुणवत्ता और कम कीमत वाले उत्पादों के रूप में पहचाने जाते हैं। अभी कोरोना काल में दुनिया ने देखा कि कैसे भारत में बने कोरोना रोधी टीकों ने अरबों लोगों की जान बचाई। ऐसी परिस्थिति में यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन आरोप लगा दे कि भारत में बनी किसी दवा के विपरीत असर से 66 बच्चों की मौत हो गयी है तो पूरी दुनिया में हड़कंप मचना स्वाभाविक है। हम आपको बता दें कि भारत में एक निजी फार्मा कंपनी द्वारा निर्मित कफ सिरप पर गंभीर सवाल उठाते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन चार दवाओं के खिलाफ अलर्ट जारी किया है, जिनके कारण गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत होने और गुर्दे को गंभीर नुकसान पहुंचने की आशंका जताई गयी है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक के मुताबिक ये चार दवाएं भारत की कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड द्वारा बनाए गए सर्दी एवं खांसी के सिरप हैं। इन उत्पादों के नाम प्रोमेथाजिन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मेकॉफ बेबी कफ सिरप और मैग्रिप एन कोल्ड सिरप बताये जा रहे हैं। हालांकि डब्ल्यूएचओ की ओर से बच्चों की मौत के सटीक कारण भारत को ना तो उपलब्ध कराये गये हैं और ना ही दवा और इसके लेबल का ब्योरा भारत के केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन के साथ साझा किया गया है ताकि उत्पादन के स्रोत की पुष्टि हो सके।

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कश्मीर के हालात में बड़ा बदलाव होने की बात साबित कर गया अमित शाह का दौरा
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कश्मीर के हालात में बड़ा बदलाव होने की बात साबित कर गया अमित शाह का दौरा गृहमंत्री अमित शाह ने बारामूला में 10 हजार से ज्यादा लोगों की सभा को संबोधित किया, यही अपने आप में बड़ी बात है। उनका यह भाषण एतिहासिक और अत्यंत प्रभावशाली था। हमारे नेता लोग तो डर के मारे कश्मीर जाना ही पसंद नहीं करते लेकिन इस साल कश्मीर में यात्रियों की संख्या 22 लाख रही जबकि पिछले कुछ वर्षों में 5-6 लाख से ज्यादा लोग वहां नहीं जाते थे। बारामूला की जनसभा और यात्रियों की बढ़ी हुई संख्या ही इस बात के प्रमाण हैं कि कश्मीर के हालात अब बेहतर हुए हैं, खासतौर से 2019 में धारा 370 के हटने के बाद से!

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अब तक के राजनीतिक जीवन में गहलोत की कभी ऐसी फजीहत नहीं हुई थी
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अब तक के राजनीतिक जीवन में गहलोत की कभी ऐसी फजीहत नहीं हुई थी राजस्थान कांग्रेस में चल रहे राजनीतिक घमासान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकमान के निशाने पर आ गए हैं। उनके अपने चहेते नेताओं द्वारा करवाई गई फजीहत के चलते गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लिखित में माफी मांगनी पड़ी। इसके साथ ही सोनिया गांधी के आवास के बाहर आकर मीडिया के समक्ष भी उन्हें बार-बार माफी मांगने की बात दोहरानी पड़ी। ऐसी स्थिति का सामना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने पचास साल के राजनीतिक कॅरियर में शायद ही कभी करना पड़ा हो।

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सभी तरह की असमानताएं दूर करना चाहता है संघ, होसबाले ने जो कहा एकदम सही कहा
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सभी तरह की असमानताएं दूर करना चाहता है संघ, होसबाले ने जो कहा एकदम सही कहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश की समस्याओं पर निरन्तर नजर रखता रहा है। गरीबी, महंगाई, अभाव, शिक्षा, चिकित्सा, सेवा और बेरोजगारी आदि क्षेत्रों में उसकी दखल से देश में व्यापक सकारात्मक बदलाव होते हुए देखे गये हैं। संघ की दृष्टि में आजादी के 75 साल बाद भी गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी अगर देश के प्रमुख मुद्दे बन कर छाए रहें, तो यह चिंता की बात होनी ही चाहिए। इस चिन्ता को महसूस करते हुए स्वदेशी जागरण मंच के एक कार्यक्रम में संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संघ का आर्थिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए भारतीय जनता पार्टी के सरकार के दौरान इन समस्याओं के बरकरार रहने पर चिन्ता जताई। दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि 23 करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे हैं। देश के बड़े हिस्से को आज भी साफ पानी और दो समय के भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। निश्चित ही होसबाले का उद्बोधन देश की समस्याओं पर एक तटस्थ एवं निष्पक्ष सोच देने का माध्यम बना है। इससे देश को समस्यामुक्त बनाने की दिशा में एक नया मोड़ मिलेगा। संघ का राष्ट्रीय समस्याओं पर दृष्टिकोण स्पष्ट है, यह एक दिशासूचक बना है, गिरजे पर लगा दिशा-सूचक नहीं, यह तो जिधर की हवा होती है उधर ही घूम जाता है। यह कुतुबनुमा है, जो हर स्थिति में सही दिशा एवं दृष्टि को उजागर करता रहा है और रहेगा।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राजनीतिक चश्मे से देखना सबसे बड़ी भूल है
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राजनीतिक चश्मे से देखना सबसे बड़ी भूल है डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन शुभ संकल्प के साथ एक छोटा बीज बोया था, जो आज विशाल वटवृक्ष बन चुका है। दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे सामने है। नन्हें कदम से शुरू हुई संघ की यात्रा समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पहुँची है, न केवल पहुँची है, बल्कि उसने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ संघ की पहुँच न केवल कठिन थी, बल्कि असंभव मानी जाती थी। किंतु, आज उन क्षेत्रों में भी संघ नेतृत्व की भूमिका में है। बीज से वटवृक्ष बनने की संघ की यात्रा आसान कदापि नहीं रही है। 1925 में जिस जमीन पर संघ का बीज बोया गया था, वह उपजाऊ कतई नहीं थी। जिस वातावरण में बीज का अंकुरण होना था, वह भी अनुकूल नहीं था। किंतु, डॉक्टर हेडगेवार को उम्मीद थी कि भले ही जमीन ऊपर से बंजर दिख रही है, परंतु उसके भीतर जीवन है। जब माली अच्छा हो और बीज में जीवटता हो, तो प्रतिकूल वातावरण भी उसके विकास में बाधा नहीं बन पाता है। भारतीय संस्कृति से पोषण पाने के कारण ही अनेक संकटों के बाद भी संघ पूरी जीवटता से आगे बढ़ता रहा। अनेक झंझावातों और तूफानों के बीच अपने कद को ऊंचा करता रहा। अनेक व्यक्तियों, विचारों और संस्थाओं ने संघ को जड़ से उखाड़ फेंकने के प्रयास किए, किंतु उनके सब षड्यंत्र विफल हुए। क्योंकि, संघ की जड़ों के विस्तार को समझने में वह हमेशा भूल करते रहे। आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है। आज भी अनेक लोग संघ को राजनीतिक चश्मे से ही देखने की कोशिश करते हैं। पिछले 97 बरस में इन लोगों ने अपना चश्मा नहीं बदला है। इसी कारण ये लोग संघ के विराट स्वरूप का दर्शन करने में असमर्थ रहते हैं। जबकि संघ इस लंबी यात्रा में समय के साथ सामंजस्य बैठाता रहा और अपनी यात्रा को दसों दिशाओं में लेकर गया।               संघ के स्वयंसेवक एक गीत गाते हैं- ‘दसों दिशाओं में जाएं, दल बादल से छा जाएं, उमड़-घुमड़ कर हर धरती पर नंदनवन-सा लहराएं’। इसके साथ ही संघ में कहा जाता है- ‘संघ कुछ नहीं करेगा और संघ का स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ेगा’। इस गीत और कथन, दोनों का अभिप्राय स्पष्ट है कि संघ के स्वयंसेवक प्रत्येक क्षेत्र में जाएंगे और उसे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के साथ समृद्ध करने का प्रयत्न करेंगे। संघ का मूल कार्य शाखा के माध्यम से संस्कारित और ध्येयनिष्ठ नागरिक तैयार करना है। अपनी स्थापना के पहले दिन से संघ यही कार्य कर रहा है। यह ध्येयनिष्ठ स्वयंसेवक ही प्रत्येक क्षेत्र में संघ के विचार को लेकर पहुँचे हैं और वहाँ उन्होंने संघ की प्रेरणा से समविचारी संगठन खड़े किए हैं। आज की स्थिति में समाज जीवन का कोई भी क्षेत्र संघ के स्वयंसेवकों ने खाली नहीं छोड़ा है। संघ से प्रेरणा प्राप्त समविचारी संगठन प्रत्येक क्षेत्र में राष्ट्रीय हितों का संरक्षण करते हुए सकारात्मक परिवर्तन के ध्वज वाहक बने हुए हैं। शिक्षा, कला, फिल्म, साहित्य, संस्कृति, खेल, उद्योग, विज्ञान, आर्थिक क्षेत्र सहित मजदूर, इंजीनियर, डॉक्टर, प्राध्यापक, किसान, वनवासी इत्यादि वर्ग के बीच में भी संघ के समविचारी संगठन प्रामाणिकता से कार्य कर रहे हैं।

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