अटलजी कहीं गये नहीं हैं, वह हम भारतीयों के मन में सदैव अटल हैं
आज श्रद्धेय अटल जी का जन्मदिन है। महापुरुषों को अक्सर उनके जयंती या पुण्यतिथि पर याद किया जाता है लेकिन अटलजी ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें देश हर रोज याद करता है। उनके आदर्शों और उनके द्वारा सिखाई गयी बातों और उनके सिद्धांतों का रोजाना किसी ना किसी बात में उदाहरण दिया जाता है। इसलिए अटलजी कहीं गये नहीं वह तो हमारे बीच में सदैव अटल हैं। देखा जाये तो राष्ट्र हित को हमेशा पहली प्राथमिकता मानते हुए राजनीति करने वाले भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे नेता हमारे देश में विरले ही हुए हैं। श्रद्धेय अटलजी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भले 2015 में मिला हो लेकिन वह तो अपने आरम्भ काल से ही भारतीयों के दिलों में बसते हैं। हर भारतीय उन्हें आरम्भ काल से ही भारत रत्न मानता था।
भला, कौन भूल सकता है जब 13 दिनों की अटलजी की सरकार गिर गयी थी, तब अटलजी ने सत्ता के लिए जोड़तोड़ करने से साफ इंकार कर दिया था। कह दिया था कि पार्टियों में तोड़फोड़ से मिली सत्ता को वह चिमटे से भी छूना नहीं पसंद करेंगे। अटलजी की सरकार गिरने से भले 1996 में विपक्ष खुश हुआ हो लेकिन देश निराश था। 1998 में जब अटलजी दोबारा प्रधानमंत्री बने तो अमेरिका सहित अन्य विदेशी सैटेलाइटों और विदेशी गुप्तचरों को जरा भी भनक नहीं लगने दी कि भारत परमाणु परीक्षण करने जा रहा है, जो काम पिछले कई प्रधानमंत्री नहीं कर पाये थे वह अटलजी ने सत्ता में आते ही कर दिखाया। दुनिया ने आर्थिक प्रतिबंध लगाये लेकिन अटलजी ने इस मौके का उपयोग भारत को आत्मनिर्भर बनाने में लगाया। अटलजी ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए लाहौर तक बस चलवाई, खुद उसमें बैठ कर लाहौर तक भी गये लेकिन जब कारगिल में घुसपैठ के जरिये उन्हें धोखा मिला तो पाकिस्तान को कड़ा सबक भी सिखाया।
देखा जाये तो अटलजी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं विचार थे जिसने भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों को नये सिरे से स्थापित किया, जिसने व्यक्तिगत आलोचनाओं का विरोध किया। दूसरी पार्टियों के लोग भले कितनी भी तगड़ी आलोचना करें पर अटलजी व्यक्तिगत आलोचना नहीं करते थे। उनके शब्दों में व्यंग्य जरूर होता था लेकिन शब्द रूपी तीखे बाण वह कभी नहीं चलाते थे। सत्ता का मोह नहीं रखने वाले ऐसे शीर्षस्थ नेता भारत में ही नहीं दुनिया में भी कम ही हुए हैं। देश नहीं भूला है वह दृश्य जब लोकसभा में एक वोट से अपनी सरकार गिर जाने पर उस फैसले को स्वीकार करते हुए अटलजी संसदीय परम्पराओं का पालन करते हुए सीधा राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपने चले गये थे। देश नहीं भूला है वह दृश्य जब अटलजी ने अपनी ही पार्टी की गुजरात सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए उसे राष्ट्रधर्म निभाने की सलाह सार्वजनिक रूप से दे डाली थी। ऐसी सलाह वही दे सकता है जिसके लिए पार्टी से बड़ा राष्ट्र हो।
भारत के राजनीतिक इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि जब बाबरी ढांचा ध्वंस के बाद भाजपा को राजनीतिक छुआछूत का सामना करना पड़ रहा था और कोई भी दल उसके साथ नहीं आना चाहता था तब वाजपेयी जी के चेहरे को ही भाजपा ने आगे किया। उस समय 24 दलों की गठबंधन सरकार सफलतापूर्वक चला कर अटलजी ने साबित किया था कि वह गठबंधन राजनीति के ब्रांड अम्बेसेडर हैं। उस समय जो भी दल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हुआ था उसने यही कहा था कि समर्थन भाजपा को नहीं अटल बिहारी वाजपेयी को दिया है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देकर उस पर अमल करने की बात कर रहे हैं लेकिन देखा जाये तो 'सबका साथ, सबका विकास' तो अटलजी ने ही शुरू किया जिसको मोदी आगे बढ़ा रहे हैं।
भारतीय राजनीति में अटल जी के बराबर किसी नेता का कद नहीं है। यही नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी के विपक्ष में भले बहुत दल या राजनेता थे लेकिन उनके विरोध में एक भी दल और एक भी राजनेता नहीं था। अटलजी को जिस तरह हर राजनीतिक दल और राजनेता याद करते हैं वैसा सिर्फ महापुरुषों को ही नसीब होता है। अटलजी राजनीति में भद्रता, मर्यादित भाषा का ही इस्तेमाल करने वाले, सत्ता के लिए कभी किसी को धोखा नहीं देने वाले, विपक्ष के लोगों के भी विचार सुनने और यदि अपनी गलती हो तो उसे स्वीकार करने वाले, आम जनता से सीधा संवाद बनाने वाले, भारत माता का गौरव दुनिया में बढ़ाने वाले, अपनी कविताओं और रचनाओं से देशप्रेम का पाठ पढ़ाने वाले अजातशत्रु थे।
अटलजी लगभग दस वर्षों तक बिस्तर पर रहे और इस दौरान हर भारतीय यही दुआ करता रहा कि काश! अटलजी उठें और बोलें। हर कोई उनको सुनना चाहता था। अटल जी को सक्रिय राजनीति से और इस धरा से दूर हुए वर्षों हो गये लेकिन शायद ही कोई ऐसा समय हो जब कभी उनके विचारों और भाषणों का जिक्र नहीं हुआ हो। अटलजी जब अपना शरीर छोड़कर चले गये तो सबको निःशब्द कर गये थे। उस समय सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में तो अवकाश सरकार ने घोषित किया लेकिन यह उनकी शख्सियत का ही कमाल था कि निजी कार्यालयों ने स्वतः ही अवकाश घोषित कर दिये गये थे, व्यापारियों ने मंडियां और दुकानें एक दिन के लिए बंद कर दीं, मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों में अटलजी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थनाएं की गयीं थीं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बाद देश ने दूसरी बार इतनी बड़ी अंतिम यात्रा किसी नेता की देखी तो वह अटलजी की थी। पूरी दुनिया ने देखा था कि अपने सर्वोच्च नेता के चले जाने से गमगीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कड़ी धूप में 8 किलोमीटर पैदल चलकर अटलजी के अंत्येष्टि स्थल तक पहुँचे थे। अटलजी को जीते जी तो सम्मान मिला ही, मृत्यु के बाद भी देश ने उन्हें वह सम्मान दिया जिसके वह हकदार थे।
आज अटलजी के जन्मदिन पर उनके भाषण, उनकी कविताएं, उनके विचार, उनकी तसवीरें और उनसे जुड़े तथ्य लोग सोशल मीडिया पर एक दूसरे को भेजे जा रहे हैं। यही नहीं व्हाट्सएप पर देखने को मिल रहा है कि कितने लोगों ने अपनी डीपी में अटल बिहारी वाजपेयी की तसवीर लगायी हुई है। बहरहाल, अटलजी के बारे में कहने को बहुत कुछ है लेकिन उनके लिए कितने भी शब्द कम ही पड़ जाएंगे। ऐसे विनम्र व्यक्ति और पुण्यात्मा को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएं।
गौतम मोरारका
Bharat ratna atal bihari vajpayee life story