
धर्म की रक्षा हेतु मुगलों के आगे कभी नहीं झुके गुरु तेग बहादुर 'हिन्द की चादर तेग बहादर' व 'हिन्द की ढाल' कह कर सम्बोधित किए जाने वाले विलक्षण शहीद जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु अपना शीश कुर्बान किया और इनके पुत्र श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए अपने माता श्री गुजरी जी, चार पुत्रों व अपने अनेकों शिष्यों को धर्म की रक्षा हितार्थ कुर्बान किया। श्री गुरु तेग बहादुर जी एक ऐसी हस्ती हैं जिनकी दरकार हर एक युग को रहती है। उन्होंने समस्त मानव जाति को प्रेरणा देते हुए अपने धर्म पर अडिग रहने का मार्ग प्रशस्त किया। आज से लगभग 347 वर्ष पूर्व घटित हुई सिख इतिहास की जिस महान घटना पर हम चिंतन−मनन कर रहे हैं। यह घटना श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी है, जो 1675 ई को घटित हुई थी। शहीद अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है गवाही देने वाला, खुदा के नाम पर अद्वितीय कुर्बानी की मिसाल कायम करने वाला। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने भी अपनी शहीदी से यही मिसाल कायम की। यह इतिहास की वह घटना थी जिस पर हाहकार भी हुआ और जय−जयकार भी हुई। अगर इसके कारणों पर दृष्टिपात किया जाए तो इसके मूल में जबरन किए जा रहे धर्मिक उथल−पुथल की तस्वीर सामने आती है। क्योंकि औरंगजेब हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाना चाहता था। एक और ज़बर जुल्म था और दूसरी तरफ अन्याय का शिकार हुए लोग व उनका रखवाला था। प्रभु खुद श्री गुरु तेग बहादुर जी के रुप में भारतीय लोगों के धर्म, संस्कृति की रक्षा कर रहा था। इसलिए श्री गुरु महाराज जी को 'तिलक जंझू का राखा' कहकर भी नवाज़ा जाता है।
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