भारत को बनाया विश्व का ‘परमाणु गुरु’, अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA पर लगा था साजिश का आरोप
Personality भारत को बनाया विश्व का ‘परमाणु गुरु’, अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA पर लगा था साजिश का आरोप

भारत को बनाया विश्व का ‘परमाणु गुरु’, अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA पर लगा था साजिश का आरोप होमी जहांगीर भाभा यानी विज्ञान की दुनिया का ऐसा चमकदार सितारा जिसका नाम सुनते ही हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है बचपन से ही विज्ञान की दुनिया में गहरा लगाव रखने वाले भाभा न केवल एक महान वैज्ञानिक थे बल्कि वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक इंजीनियर, संगीतकार और बेहतरीन कलाकार भी थे। भाभा देश और दुनिया के लिए जाना-माना नाम है। दरअसलस भाभा ही वो शख्स थे जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की और भारत को परमाणु ऊर्जा संपन्न और वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रसर बनाकर दुनिया के अग्रणी देशों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया। 

read more
वाजपेयी के लक्ष्मण और आडवाणी की रथयात्रा के नेपथ्य़ के अहम किरदार, जिनके लिए कहा गया- ‘पेप्‍सी और प्रमोद कभी अपना फॉर्मूला नहीं बताते
Personality वाजपेयी के लक्ष्मण और आडवाणी की रथयात्रा के नेपथ्य़ के अहम किरदार, जिनके लिए कहा गया- ‘पेप्‍सी और प्रमोद कभी अपना फॉर्मूला नहीं बताते

वाजपेयी के लक्ष्मण और आडवाणी की रथयात्रा के नेपथ्य़ के अहम किरदार, जिनके लिए कहा गया- ‘पेप्‍सी और प्रमोद कभी अपना फॉर्मूला नहीं बताते पूर्व केंद्रीय मंत्री, सांसद और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय प्रमोद महाजन विवाद और आरोप उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। प्रमोद महाजन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सबसे सफल और शक्तिशाली नेताओं में से एक थे। कोई जमीनी जुड़ाव या राजनीतिक आधार न होने के बावजूद, महाजन न केवल राज्य की राजनीति में बल्कि पूरे देश में एक व्यक्तिगत व्यक्तित्व और अपनी छवि बनाने में कामयाब रहे। 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा का समर्थन करने से लेकर शिवसेना-भाजपा गठबंधन के मुख्य सूत्रधार बनने तक, महाजन भारतीय राजनीति के एक ऐसे किरदार, जो हमेशा राजनीति के केंद्र में रहे। महाजन एक अच्छे वक्ता तो थे ही इसके अलावा अपने श्रोताओं को बहुत अच्छी तरह से पढ़ते और समझते भी थे। पॉलिटिकल मैनेजर शब्द गढ़ा गया था तो महाजन के लिए ही और मैनेजमेंट भी सिर्फ राजनीति का नहीं। अर्थनीति के बिना राजनीति नहीं होती, ये अच्छी तरह समझने वाले प्रमोद महाजन के व्यापार जगत में अच्छे खासे संपर्क थे। वाजपेयी के लक्ष्मण और आडवाणी की रथयात्रा के नेपथ्य़ के अहम किरदार। 

read more
तमाम परेशानियां झेलते हुए राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे थे केआर नारायण
Personality तमाम परेशानियां झेलते हुए राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे थे केआर नारायण

तमाम परेशानियां झेलते हुए राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे थे केआर नारायण कोचेरिल रमन नारायणन (केआर नारायणन) का नाम देश के इतिहास में देश के पहले दलित राष्ट्रपति के तौर पर दर्ज है। केआर नारायणन का जन्म केरल के उझावूर गांव में 27 अक्तूबर को 1920 को हुआ था। केआर नारायणन बेहद गरीब परिवार से आते थे, जहां रोजमर्रा का खर्च चलना भी मुश्किल था। उनके परिवार में कुल सात भाई बहनों में वो चौथे नंबर पर थे। उनके परिवार का मुख्य काम नाव बनाना, मछली पालन और समुद्री व्यापार करना था।

read more
जसपाल भट्टी निर्विवाद रूप से भारत के सबसे मजेदार कॉमेडियन थे
Personality जसपाल भट्टी निर्विवाद रूप से भारत के सबसे मजेदार कॉमेडियन थे

जसपाल भट्टी निर्विवाद रूप से भारत के सबसे मजेदार कॉमेडियन थे भारत के बेहतरीन हास्य कलाकारों में से एक स्वर्गीय जसपाल भट्टी को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है और उन्हें प्यार से 'कॉमेडी का राजा' कहा जाता था। जसपाल भट्टी को उनके राजनीतिक व्यंग्य और आम आदमी पर चुटकुले करने के लिए जाना जाता था। उन्होंने उल्टा पुल्टा और फुल सहित शो भी किए, जिससे उन्होंने काफी लोकप्रियता बटौरी। प्रत्येक सामान्य-मध्यम वर्ग के व्यक्ति के सामने आने वाली समस्याओं को प्रदर्शित करने के लिए चतुराई से व्यंग्य का उपयोग करने की कला जसपाल भट्टी में ही थी। उन्होंने अपने पीछे एक महान विरासत छोड़ी है जिसे लोग हमेशा याद रखेंगे। जसपाल भट्टी निर्विवाद रूप से भारत के सबसे मजेदार व्यक्ति थे।

read more
दिल को झकझोर कर रख देने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी, जिंदगी में कई बार मुहब्बत की
Personality दिल को झकझोर कर रख देने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी, जिंदगी में कई बार मुहब्बत की

दिल को झकझोर कर रख देने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी, जिंदगी में कई बार मुहब्बत की साहिर लुधियानवी, जिन्हें उनकी शायरी के लिए, विशेषकर युवाओं के दिलों को उभारने और फिल्मों के लिए साहित्यिक गीत लिखने के लिए, "

read more
चित्रकार आरके लक्ष्मण जिन्होंने कार्टून के जरिए व्यंग्य कर जनता की समस्याओं को किया उजागर
Personality चित्रकार आरके लक्ष्मण जिन्होंने कार्टून के जरिए व्यंग्य कर जनता की समस्याओं को किया उजागर

चित्रकार आरके लक्ष्मण जिन्होंने कार्टून के जरिए व्यंग्य कर जनता की समस्याओं को किया उजागर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण एक ऐसा नाम है जिसने लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए अहम रोल अदा किया। देश में आम लोगों की समस्याओं को अलग-अलग तरीकों से उठाने में उन्होंने महारत हासिल की थी। उन्होंने शब्दों की जगह कार्टून को अपना हथियार बनाया। कार्टून बनाकर उन्होंने आम जनता की परेशानियों का चित्रण करना शुरू किया। उनकी कार्टून श्रृंखलाओं के जरिए आम लोगों के दर्द को आसानी से समझा और महसूस किया जा सकता था। व्यंगचित्र के जरिये आम लोगों की आशाओं, जरूरतों, मुश्किलों और कमियों को आरके लक्ष्मण ने एक कार्टून कैरेक्टर "

read more
बहादुर शाह जफर के बुलंद हौसलों से खौफ में थी अंग्रेजों की सेना
Personality बहादुर शाह जफर के बुलंद हौसलों से खौफ में थी अंग्रेजों की सेना

बहादुर शाह जफर के बुलंद हौसलों से खौफ में थी अंग्रेजों की सेना बहादुर शाह जफर मुगल शासन के अंतिम शासक थे, जिन्हें इतिहास में कम जगह मिली है। माना जाता है कि बहादुर शाह जफर सूफी संत, उर्दू भाषा के बेहतरीन कवि और शासक थे। वो एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो ईस्ट इंडिया कंपनी के पेंशनभोगी थे। भारतीय इतिहास के अहम व्यक्तियों में उनका नाम शुमार किया जाता है। वो ऐसे शासक थे जिनकी एकता को देखकर अंग्रेजों का हौसला भी पस्त पड़ गया था और अंग्रेज खौफ में आ गए थे।

read more
18 फ्लॉप फिल्मों के बाद भी नहीं मानी हार, शम्मी कपूर ने काबिलियत के दम पर अपना लोहा मनवाया
Personality 18 फ्लॉप फिल्मों के बाद भी नहीं मानी हार, शम्मी कपूर ने काबिलियत के दम पर अपना लोहा मनवाया

18 फ्लॉप फिल्मों के बाद भी नहीं मानी हार, शम्मी कपूर ने काबिलियत के दम पर अपना लोहा मनवाया 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे.

read more
ओम पुरी एक ऐसे कलाकार थे जिसने बॉलीवुड से हॉलीवुड तक लहराया परचम
Personality ओम पुरी एक ऐसे कलाकार थे जिसने बॉलीवुड से हॉलीवुड तक लहराया परचम

ओम पुरी एक ऐसे कलाकार थे जिसने बॉलीवुड से हॉलीवुड तक लहराया परचम ओम पुरी का फिल्मी करियर मराठी नाटक आधारित फिल्म घासीराम कोतवाल से हुआ था। उनकी अदाकारी की खासियत थी की वो सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि कई भाषाओं की फिल्मों में काम करते थे। उन्होंने हिन्‍दी के अलावा अंग्रेजी, मराठी, कन्नड और पंजाबी फिल्‍मों में भी अपनी काबिलियत के दम पर खास पहचान बनाई थी। उनके योगदान के लिए उन्हें भारत का चौथा नागरिक सम्मान पुरस्कार पद्मश्री से भी नवाजा गया था। अपने अभिनय के बल पर फिल्म जगत में उन्होंने शोहरत भी प्राप्त की।  ओम पुरी का जन्म वर्ष 1950 को 18 अक्टूबर को हरियाणा के अंबाला में पंजाबी परिवार में हुआ था। उनके पिता भारतीय रेलवे में कार्यरत थे। ओम पुरी जब मात्र छह वर्ष के थे तो टी स्टॉल पर चाय के बर्तन साफ करने का काम भी करते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटियाला स्थित अपनी ननिहाल से पूरी की। मगर उनमें एक्टिंग करने की इच्छा हमेशा रहती थी।इसे भी पढ़ें: 'गजल सम्राट' जगजीत सिंह पुण्यतिथि: जानें कॉन्सर्ट के दौरान क्यों रोने लगे थे मशहूर गायकपुणे फिल्म संस्थान से ली ट्रेनिंगओम पुरी ने 1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो एक्टिंग की ट्रेनिंग दी। इसके बाद उन्होंने थियेटर का रुख किया। ओमपुरी ने अपने निजी थिएटर ग्रुप "

read more
छोटे से गांव में जन्में किशोर कुमार ने कड़ा संघर्ष करके बनाया सिनेमा में अपना बड़ा कद
Personality छोटे से गांव में जन्में किशोर कुमार ने कड़ा संघर्ष करके बनाया सिनेमा में अपना बड़ा कद

छोटे से गांव में जन्में किशोर कुमार ने कड़ा संघर्ष करके बनाया सिनेमा में अपना बड़ा कद किशोर कुमार का जन्म मध्य प्रदेश राज्य में स्थित खंडवा नामक एक छोटी सी जगह में हुआ था। उनका जन्म एक ठेठ बंगाली परिवार में हुआ था और वह अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके दो बड़े भाई (अशोक कुमार और अनूप कुमार) और एक बहन (सती देवी) थीं। उनके पिता कुंजिलाल गांगुली पेशे से वकील थे और उनकी मां गौरी देवी एक संपन्न परिवार से थीं। जब उनके बड़े भाई अशोक कुमार अभिनेता बने, तब किशोर कुमार काफी छोटे थे। बाद में उनके दूसरे भाई ने भी अभिनेता बनने के लिए फिल्मों में कदम रखा।

read more
आपातकाल के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले महानायक थे जयप्रकाश नारायण
Personality आपातकाल के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले महानायक थे जयप्रकाश नारायण

आपातकाल के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले महानायक थे जयप्रकाश नारायण भारतीय लोकतंत्र के महानायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ था। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब देश विदेशी सत्ता के आधीन था और स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहा था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सारन और पटना जिले में हुई थी । वे विद्यार्थी जीवन से ही स्वतंत्रता के प्रेमी थे जब पटना में उन्होंने बिहार विद्यापीठ में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया तभी से वे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगे थे। तत्कालीन बिहार विद्यापीठ की स्थापना डॉ.

read more
छात्र जीवन में सब्जी बेचकर किताबों के लिए पैसे जुटाते थे नानाजी देशमुख
Personality छात्र जीवन में सब्जी बेचकर किताबों के लिए पैसे जुटाते थे नानाजी देशमुख

छात्र जीवन में सब्जी बेचकर किताबों के लिए पैसे जुटाते थे नानाजी देशमुख ग्राम कडोली (जिला परभणी, महाराष्ट्र) में 11 अक्तूबर, 1916 (शरद पूर्णिमा) को श्रीमती राजाबाई की गोद में जन्मे चंडिकादास अमृतराव (नानाजी) देशमुख ने भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी। 1967 में उन्होंने विभिन्न विचार और स्वभाव वाले नेताओं को साथ लाकर उ.

read more
राजनीति के शिखर थे समाजवादी मुलायम सिंह यादव
Personality राजनीति के शिखर थे समाजवादी मुलायम सिंह यादव

राजनीति के शिखर थे समाजवादी मुलायम सिंह यादव लंबे समय से बीमारी  से जूझ रहे राजनीति के पुरोधा पुरुष, उत्कृष्ट समाजवादी, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं संस्थापक मुलायम सिंह यादव अब हमारे बीच नहीं रहे। एक संभावनाओं भरा राजनीति सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल समाजवादी पार्टी के लिये बल्कि भारतीय राजनीति के लिये एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है। राजनीति और समाजवादी पार्टी के लिए उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। देशहित में नीतियां बनाने में माहिर मुलायम सिंह का 82 वर्ष का जीवन सफर राजनीतिक आदर्शों की ऊंची मीनार हैं। उनका निधन एक युग की समाप्ति है। उन्हें हम समाजवादी सोच एवं भारतीय राजनीति का अक्षयकोष कह सकते हैं, वे गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, नीडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे।

read more
राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी
Personality राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी

राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी उत्तर प्रदेश के सियासी अखाड़े के माहिर पहलवान माने जाने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव कई बार मौत को मात देने के बाद विधि के विधान के हाथों आखिरकार जिंदगी की आखिरी जंग में दुनिया से रुखसत हो गए। अपनी युवावस्था में पहलवान रहे 82 वर्षीय यादव का गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। उत्तर प्रदेश के इटावा स्थित सैफई में 22 नवंबर 1939 को जन्मे यादव का कुनबा देश के सबसे प्रमुख राजनीतिक खानदानों में गिना जाता है। मुलायम सिंह यादव 10 बार विधायक और सात बार सांसद रहे। वह वर्ष 1989, 1991, 1993 और 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और 1996 से 98 तक देश के रक्षा मंत्री भी रहे। एक वक्त वह देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी माने गए थे। यादव कई दशकों तक एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित रहे लेकिन उनका सियासी अखाड़ा मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश ही रहा। यहीं से उनकी राजनीति निखरी और समाजवाद के प्रणेता राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करते हुए उत्तर प्रदेश में सत्ता के शीर्ष को छुआ। 

read more
‘गजल सम्राट’ जगजीत सिंह पुण्यतिथि: जानें कॉन्सर्ट के दौरान क्यों रोने लगे थे मशहूर गायक
Personality ‘गजल सम्राट’ जगजीत सिंह पुण्यतिथि: जानें कॉन्सर्ट के दौरान क्यों रोने लगे थे मशहूर गायक

‘गजल सम्राट’ जगजीत सिंह पुण्यतिथि: जानें कॉन्सर्ट के दौरान क्यों रोने लगे थे मशहूर गायक 'चिट्ठी न कोई संदेश' जैसा मार्मिक गीत गाने वाले मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह जो अपनी मखमली आवाज से किसी को भी अपना मुरीद बना लेते थे, आज उनकी 11वीं पुण्यतिथि है। वर्ष 2011 में आज ही के दिन उनका निधन हो गया था। उनके निधन के बाद आज भी उनकी गजलें हमारे बीच हैं जिसके जरिए जगजीत सिंह भी हमारे बीच मौजूद है।

read more
जानें क्यों गुरु दत्त ने 39 वर्ष की उम्र में लगाया था मौत को गले
Personality जानें क्यों गुरु दत्त ने 39 वर्ष की उम्र में लगाया था मौत को गले

जानें क्यों गुरु दत्त ने 39 वर्ष की उम्र में लगाया था मौत को गले हिंदी फिल्म सिनेमा को नई पहचान के साथ मजबूत आधार देने वाले दिग्गज कलाकार गुरु दत्त की फिल्मों को वर्षों बाद आज भी सिनेमा के स्कूल के तौर पर देखा जाता है। फिल्मों की पढ़ाई करने वाले कई छात्र उनकी फिल्मों से कई बातें सीखते है। गुरु दत्त सिर्फ फिल्म अभिनेता नहीं बल्कि लेखक, निर्देशक और फिल्म निर्माता के साथ पूरा पैकेज थे। गुरु दत्त ने 'कागज के फूल', 'प्यासा', 'मिस्टर एंड मिसेज 55', 'बाज', 'जाल', 'साहिब बीबी और गुलाम' जैसी शानदार फिल्मों को बनाया, जो आज के समय में भी क्लासिक फिल्में मानी जाती है।इसे भी पढ़ें: मजरूह सुल्तानपुरी की जयंती विशेषः रहें न रहें हम, महका करेंगे…गुरुदत्त नहीं था असल नामफिल्म जगत में शायद ही कोई जो गुरु दत्त के नाम से वाकिफ ना हो। मगर कम ही लोगों को मालूम है कि उनका असल नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था। उनका कर्नाटक में जन्म हुआ था। मूल तौर पर वो ब्रह्माण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता हैडमास्टर और बैंकर थे जबकि उनकी माता शिक्षिका और लेखिका थी। गुरु दत्त का बचपन कोलकाता में बिता, ऐसे में वो बंगाली सभ्यता से काफी परिचित थे। बांग्ला भाषा पर भी उनकी दमदार पकड़ थी। वहीदा रहमान को दे बैठे थे दिलगुरु दत्त ने अपने करियर के दौरान सिर्फ आठ फिल्मों का निर्देशन किया था। उनकी द्वारा निर्देशित की गई फिल्में आज भी आइकॉनिक मानी जाती है। जानकारी के मुताबिक गुरु दत्त की शादी गीता दत्त से हुई थी। मगर शादी के चार वर्षों के बाद ही वो वहीदा रहमान को दिल दे बैठे थे। ये पता चलने के बाद गीता दत्त ने बच्चों के साथ घर छोड़ दिया था और गुरु दत्त बिलकुल अकेले हो गए थे। इस अकेलेपन को दूर करने के लिए उन्होंने शराब का सहारा लिया था। तनाव के दौरान उन्होंने दो बार पहले भी आत्महत्या की कोशिश की थी।इसे भी पढ़ें: 'गजल सम्राट' जगजीत सिंह पुण्यतिथि: जानें कॉन्सर्ट के दौरान क्यों रोने लगे थे मशहूर गायकमात्र 39 वर्ष में कहा दुनिया को अलविदागुरु दत्त अपने जीवन के अंतिम समय में काफी अकेले पड़ गए थे। उन्होंने अपना अकेलापन दूर करने के लिए शराब की लत को अपनाया। हालांकि इस लत के कारण वर्ष 1964 में 10 अक्टूबर को उनका निधन हो गया था। मुंबई के पेड्डर रोड स्थित उनके घर में उनकी लाश मिली थी। कहा जाता है कि रात में उन्होंने काफी शराब पी थी और नींद की गोलियों का सेवन किया था, जिस कारण उनकी मौत हुई थी। हालांकि आजतक उनकी मौत के कारण को लेकर कोई पुख्ता जानकारी सामने नहीं आई है।

read more
मुलायम सिंह यादव के जीवन से जुड़ी घटनाओं और प्रमुख उपलब्धियों का विवरण
Personality मुलायम सिंह यादव के जीवन से जुड़ी घटनाओं और प्रमुख उपलब्धियों का विवरण

मुलायम सिंह यादव के जीवन से जुड़ी घटनाओं और प्रमुख उपलब्धियों का विवरण समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। मुलायम सिंह यादव का जन्म इटावा जिले के सैफई में 22 नवंबर 1939 को हुआ था।  मुलायम के परिवार में कुल पांच भाई थे जिनमें से मुलायम तीसरे नंबर पर थे। राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह यादव अध्यापक रहे थे। इसके साथ ही वो पहलवानी किया करते थे। उन्होंने लोहिया आंदोलन में हिस्सा लिया, जिसके बाद वर्ष 1992 में चार अक्टूबर को उन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की। मुलायम को उनकी सूझ बूझ और राजनीतिक समझ के लिए राजनीति के अखाड़े का पहलवान माना जाता था। बता दें कि उन्होंने शिकोहाबाद क्षेत्र के गांव इटोली में शुरुआती पढ़ाई की थी। उन्होंने यहां रहते हुए कुश्ती के दांव पेच सीखे।इसे भी पढ़ें: मुलायम सिंह 55 वर्षों तक रहे राजनीति में सक्रिय, राजनीति में आने के लिए छोड़ी थी सरकारी नौकरीउनके जीवन से जुड़ी प्रमुख उपलब्धियों और घटनाओं का वर्ष वार विवरण इस प्रकार है: 

read more
आरके नारायण का साहित्य सभी भाषाओं के पाठकों के बीच लोकप्रिय है
Personality आरके नारायण का साहित्य सभी भाषाओं के पाठकों के बीच लोकप्रिय है

आरके नारायण का साहित्य सभी भाषाओं के पाठकों के बीच लोकप्रिय है आरके नारायण उन प्रमुख भारतीय साहित्यकारों में से हैं जिन्हें सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब ख्याति प्राप्त हुई। उनका नाम अंग्रेजी साहित्य के प्रमुख तीन भारतीय लेखकों की श्रेणी में शामिल है। 1943 में आरके नारायण की प्रकाशित छोटी कहानियों के संग्रह ‘द मालगुडी डेज’ पर आधारित टीवी धारावाहिक ‘मालगुडी डेज’ काफी चर्चित धारावाहिक था, जिसे लोग आज भी नहीं भूले हैं। यह धारावाहिक 80 के दशक में शंकर नाग के निर्देशन में बना था। मालगुडी डेज को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब ख्याति मिली। इस धारावाहिक में आरके नारायण के मन में बसे एक काल्पनिक शहर मालगुडी का इतना सुंदर वर्णन हुआ है जिसे देखकर इस शहर को वास्तविक में भी देखने की इच्छा होने लगती है। किताब मालगुडी डेज में आरके नारायण ने दैनिक जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं के साथ ही मानवीय सम्बंधों का भी अति प्रशंसनीय नेचुरल वर्णन किया है।

read more
बहुजन आंदोलन के महानायक थे कांशीराम, अटल बिहारी वाजपेयी भी उन्हें समझने में कर गए थे चूक
Personality बहुजन आंदोलन के महानायक थे कांशीराम, अटल बिहारी वाजपेयी भी उन्हें समझने में कर गए थे चूक

बहुजन आंदोलन के महानायक थे कांशीराम, अटल बिहारी वाजपेयी भी उन्हें समझने में कर गए थे चूक कांशीराम की गिनती देश के कद्दावर दलित नेताओं में होती है। भारत की राजनीति में दलितों की हक की आवाज उठाने का श्रेय कांशीराम को जाता है। कांशीराम को दलित राजनीति का मास्टरमाइंड भी कहा जाता है। कांशीराम में हमेशा अल्पसंख्यकों और दलितों की आवाज उठाई। कांशीराम वास्तव में बहुजन आंदोलन के महानायक थे। कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के दलित परिवार में हुआ था। कांशीराम का बचपन ऐसी अवस्था में बिता जहां समाज में जाति और छुआछूत का कलंक साफ तौर पर देखा जा रहा था। यही कारण था कि उन्होंने अपने जीवन में दलितों और अल्पसंख्यकों की आवाज उठाई। कांशीराम की प्रारंभिक शिक्षा उनके शहर में ही हुई। उन्होंने 1956 में विज्ञान विषय में गवर्नमेंट कॉलेज से डिग्री हासिल की। समाज के पिछड़े लोगों की आवाज उठाना कांशीराम के लिए लगातार जरूरी होता जा रहा था। 

read more
तमाम आंदोलनों की मशाल थामने वाले जननायक थे जयप्रकाश नारायण
Personality तमाम आंदोलनों की मशाल थामने वाले जननायक थे जयप्रकाश नारायण

तमाम आंदोलनों की मशाल थामने वाले जननायक थे जयप्रकाश नारायण लोकनायक जयप्रकाशजी की समस्त जीवन यात्रा संघर्ष तथा साधना से भरपूर रही। उसमें अनेक पड़ाव आए, उन्होंने भारतीय राजनीति को ही नहीं बल्कि आम जनजीवन को एक नई दिशा दी, नए मानक गढ़े। जैसे- भौतिकवाद से अध्यात्म, राजनीति से सामाजिक कार्य तथा जबरन सामाजिक सुधार से व्यक्तिगत दिमागों में परिवर्तन। वे विदेशी सत्ता से देशी सत्ता, देशी सत्ता से व्यवस्था, व्यवस्था से व्यक्ति में परिवर्तन और व्यक्ति में परिवर्तन से नैतिकता के पक्षधर थे। वे समूचे भारत में ग्राम स्वराज्य का सपना देखते थे और उसे आकार देने के लिए अथक प्रयत्न भी किए। उनका संपूर्ण जीवन भारतीय समाज की समस्याओं के समाधानों के लिए प्रकट हुआ, एक अवतार की तरह, एक मसीहा की तरह। वे भारतीय राजनीति में सत्ता की कीचड़ में केवल सेवा के कमल कहलाने में विश्वास रखते थे। उन्होंने भारतीय समाज के लिए बहुत कुछ किया लेकिन सार्वजनिक जीवन में जिन मूल्यों की स्थापना वे करना चाहते थे, वे मूल्य बहुत हद तक देश की राजनीतिक पार्टियों को स्वीकार्य नहीं थे। क्योंकि ये मूल्य राजनीति के तत्कालीन ढांचे को चुनौती देने के साथ-साथ स्वार्थ एवं पदलोलुपता की स्थितियों को समाप्त करने के पक्षधर थे, राष्ट्रीयता की भावना एवं नैतिकता की स्थापना उनका लक्ष्य था, राजनीति को वे सेवा का माध्यम बनाना चाहते थे।

read more
पुण्यतिथि विशेषः मुंशी प्रेमचंद थे ज़िन्दा ज़मीर के लेखक
Personality पुण्यतिथि विशेषः मुंशी प्रेमचंद थे ज़िन्दा ज़मीर के लेखक

पुण्यतिथि विशेषः मुंशी प्रेमचंद थे ज़िन्दा ज़मीर के लेखक मुंशी प्रेमचंद क्रांतिकारी रचनाकर थे। वह समाज सुधारक और विचारक भी थे। उनके लेखन का मक़सद सिर्फ़ मनोरंजन कराना ही नहीं, बल्कि सामाजिक कुरीतियों की ओर ध्यान आकर्षित कराना भी था। वह सामाजिक क्रांति में विश्वास करते थे। वह कहते थे कि समाज में ज़िन्दा रहने में जितनी मुश्किलों का सामना लोग करेंगे, उतना ही वहां गुनाह होगा। अगर समाज में लोग खु़शहाल होंगे, तो समाज में अच्छाई ज़्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा। मुंशी प्रेमचंद ने शोषित वर्ग के लोगों को उठाने की हर मुमकिन कोशिश की। उन्होंने आवाज़ लगाई- ऐ लोगों, जब तुम्हें संसार में रहना है, तो ज़िन्दा लोगों की तरह रहो, मुर्दों की तरह रहने से क्या फ़ायदा। मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले के गांव लमही में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल और माता का नाम आनंदी देवी था। उनका बचपन गांव में बीता। उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फ़ारसी की शिक्षा हासिल की। साल 1818 में उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। वह एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापन का कार्य करने लगे और कई पदोन्नतियों के बाद वह डिप्टी इंस्पेक्टर बन गए। उच्च शिक्षा उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उन्होंने अंग्रेज़ी सहित फ़ारसी और इतिहास विषयों में स्नातक किया था। बाद में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में योगदान देते हुए उन्होंने अंग्रेज़ सरकार की नौकरी छोड़ दी।इसे भी पढ़ें: जयंती विशेषः नैतिकता की मिसाल थे लाल बहादुर शास्त्रीप्रेमचंद ने पारिवारिक जीवन में कई दुख झेले। उनकी मां के निधन के बाद उनके पिता ने दूसरा विवाह किया। लेकिन उन्हें अपनी विमाता से मां की ममता नहीं मिली। इसलिए उन्होंने हमेशा मां की कमी महसूस की। उनके वैवाहिक जीवन में भी अनेक कड़वाहटें आईं। उनका पहला विवाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ था। यह विवाह उनके सौतेले नाना ने तय किया था। उनके लिए यह विवाह दुखदाई रहा और आख़िर टूट गया। इसके बाद उन्होंने फ़ैसला किया कि वह दूसरा विवाह किसी विधवा से ही करेंगे। साल 1905 में उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह कर लिया। शिवरानी के पिता ज़मींदार थे और बेटी का पुनर्विवाह करना चाहते थे।  उस वक़्त एक पिता के लिए यह बात सोचना एक क्रांतिकारी क़दम था। यह विवाह उनके लिए सुखदायी रहा और उनकी माली हालत भी सुधर गई। वह लेखन पर ध्यान देने लगे। उनका कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ, जिसे ख़ासा सराहा गया। उन्होंने जब कहानी लिखनी शुरू की, तो अपना नाम नवाब राय धनपत रख लिया। जब सरकार ने उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन ज़ब्त किया। तब उन्होंने अपना नाम नवाब राय से बदलकर प्रेमचंद कर लिया और उनका अधिकतर साहित्य प्रेमचंद के नाम से ही प्रकाशित हुआ।  कथा लेखन के साथ उन्होंने उपन्यास पढ़ने शुरू कर दिए। उस समय उनके पिता गोरखपुर में डाक मुंशी के तौर पर काम कर रहे थे। गोरखपुर में ही प्रेमचंद ने अपनी सबसे पहली साहित्यिक कृति रची, जो उनके एक अविवाहित मामा से संबंधित थी। मामा को एक छोटी जाति की महिला से प्यार हो गया था। उनके मामा उन्हें बहुत डांटते थे। अपनी प्रेम कथा को नाटक के रूप में देखकर वह आगबबूला हो गए और उन्होंने पांडुलिपि को जला दिया। इसके बाद हिन्दी में शेख़ सादी पर एक किताब लिखी। टॊल्सटॊय की कई कहानियों का हिन्दी  में अनुवाद किया। उन्होंने प्रेम पचीसी की भी कई कहानियों को हिन्दी में रूपांतरित किया, जो सप्त-सरोज शीर्षक से 1917 में प्रकाशित हुईं। इनमें बड़े घर की बेटी, सौत, सज्जनता का दंड, पंच परमेश्वर, नमक का दरोग़ा, उपदेश, परीक्षा शामिल हैं। प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में इनकी गणना होती है। उनके उपन्यासों में सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, वरदान, निर्मला, ग़बन, कर्मभूमि, कृष्णा, प्रतिज्ञा, प्रतापचंद्र, श्यामा और गोदान शामिल है। गोदान उनकी कालजयी रचना मानी जाती है। बीमारी के दौरान ही उन्होंने एक उपन्यास मंगलसूत्र लिखना शुरू किया, लेकिन उनकी मौत की वजह से वह अधूरा ही रह गया। उनकी कई रचनाएं उनकी स्मृतियों पर भी आधारित हैं। उनकी कहानी कज़ाकी उनके बचपन की स्मृतियों से जुड़ी है। कज़ाकी नामक व्यक्ति डाक विभाग का हरकारा था और लंबी यात्राओं पर दूर-दूर जाता था। वापसी में वह प्रेमचंद के लिए कुछ न कुछ लाता था। कहानी ढपोरशंख में वह एक कपटी साहित्यकार द्वारा ठगे जाने का मार्मिक वर्णन करते हैं।इसे भी पढ़ें: रानी दुर्गावती ने मुगलों के खिलाफ लिया था लोहा, अपने सीने में उतारी थी कटारउन्होंने अपने उपन्यास और कहानियों में ज़िंदगी की हक़ीक़त को पेश किया। गांवों को अपने लेखन का प्रमुख केंद्रबिंदु रखते हुए उन्हें चित्रित किया। उनके उपन्यासों में देहात के निम्न-मध्यम वर्ग की समस्याओं का वर्णन मिलता है। उन्होंने सांप्रदायिक सदभाव पर भी ख़ास ज़ोर दिया। प्रेमचंद को उर्दू लघुकथाओं का जनक कहा जाता है। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख और संस्मरण आदि विधाओं में साहित्य की रचना की, लेकिन प्रसिद्ध हुए कहानीकार के रूप में। उन्हें अपनी ज़िंदगी में ही उपन्यास सम्राट की पदवी मिल गई। उन्होंने 15 उपन्यास, तीन सौ से ज़्यादा कहानियां, तीन नाटक और सात बाल पुस्तकें लिखीं। इसके अलावा लेख, संपादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र लिखे और अनुवाद किए। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। उनकी कहानियों में अंधेर, अनाथ लड़की, अपनी करनी, अमृत, अलग्योझा, आख़िरी तोहफ़ा, आख़िरी मंज़िल, आत्म-संगीत, आत्माराम, आधार, आल्हा, इज़्ज़त का ख़ून, इस्तीफ़ा, ईदगाह, ईश्वरीय न्याय, उद्धार, एक आंच की कसर, एक्ट्रेस, कप्तान साहब, कफ़न, कर्मों का फल, कवच, क़ातिल, काशी में आगमन, कोई दुख न हो तो बकरी ख़रीद लो, कौशल, क्रिकेट मैच, ख़ुदी, ख़ुदाई फ़ौजदार, ग़ैरत की कटार, गुल्ली डंडा, घमंड का पुतला, घरजमाई, जुर्माना, जुलूस, जेल, ज्योति,झांकी, ठाकुर का कुआं, डिप्टी श्यामचरण, तांगेवाले की बड़, तिरसूल तेंतर, त्रिया चरित्र, दिल की रानी, दुनिया का सबसे अनमोल रतन, दुर्गा का मंदिर, दूसरी शादी, दो बैलों की कथा, नबी का नीति-निर्वाह, नरक का मार्ग, नशा, नसीहतों का दफ़्तर, नाग पूजा, नादान दोस्त, निर्वासन, नेउर, नेकी, नैराश्य लीला, पंच परमेश्वर, पत्नी से पति, परीक्षा, पर्वत-यात्रा, पुत्र- प्रेम, पूस की रात, प्रतिशोध, प्रायश्चित, प्रेम-सूत्र, प्रेम का स्वप्न, बड़े घर की बेटी,  बड़े बाबू, बड़े भाई साहब,  बंद दरवाज़ा, बांका ज़मींदार, बूढ़ी काकी, बेटों वाली विधवा, बैंक का दिवाला, बोहनी, मंत्र, मंदिर और मस्जिद, मतवाली योगिनी, मनावन, मनोवृति, ममता, मां, माता का हृदय, माधवी, मिलाप, मिस पद्मा, मुबारक बीमारी, मैकू, मोटेराम जी शास्त्री, राजहठ, राजा हरदैल, रामलीला, राष्ट्र का सेवक, स्वर्ग की देवी, लेखक, लैला, वफ़ा का ख़ंजर, वरदान, वासना की कड़ियां, विक्रमादित्य का तेगा, विजय, विदाई, विदुषी वृजरानी, विश्वास, वैराग्य, शंखनाद, शतरंज के खिलाड़ी, शराब की दुकान, शांति, शादी की वजह, शूद्र, शेख़ मख़गूर, शोक का पुरस्कार, सभ्यता का रहस्य, समर यात्रा, समस्या, सांसारिक प्रेम और देशप्रेम, सिर्फ़ एक आवाज़, सैलानी,  बंदर, सोहाग का शव, सौत, स्त्री और पुरुष, स्वर्ग की देवी, स्वांग, स्वामिनी, हिंसा परमो धर्म और होली की छुट्टी आदि शामिल हैं। साल 1936 में उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन को सभापति के रूप में संबोधित किया था। उनका यही भाषण प्रगतिशील आंदोलन का घोषणा-पत्र का आधार बना। प्रेमचंद अपनी महान रचनाओं की रूपरेखा पहले अंग्रेज़ी में लिखते थे। इसके बाद उन्हें उर्दू या हिन्दी में अनुदित कर विस्तारित करते थे।  प्रेमचंद सिनेमा के सबसे ज़्यादा लोकप्रिय साहित्यकारों में से हैं। उनकी मौत के दो साल बाद के सुब्रमण्यम ने 1938 में सेवासदन उपन्यास पर फ़िल्म बनाई। प्रेमचंद की कुछ कहानियों पर और फ़िल्में भी बनी हैं, जैसे सत्यजीत राय की फ़िल्म शतरंज के खिलाड़ी। प्रेमचंद ने मज़दूर फ़िल्म के लिए संवाद लिखे थे। फ़िल्म में एक देशप्रेमी मिल मालिक की कहानी थी, लेकिन सेंसर बोर्ड को यह पसंद नहीं आई। हालांकि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब में यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई। फ़िल्म का मज़दूरों पर ऐसा असर पड़ा कि पुलिस बुलानी पड़ गई। आख़िर में फ़िल्म के प्रदर्शन पर सरकार ने रोक लगा दी। इस फ़िल्म में प्रेमचंद को भी दिखाया गया था। वह मज़दूरों और मालिकों के बीच एक संघर्ष में पंच की भूमिका में थे। साल 1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ओका ऊरी कथा नाम से एक तेलुगु फ़िल्म बनाई, जिसे सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फ़िल्म का राष्ट्रीय प्रुरस्कार मिला। साल 1963 में गोदान और साल 1966 में ग़बन उपन्यास पर फ़िल्में बनीं, जिन्हें ख़ूब पसंद किया गया। साल1980 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था। 8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर रोग से मुंशी प्रेमचंद की मौत हो गई। उनकी स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के मौक़े पर 30 पैसे मूल्य का डाक टिकट जारी किया। इसके अलावा गोरखपुर के जिस स्कूल में वह शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई। यहां उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी ने प्रेमचंद घर में नाम से उनकी जीवनी लिखी। उनके बेटे अमृत राय ने भी क़लम का सिपाही नाम से उनकी जीवनी लिखी।

read more

About Me

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua.

Know More

Social

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero