धर्म की रक्षा हेतु मुगलों के आगे कभी नहीं झुके गुरु तेग बहादुर
Personality धर्म की रक्षा हेतु मुगलों के आगे कभी नहीं झुके गुरु तेग बहादुर

धर्म की रक्षा हेतु मुगलों के आगे कभी नहीं झुके गुरु तेग बहादुर 'हिन्द की चादर तेग बहादर' व 'हिन्द की ढाल' कह कर सम्बोधित किए जाने वाले विलक्षण शहीद जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु अपना शीश कुर्बान किया और इनके पुत्र श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए अपने माता श्री गुजरी जी, चार पुत्रों व अपने अनेकों शिष्यों को धर्म की रक्षा हितार्थ कुर्बान किया। श्री गुरु तेग बहादुर जी एक ऐसी हस्ती हैं जिनकी दरकार हर एक युग को रहती है। उन्होंने समस्त मानव जाति को प्रेरणा देते हुए अपने धर्म पर अडिग रहने का मार्ग प्रशस्त किया। आज से लगभग 347 वर्ष पूर्व घटित हुई सिख इतिहास की जिस महान घटना पर हम चिंतन−मनन कर रहे हैं। यह घटना श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी है, जो 1675 ई को घटित हुई थी। शहीद अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है गवाही देने वाला, खुदा के नाम पर अद्वितीय कुर्बानी की मिसाल कायम करने वाला। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने भी अपनी शहीदी से यही मिसाल कायम की। यह इतिहास की वह घटना थी जिस पर हाहकार भी हुआ और जय−जयकार भी हुई। अगर इसके कारणों पर दृष्टिपात किया जाए तो इसके मूल में जबरन किए जा रहे धर्मिक उथल−पुथल की तस्वीर सामने आती है। क्योंकि औरंगजेब हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाना चाहता था। एक और ज़बर जुल्म था और दूसरी तरफ अन्याय का शिकार हुए लोग व उनका रखवाला था। प्रभु खुद श्री गुरु तेग बहादुर जी के रुप में भारतीय लोगों के धर्म, संस्कृति की रक्षा कर रहा था। इसलिए श्री गुरु महाराज जी को 'तिलक जंझू का राखा' कहकर भी नवाज़ा जाता है।

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आज भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जगदीश चंद्र बोस
Personality आज भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जगदीश चंद्र बोस

आज भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जगदीश चंद्र बोस भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने रेडियो और माइक्रोवेव ऑप्टिक्स के अविष्कार के साथ पेड़-पौधों के जीवन पर भी बहुत सी खोज की। वह भौतिक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ जीव वैज्ञानिक, वनस्पति वैज्ञानिक, पुरातत्वविद और लेखक भी थे। रेडियो विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कार्य को देखते हुए ‘इंस्टिट्यूट ऑफ इलेक्टि्रकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर’ ने उन्हें रेडियो वैज्ञानिक जनकों में से एक माना। जेसी बोस की खोज का नतीजा है कि आज हम रेडियो, टेलिविजन, भुतलीय संचार रिमोट सेन्सिग, रडार, माइक्रोवेव अवन और इंटरनेट का उपभोग कर रहे हैं।

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महज 18 साल की उम्र में टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से लिया था लोहा
Personality महज 18 साल की उम्र में टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से लिया था लोहा

महज 18 साल की उम्र में टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से लिया था लोहा टीपू का पूरा नाम सुल्तान फ़तेह अली खान था। टीपू नाम उन्हें उनके पिता हैदर अली के द्वारा दिया गया। हैदर अली का सबसे बड़ा बेटा टीपू सुल्तान अपनी बहादुरी के लिए जाना जाता है। टीपू सुल्तान को फ़्रांसिसी अधिकारियों के द्वारा सैनिक प्रशिक्षण दिया गया। टीपू ने मात्र 18 साल की उम्र में अंग्रेजों के साथ पहला युद्ध किया और जीत हासिल की। 

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जन्मदिन स्पेशलः खेल जगत से लेकर बॉलीवुड तक दारा सिंह का सफर
Personality जन्मदिन स्पेशलः खेल जगत से लेकर बॉलीवुड तक दारा सिंह का सफर

जन्मदिन स्पेशलः खेल जगत से लेकर बॉलीवुड तक दारा सिंह का सफर दारा सिंह का नाम सुनकर हर भारतीय का मन गर्व से भर जाता है। शायद ही कोई ऐसा होगा जो दारा सिंह के नाम से परिचित नहीं होगा। दारा सिंह एक अलग ही तरह के शख़्सियत के मालिक थे जिसने किसी भी क्षेत्र में हार का सामना नहीं किया। खेल जगत में पहचान बनाने के साथ ही बॉलीवुड में अपने दमदार अभिनय से सबके दिलों में अपनी पहचान बनायीं।

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विवेकानंद रॉक मेमोरियल के शिल्पी हैं एकनाथ रानाडे
Personality विवेकानंद रॉक मेमोरियल के शिल्पी हैं एकनाथ रानाडे

विवेकानंद रॉक मेमोरियल के शिल्पी हैं एकनाथ रानाडे राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।

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समाज के लिए आदर्श नायिका हैं वीरांगना लक्ष्मीबाई
Personality समाज के लिए आदर्श नायिका हैं वीरांगना लक्ष्मीबाई

समाज के लिए आदर्श नायिका हैं वीरांगना लक्ष्मीबाई भारत भूमि पर अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए अनेक वीर अग्रणी भूमिका में रहे हैं। लेकिन देश को स्वतंत्र कराने में मातृशक्ति का योगदान किसी प्रकार से कम नहीं कहा जा सकता है। जिन नारियों ने भारत को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई आज पूरा देश उन्हें वीरांगना के नाम से स्वीकार करता है। वीरांगना नाम सुनते ही हमारे मनोमस्तिष्क में स्वाभाविक रूप से रानी लक्ष्मीबाई की छवि उभरती है। भारतीय वसुंधरा को अपने वीरोचित भाव से गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सच्चे अर्थों में वीरांगना ही थीं। वे भारतीय महिलाओं के समक्ष अपने जीवन काल में ही ऐसा आदर्श स्थापित करके विदा हुईं, जिससे हर कोई प्रेरणा ले सकता है। वर्तमान युग में जहां हर कोई अपने आप तक केन्द्रित होता जा रहा है, उनके लिए वीरांगना लक्ष्मीबाई का जीवन एक ऐसा उदाहरण है, जो राष्ट्रीय भावना को संचारित करने में एक आदर्श है। भारतीय नारी शक्ति को इस बात का अवश्य ही विचार करना चाहिए कि हमारे नायक कौन होने चाहिए?

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इंदिरा गांधी का समर्पण भाव देखकर विरोधी भी उनकी सराहना किए बिना नहीं रह पाते थे
Personality इंदिरा गांधी का समर्पण भाव देखकर विरोधी भी उनकी सराहना किए बिना नहीं रह पाते थे

इंदिरा गांधी का समर्पण भाव देखकर विरोधी भी उनकी सराहना किए बिना नहीं रह पाते थे 19 नवम्बर 1917 को पं.

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देश की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी लाला लाजपत राय ने
Personality देश की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी लाला लाजपत राय ने

देश की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी लाला लाजपत राय ने किसी भी व्यक्ति के द्वारा स्वयं के लिए किए गए कार्यों का समापन भी व्यक्ति के संसार से विदा लेने के साथ ही हो जाता है, परंतु उसके द्वारा समाज के लिए किए गए त्याग, समर्पण, बलिदान और सामाजिक योगदान उसे अमर बनाते हैं। भारत की आजादी की जंग में अंग्रेज सरकार से जूझने वाले सेनानियों में लाल, बाल, पाल का नाम अग्रगण्य है। यह बताना प्रासंगिक होगा कि लाला लाजपतराय का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ जो अब पाकिस्तान में है, बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरि में एवं बिपिन चंद्र पाल का जन्म अविभाजित भारत के हबीबगंज सदर उप जिला अंतर्गत हुआ था जो अब बांग्लादेश में है। इस प्रकार लाल, बाल, पाल तीनों नाम एक साथ होने पर किन्हीं तीन व्यक्तियों के एक साथ होने मात्र की जानकारी ही नहीं देते अपितु तत्कालीन अखंड भारत का बोध कराते हैं।

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मराठी लोगों के लिए देवतुल्य हैं बालासाहेब ठाकरे
Personality मराठी लोगों के लिए देवतुल्य हैं बालासाहेब ठाकरे

मराठी लोगों के लिए देवतुल्य हैं बालासाहेब ठाकरे बाल ठाकरे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्होने शिवसेना के नाम से एक प्रखर हिन्दू राष्ट्रवादी दल का गठन किया था, जिसकी जिम्मेदारी उद्धव ठाकरे निभा रहे हैं। ठाकरे साहब को लोग प्यार से बालासाहेब ठाकरे भी कहते हैं। बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 में पुणे में रहने वाले एक मराठी परिवार में हुआ था। परिवार सामाजिक कार्यों में रूचि रखता था और जातिवादी का धुर विरोधी था। उसका असर बाला साहेब पर देखने को मिला। बाल ठाकरे ने मराठी एकता को कायम करने और मुंबई को महाराष्ट्र की राजधानी बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया।

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राष्ट्रीय समाज के लिए प्रेरणा हैं बिरसा मुंडा
Personality राष्ट्रीय समाज के लिए प्रेरणा हैं बिरसा मुंडा

राष्ट्रीय समाज के लिए प्रेरणा हैं बिरसा मुंडा भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने वाले कई महानायकों का पूरा जीवन एक ऐसी प्रेरणा देता है, जो देश और समाज को राष्ट्रीयता का बोध कराता है। कहा जाता है कि जो अपने स्वत्व की चिंता न करते हुए समाज के हित के लिए कार्य करता है, वह नायक निश्चित ही पूजनीय हो जाते हैं। महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा ऐसे ही नायक रहे हैं, जिन्होंने देश और समाज की खातिर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।  सामाजिक, विशेषकर जनजातीय समाज के हितों के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा ने भारत पर राज करने वाली ब्रिटिश सत्ता के विरोध में ऐसा जन आंदोलन खड़ा किया, जिसने जनजातीय समाज को एकत्रित कर जागरुक कर दिया और अंग्रेजों को भारत की भूमि छोड़कर जाना पड़ा। हालांकि इतिहास में ऐसे अनेक देश भक्त साहसी वीर हुए हैं, जिनका वर्णन आज के इतिहास में दिखाई नहीं देता। वीर देश भक्तों के साथ ऐसा क्यों किया गया, इसका कारण यही था कि स्वतंत्रता के बाद भारत के शासकों ने प्रेरणा देने वाले नायकों के साथ पक्षपात करके उनका नाम सामने नहीं आने दिया। इसके पीछे यह भी बड़ा कारण हो सकता है कि अगर ऐसे नायकों को सामने लाते तो स्वाभाविक रूप से समाज उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता और इसी उत्सुकता के चलते देश के करोड़ों मनों में राष्ट्रीयता का प्रवाह पैदा होता। लेकिन राजनीतिक द्वेष के चलते लम्बे समय तक राष्ट्रीयता को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता रहा। जिसका परिणाम यह रहा कि भारत का समाज पश्चिम की धारणाओं से प्रभावित हुआ। इसी कारण भारतीय भाव का विलोपन भी होता गया। लेकिन अब इतिहास के पन्ने कुरेदे जा रहे हैं। भारत का असली इतिहास खंगालने के प्रयास भी होने लगे हैं। देश के प्रेरणा देने वाले नायक भी सामने आने लगे हैं।इसे भी पढ़ें: आचार्य विनोबा भावे की आध्यात्मिक चेतना समाज और हर व्यक्ति से जुड़ी थीवर्तमान समय में इस बात पर गंभीर चिंतन और मनन करने की आवश्यकता है कि हमारे आदर्श कैसे होना चाहिए। आज की स्थिति देखने से पता चलता है कि हमने अपने जीवन के उत्थान के लिए आदर्श बनाने ही बंद कर दिए हैं। इसलिए व्यक्ति स्वयं को पूर्ण सही मानता है। जबकि जीवन में सीखने की निरंतरता बनी रहनी चाहिए। इसके लिए आदर्श भी बहुत जरूरी है। बिरसा मुंडा का सम्पूर्ण जीवन ऐसा ही आदर्श है, जिससे राष्ट्रीय भाव का प्रस्फुटन होता है। जहां से समाज का नायक बनने का आदर्श दिशाबोध है। बिरसा मुंडा भारतीय समाज के ऐसे आदर्श रहे हैं, जिसे हम सर ऊंचा करके गौरव के साथ याद करते हैं। देश के लिए उनके द्वारा किए गए अप्रतिम योगदान के कारण ही उनका चित्र भारतीय संसद के संग्रहालय में लगी है। ऐसा सम्मान विरले नायकों को ही मिलता है। जनजातीय समाज की बात करें तो इस समाज से यह सम्मान अभी तक केवल बिरसा मुंडा को ही मिल सका है।

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आचार्य विनोबा भावे की आध्यात्मिक चेतना समाज और हर व्यक्ति से जुड़ी थी
Personality आचार्य विनोबा भावे की आध्यात्मिक चेतना समाज और हर व्यक्ति से जुड़ी थी

आचार्य विनोबा भावे की आध्यात्मिक चेतना समाज और हर व्यक्ति से जुड़ी थी विनोबा भावे को भारत का राष्ट्रीय आध्यापक और महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी समझा जाता है। आज भी कुछ लोग यही कहते हैं। मगर यह उनके चरित्र का एकांगी और एकतरफा विश्लेषण है। वे गांधीजी के ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारी’ से बहुत आगे, स्वतंत्र सोच एवं मानवतावादी कार्यक्रमों के स्वामी थे। मुख्य बात यह है कि गांधीजी के प्रखर प्रभामंडल के आगे उनके व्यक्तित्व का स्वतंत्र मूल्यांकन हो ही नहीं पाया। उनको हम ज्ञान का अक्षय कोष कह सकते हैं। गांधी के सान्निध्य में आने से पहले ही विनोबा आध्यात्मिक ऊंचाई प्राप्त कर चुके थे। संत ज्ञानेश्वर एवं संत तुकाराम उनके आदर्श थे। आश्रम में आने के बाद भी वे अध्ययन-चिंतन के लिए नियमित समय निकालते थे। भूदान यज्ञ में विनोबाजी प्रतिदिन दो बार प्रवचन करते थे और अपने प्रत्येक प्रवचन में नयी-नयी बातें कहते थे। एक दिन उनसे पूछा गया, ‘‘बाबा, आप इतने दिनों से भाषण देते आ रहे हैं, लेकिन आपके हर भाषण में कुछ नवीनता रहती है। यह कैसे संभव होता है?

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जवाहर लाल नेहरू आजादी की लड़ाई के दौरान बड़े नेता के रूप में उभरे थे
Personality जवाहर लाल नेहरू आजादी की लड़ाई के दौरान बड़े नेता के रूप में उभरे थे

जवाहर लाल नेहरू आजादी की लड़ाई के दौरान बड़े नेता के रूप में उभरे थे चाचा नेहरू के नाम से मशहूर पंडित जवाहर लाल नेहरू न केवल भारत के पहले प्रधानमंत्री थे बल्कि उन्होंने देश के विकास की नींव रखी। आज 14 नवंबर को उस महान शख्यिसत का जन्मदिन है तो आइए हम आपको उस युगपुरुष के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं।

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आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे मौलाना अबुल कलाम
Personality आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे मौलाना अबुल कलाम

आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे मौलाना अबुल कलाम मौलाना अबुल कलाम आजाद प्रमुख राजनीतिक नेता तथा मुस्लिम विद्वान थे। उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता का समर्थन किया। साथ ही वह देश के पहले शिक्षा मंत्री थे। आज उस महान शख्सियत का जन्मदिन है तो आइए हम आपको मौलाना अबुल कलाम के बारे में कुछ खास जानकारी देते हैं।

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महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन ने
Personality महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन ने

महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन ने केआर नारायणन 1992 में भारत के उपराष्ट्रपति बने और 1997 में वे देश के 10 वें राष्ट्रपति चुने गए। नारायणन का जन्म 4 फरवरी 1921 को एक गरीब दलित हिंदू परिवार में हुआ था, जो उस समय त्रावणकोर और कोचीन की भारतीय रियासत थी। "

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निर्भीक और खुले विचारों वाले स्वतंत्रता सेनानी थे बिपिन चंद्र पाल
Personality निर्भीक और खुले विचारों वाले स्वतंत्रता सेनानी थे बिपिन चंद्र पाल

निर्भीक और खुले विचारों वाले स्वतंत्रता सेनानी थे बिपिन चंद्र पाल भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी को तो हम सभी जानते ही हैं। इस तिकड़ी ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे। ये तीन पूरे नाम थे लाला लाजपत राय ‘लाल’, बाल गंगाधर तिलक ‘बाल’ और बिपिन चंद्र पाल ‘पाल’। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में इन क्रांतिकारियों के नाम सुनहरे अक्षरों में लिखे गए हैं। इस तिकड़ी में से एक बिपिन चंद्र पाल का आज 7 नवंबर को जन्मदिन है। आइए जानते हैं देश के इस महान क्रांतिकारी, समाजसुधारक, शिक्षाविद और सिद्धांतवादी के जीवन से जुड़ी कुछ बातें।

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संजीव कुमार के जीवन और अभिनय की दुनिया के बारे में जानिए, कुछ ऐसा रहा फिल्मी सफर
Personality संजीव कुमार के जीवन और अभिनय की दुनिया के बारे में जानिए, कुछ ऐसा रहा फिल्मी सफर

संजीव कुमार के जीवन और अभिनय की दुनिया के बारे में जानिए, कुछ ऐसा रहा फिल्मी सफर जब 60-70 के दौर के अभिनेता फेम और लाइफ़स्टाइल का पीछा कर रहे थे ऐसे में संजीव कुमार केवल अपने उन रोल को निभाने के लिए उत्सुक दिखाई देते थे जो उन्हें स्क्रीन पर साझा करने के लिए मिलते थे। शायद यही एक वजह हो सकती है जब वह अपने बढते वजन पर भी ध्यान नहीं दिया। उनके किरदार में भरपूर कौशल देखने को मिलता था जो आज भी कहीं ना कहीं सदाबहार है। 

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रिकॉर्ड ब्रेकिंग सीरियल महाभारत को घर घर तक पहुंचाने वाले बीआर चोपड़ा के बारे में जानें रोचक तथ्य
Personality रिकॉर्ड ब्रेकिंग सीरियल महाभारत को घर घर तक पहुंचाने वाले बीआर चोपड़ा के बारे में जानें रोचक तथ्य

रिकॉर्ड ब्रेकिंग सीरियल महाभारत को घर घर तक पहुंचाने वाले बीआर चोपड़ा के बारे में जानें रोचक तथ्य 'महाभारत' महाकाव्य के रचयिता 'महर्षि वेदव्यास' हैं, लेकिन टीवी के जरिए घर घर तक 'महाभारत' को पहुंचाने के लिए बीआर चोपड़ा को श्रेय जाता है। बीआर चोपड़ा को ऐसे फिल्मकार के तौर पर याद किया जाएगा उन्होंने पारिवारिक, सामाजिक और साफ सुथरी फिल्मों को बनाया और दर्शकों का आज तक भी मनोरंजन करते है। उनके काम के जरिए आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में उनकी खास जगह और इज्जत है। ऐसा कोई व्यक्ति विरले ही मिलेगा जो बीआर चोपड़ा को ना जानता हो।

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बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिंदी सिनेमा के मुगल ए आजम थे पृथ्वीराज कपूर
Personality बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिंदी सिनेमा के मुगल ए आजम थे पृथ्वीराज कपूर

बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिंदी सिनेमा के मुगल ए आजम थे पृथ्वीराज कपूर हिंदी सिनेमा जगत एवं भारतीय रंगमंच के प्रमुख स्तंभों में गिने जाने वाले पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवम्बर 1906 को पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रदेश (अब पाकिस्तान) की राजधानी पेशावर में हुआ था। पृथ्वीराज कपूर के पिता बशेश्वरनाथ कपूर इंडियन इंपीरियल पुलिस में पुलिस अधिकारी थे। पृथ्वीराज कपूर की शुरू की शिक्षा कस्बे में ही हुई थी। 1927 में पृथ्वीराज ने पेशावर के एडवर्ड्स कॉलेज से बीए किया और कानून की पढाई के लिए लाहौर गये। नाटकों में अभिनय करने की रूचि उनमें प्रारम्भ से ही थी, पृथ्वीराज कपूर ने बतौर अभिनेता मूक फ़िल्मो से अपना कॅरियर शुरू किया। कपूर खानदान के पहले सुपरस्टार पृथ्वीराज कपूर थे, जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री में 'पापा जी' के नाम से जाना जाता था।

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राष्ट्रीय एकता के हिमायती थे सरदार वल्लभ भाई पटेल
Personality राष्ट्रीय एकता के हिमायती थे सरदार वल्लभ भाई पटेल

राष्ट्रीय एकता के हिमायती थे सरदार वल्लभ भाई पटेल भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। उनके कठोर व्यक्तित्व में संगठन कुशलता, राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह, असीम शक्ति से उन्होंने एकीकृत देश की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान था। 

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अपने कड़े फैसलों के लिए आज भी जानी जाती हैं आयरन लेडी इंदिरा गांधी
Personality अपने कड़े फैसलों के लिए आज भी जानी जाती हैं आयरन लेडी इंदिरा गांधी

अपने कड़े फैसलों के लिए आज भी जानी जाती हैं आयरन लेडी इंदिरा गांधी आयरन लेडी के रूप में विश्व विख्यात श्रीमती इंदिरा गांधी का जन्म देश के एक आर्थिक एवं बैद्धिक रूप से समृद्ध परिवार में 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद के आनंद भवन में हुआ था। उनके पिता पं.

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एक भारत श्रेष्ठ भारत के प्रणेता हैं लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल
Personality एक भारत श्रेष्ठ भारत के प्रणेता हैं लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल

एक भारत श्रेष्ठ भारत के प्रणेता हैं लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय एकता के प्रतीक, प्रखर देशभक्त जो ब्रिटिश राज के अंत के बाद 562 रियासतों को जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध थे, आजादी के बाद एक महान प्रशासक जिन्होनें स्वतंत्र देश की अस्थिर स्थिति को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ऐसे महान लौहपुरूष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को ग्राम करमसद में हुआ था। इनके पिता झबेरभाई पटेल थे जिन्होंने 1857 में रानी झांसी के समर्थन में युद्ध किया था। इनकी मां का नाम लाडोबाई था। इनके माता पिता बहुत ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। 

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आधुनिक भारत के निर्माता स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती ने समाज सुधार के लिए उठाए थे कई कदम
Personality आधुनिक भारत के निर्माता स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती ने समाज सुधार के लिए उठाए थे कई कदम

आधुनिक भारत के निर्माता स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती ने समाज सुधार के लिए उठाए थे कई कदम भारत के महान चिंतक, समाज सुधारक और देशभक्त के रूप में पहचाने जाने वाले महर्षि दयानंद सरस्वती का निधन 30 अक्टूबर को 1883 में अजमेर में हुआ था। 30 अक्तूबर 2022 को उनकी 139वीं पुण्यतिथि है। महर्षि दयानंद सरस्वती आर्य सुधारक संगठन 'आर्य समाज' की स्थापना की थी। बता दें कि स्वामी दयानंद सरस्वती प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ‘स्वराज्य’ शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने पर जोर दिया था। हिंदी को राष्ट्र भाषा के तौर पर उन्होंने ही स्वीकार किया था।  ऐसे हुई शिक्षाउनका जन्म ब्राह्मण परिवार में 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। उनके माता-पिता यशोधाबाई और लालजी तिवारी रूढ़िवादी ब्राह्मण थे। स्वामी दयानंद सरस्वती का शुरुआती जीवन काफी आरामपूर्ण बीता। पंडित बनने के लिए उन्होंने संस्कृत, वेद शास्त्रों और धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन प्रारंभ किया। इसके बाद किशोरावस्था में ही उनके माता-पिता ने फैसला किया कि उनका विवाह कर दिया जाए मगर दयानंद सरस्वती ने विवाह करने से इंकार कर दिया था। वो सत्य की खोज में निकल पड़े थे।इसे भी पढ़ें: छात्र जीवन में सब्जी बेचकर किताबों के लिए पैसे जुटाते थे नानाजी देशमुखमूर्ति पूजा का किया विरोधस्वामी दयानंद सरस्वती ने शास्त्रों की शिक्षा लेने के बाद महाशिवरात्रि के मौके पर चूहों का झुण्ड को भगवान की मूर्ति पर रखे प्रशाद को खाते देखा। इस घटना ने उनके मन में कई सवाल उठाए, जिसके बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। इसके बाद से उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध करना शुरू कर दिया।

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