मोदी सबसे कह रहे हैं यह युद्ध का समय नहीं है, मगर सेना PoK लाने की बात कह रही है!
सेना की उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी का पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कार्रवाई वाला बयान चौंकाने वाला है। सेना का काम बयान देना नहीं है। उसका काम सरकार के आदेश पर ऑपरेशन करना है। सेना को इस तरह के बयान से बचना चाहिए। भारत के कई सत्ताधारी दल के नेताओं के बयान कई बार सरकार के सामने असहज स्थिति पैदा कर देते हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट भी परेशान कर देती हैं। ऐसे में उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी का पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कार्रवाई वाला बयान भी कुछ ऐसा ही है। यह बयान पाकिस्तान−चीन समेत दुनिया के भारत विरोधी देशों के लिए चौंकाने वाला और उन्हें लामबंद करने वाला है। ये बयान भारत का विरोध करने वाले देशों को शोर मचाने का एक और मुद्दा थमा देगा।
उन्होंने पारिकस्तान द्वारा कब्जा किए कश्मीर पर कार्रवाई के बारे में पूछे गए सवाल पर ये बात कही। उन्होंने मंगलवार को कहा कि भारत सरकार जब आदेश देगी, सेना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर कार्रवाई करेगी। उन्होंने कहा कि इस विषय पर संसद में प्रस्ताव पास हो चुका है। भारतीय सेना सरकार के हर आदेश की पालना के लिए पूरी तरह से तैयार है। उन्होंने कहा कि सरकार जब भी आदेश देगी सेना अपनी पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ेगी। उन्होंने यह भी बताया कि भारत में घुसपैठ के लिए पाकिस्तानी लॉन्चपैड पर करीब 160 आतंकी मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि हम उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने देंगे।
इससे पहले तीन नवंबर को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की एक रैली में भी इसी तरह की मांग उठी थी। वे वहां एक सभा को संबोधित कर रहे थे। इसी दौरान भीड़ में से लोगों ने कहा− पीओके भी अब भारत में चाहिए। इस पर रक्षा मंत्री ने कहा था। धैर्य रखिए। धैर्य रखिए। राजनाथ हिमाचल के वीर जवानों को लेकर बात कर रहे थे कि रैली में मौजूद लोगों ने पीओके चाहिए, के नारे लगा दिए। लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने जम्मू−कश्मीर में हो रही टार्गेट किलिंग पर कहा कि राज्य में आतंकवाद को रोकने के लिए काफी काम किया गया है। इससे बौखलाए आतंकियों की तरफ से कभी पिस्टल, कभी हथियार इस तरफ भेजने के प्रयास किए जाते हैं और निहत्थे लोगों को टारगेट किया जाता है, लेकिन आतंकी अपने मंसूबों में कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे। उन्होंने दावा किया कि धारा 370 हटने के बाद से जम्मू−कश्मीर में काफी बदलाव आया है। राज्य में आतंकवाद पर लगाम लगी है।
देखा जाये तो लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी का पूरा बयान ठीक है। सिर्फ उन्हें पीओके पर कब्जे वाली बात पर टिप्पणी नही करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि जब सरकार कार्रवाई के आदेश करेगी, तब कार्रवाई होगी। इस बात को सब जानते हैं कि सरकार के आदेश पर ही कार्रवाई होगी, बिना आदेश के नहीं। दूसरे ये भी संभव नहीं कि सरकार आदेश करे और सेना मना कर दे। सरकार के आदेश पर सेना को कार्रवाई करनी ही है। फिर इस तरह के बयान क्यों? एक बात और कि ये निर्णय जब अभी सरकार का नहीं है, फिर बताकर दुश्मन और उसके मददगार देश को क्यों सचेत कर रहे हो, और अगर निर्णय सरकार का है तो खामोश तैयारी के साथ उसको अंजाम देना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के शासनकाल में संसद के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर पाक अधिकृत कशमीर को वापस लेने का संकल्प लिया था। प्रस्ताव में कहा गया था कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में कब्जा किए गए हिस्से को मुक्त करवाना ही समस्या का वैधानिक और एकमात्र हल है। ये प्रस्ताव 22 फरवरी 1994 को पारित किया गया था। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से यही बात कही थी। ये प्रस्ताव आज का नहीं है। इसलिए इसका इस समय जिक्र करने का उपयुक्त समय भी नहीं है।
रूस−यूक्रेन युद्ध को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कहते रहे हैं कि यह समय युद्ध के लिए उपयुक्त नहीं है, ऐसे में उनके ही देश की सेना की ओर से इस तरह का बयान आना समीचीन नहीं लगता। दुनिया में भारत की ये इमेज बनेगी कि दूसरे देशों को युद्ध से मना कर रहे हैं और अपने आप युद्ध की तैयारी के लिए लगे हैं। वैसे भी युद्ध आखिरी विकल्प होता है, क्योंकि इससे युद्ध करने वाले देश का बड़ा विनाश होता है। भारी संख्या में सैनिक मारे जाते हैं और घायल होते हैं। युद्ध करने वाले देशों का विकास रुक जाता है। देश विकास की दौड़ में बहुत पीछे चला जाता है। एक बात और, देश की सुरक्षा के लिए हम ही तैयारी कर रहे हैं, हम ही आधुनिक शस्त्र बना रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। दुश्मन देश हमारी एक−एक तैयारी पर नजर रखे है। उसी के अनुरूप वह अपने को तैयार कर रहा है। हमारा मीडिया हमारी सेना की तैयारी के बारे में समय−समय पर रिपोर्ट भी करता रहा है, इस तरह की रिपोर्ट से भी बचना चाहिए। सेना के ऑपरेशन, सेना की तैयारी और मूवमेंट पूरी तरह गोपनीय होने चाहिए। उसका हमला तब हो, जब दुश्मन सोया हो, सचेत न हो। ऐसी हालत में उसका नुकसान ज्यादा होगा। दुश्मन के सचेत होने पर हुए हमले में हमलावर देश का नुकसान ज्यादा होता है।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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