सीमा विवाद को राज्यों के भरोसे छोड़ना सही नहीं होगा, केंद्र और कोर्ट को पहल करनी होगी
असम-मेघालय सीमा पर बीते दिनों हिंसा भड़कने से कई लोगों की मौत हुई और कई घायल हो गए। घटना में मेघालय के पांच और असम के एक वन रक्षक सहित कुल छह लोगों की मौत हो गई। हालांकि यह हिंसा लकड़ी की तस्करी को लेकर हुई लेकिन इन राज्यों में सीमा विवाद को लेकर भी हिंसा होना आम बात है। पूर्वोत्तर सहित देश के कई राज्यों में सीमा विवाद चल रहा है, किन्तु भौगोलिक सीमा और क्षेत्रों की दावेदारी को लेकर जितना खूनी संघर्ष पूर्वोत्तर के राज्यों में हुआ है, उतना कहीं नहीं हुआ। राज्य विवादित क्षेत्र के निपटारे के लिए कानूनी या लोकतांत्रिक तरीका अपनाने की बजाए दुश्मनों की तरह जंग छेड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में जब देश चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मन देशों की चुनौतियों से जूझ रहा है, राज्यों द्वारा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की बजाए निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर की गई कार्रवाई से एकता और अखंडता को लेकर गलत संदेश जा रहा है। विशेषकर चीन पहले ही अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जता कर विवाद खड़ा कर चुका है।
देश में करीब दस राज्य ऐसे हैं, जिनमें सीमा को लेकर विवाद जारी है। इनमें पूर्वोत्तर राज्यों में सर्वाधिक फसाद है। राज्यों के विवादों को उकसाने से स्थानीय लोग हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि जिन क्षेत्रों की दावेदारी को लेकर विवाद या हिंसक कार्रवाई हो रही है, उनका कोई विशेष वाणिज्यिक या दूसरा महत्वपूर्ण उपयोग नहीं है, जिससे राज्यों को किसी तरह का भारी नुकसान हो रहा हो। इसके बावजूद राज्यों की सरकारें क्षेत्रवाद के नाम पर उकसावे भरी कार्रवाई से लोगों को हिंसा की तरफ धकेल रही हैं। मेघालय से पहले अक्टूबर के पहले सप्ताह में असम का मिजोरम से विवाद हो गया था। इस विवाद की जड़ झोपड़ी रही। असम पुलिस ने दो अक्टूबर को झोफई इलाके में दो झोपड़ियां बनाईं। जिस स्थान पर झोपड़ियां बनाई गईं वह मिजोरम के पहले मुख्यमंत्री सी छुंगा के धान के खेत के बिल्कुल सामने मौजूद थी। हालांकि, असम पुलिस ने झोपड़ियां हटा लीं। दरअसल, जिसे इलाके में असम पुलिस ने झोपड़ियां बनाई वह विवादित क्षेत्र है। इस विवादित क्षेत्र पर दोनों राज्य सरकारों ने अच्छी स्थिति बनाए रखने पर सहमति जताई थी।
गौरतलब है कि मार्च 2018 में इसी इलाके में झड़प हुई थी जब मिजोरम पुलिस के पदाधिकारियों ने वहां लकड़ी का एक मकान बनाने की कोशिश की थी। उस झड़प में 60 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस साल सितंबर में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सीमा मुद्दे को लेकर मुलाकात भी की थी और मंत्री स्तरीय बात जारी रखने पर सहमति जताई थी। सीमा विवाद को लेकर असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों की कई दौर की बैठकों के बावजूद कोई हल नहीं निकल पाया। सीमा विवाद को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों का इतिहास रक्तरंजित रहा है। साल 2021 में एक दंपत्ति कछार (असल) जिले के रास्ते मिजोरम आ रहे थे। जिस समय वह लौट रहे थे तो उनकी गाड़ी में तोड़फोड़ हुई। बवाल इतना बढ़ गया कि नौबत फायरिंग तक जा पहुंची। इससे पहले साल 2020 में अक्टूबर में भी दो बार असम और मिजोरम की सीमा पर आगजनी और हिंसा हुई थी। 9 अक्टूबर, 2020 को मिजोरम के दो लोगों को आग लगा दी गई थी। इसी के साथ कई झोपड़ियों और सुपारी के पौधों को भी आग के हवाले कर दिया गया था। वहीं कुछ दिन बाद ही कछार (असम) के लोगों ने मिजोराम पुलिस पर हमला कर दिया। पुलिस और आम लोगों पर पत्थरबाजी हुई।
असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद ब्रिटिश राज के समय से करीब 100 साल से चल रहा है। असम और मिजोरम के बीच 164.6 किलोमीटर की अंतर-राज्य सीमा है, जिसमें असम के तीन जिले कछार, हैलाकांडी और करीमगंज, मिजोरम के कोलासिब, ममित और आइजोल जिलों के साथ सीमा साझा करते हैं। ब्रिटिश राज के समय से मिजोरम को असम के लुशाई हिल्स के रूप में जाना जाता था। मिजोरम विद्रोह के वर्षों के बाद 1987 में ही एक राज्य बन गया था, लेकिन अभी भी राज्य ब्रिटिश काल में 1875 में तय की गई सीमा को अपना मानता है।
इन दोनों राज्यों के अलावा असम-मिजोरम, हरियाणा-हिमाचल प्रदेश, लद्दाख-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र-कर्नाटक, असम-अरुणाचल प्रदेश और असम-नागालैंड के बीच सीमा विवाद है। यहां सीमाओं के सीमांकन और क्षेत्रों के दावों के बीच विवाद है। इनमें महाराष्ट्र और कर्नाटक में सीमा के दावों को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। दोनों राज्यों की सरकारें सिर्फ क्षेत्रीय लोगों की भावनाओं को उकसाने में जुटी हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने महाराष्ट्र के 40 गांवों पर अपना दावा किया है। इसका जवाब देते हुए महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि महाराष्ट्र का कोई भी गांव कहीं नहीं जाएगा। वैसे भी सीमा विवादों का निपटारा राज्यों के स्तर पर करना आसान नहीं हैं। किन्तु ऐसे संवेदनशील मुद्दे को उछाल कर राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करना राजनीतिक दलों का एजेंडा रहा है।
राज्यों में विवाद चाहे सीमा संबंधी हों, नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर या किसी दूसरी तरह का हो, इनका निराकरण सर्वमान्य कानूनी तरीके से ही किया जाना चाहिए। ऐसे विवादों पर सहमति तभी बनेगी जब राजनीतिक चश्मे की बजाए इन्हें देशहित के नजरिए से देखा जाएगा। ऐसे मामलों में केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट पहल करके महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विवादों को सिर्फ राज्यों के भरोसे छोड़े जाने से हिंसक घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी। इससे भारत की कमजोरी जाहिर होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि प्रभावित होगी।
-योगेन्द्र योगी
Border disputes between indian states