"जलवा जिसका कायम है, उसका नाम मुलायम है" यूपी की सियायी फिजां में ये कहावत कभी यूं ही गूंजती रहा करती थी। देश की राजनीति में यादव परिवार का कुनबा सबसे बड़ा रहा है। इस बात से हर कोई वाकिफ है। नेताजी के परिवार के 25 से ज्यादा सदस्य सक्रिय राजनीति में हैं। मुलायम के निधन के बाद उनकी खाली हुई सीट से उनकी बहू और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने 2.80 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की। उसकी इस सीट में जसवंतनगर विधानसभा सीट का अहम योगदान है। ये वही जसवंतनगर सीट है जबां से अखिलेश के चाचा विधायक हैं। मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव, जिनके बारे में कहा जाता है कि राजनीति में अगर नेताजी की मदद किसी ने सबसे अधिक की है तो वो शिवपाल ही हैं। इसे आप खुद मुलायम के ही सपा में दरार के वक्त कही बातों से समझ सकते हैं जब उन्होंने सार्वजनिक मंच से कहा था कि अगर वे (शिवपाल) पार्टी से चले गए तो आधे लोग उनके साथ चले जाएंगे।
पांच साल की कड़वाहट के बाद आखिरकार शिवपाल सिंह यादव की 'घर वापसी' हो गई। विपक्षी पार्टी को मैनपुरी लोकसभा सीट को 2.88 लाख वोटों से जीत दिलाने के बाद दिग्गज नेता समाजवादी पार्टी (सपा) के पाले में लौट आए। शिवपाल के निर्वाचन क्षेत्र जसवंतनगर ने सपा उम्मीदवार डिंपल यादव के अंतर से 1.06 लाख से अधिक वोटों का योगदान दिया। इस जोरदार प्रदर्शन ने पार्टी के लिए दिग्गज नेता के महत्व को एक गढ़ में स्थापित किया जो 1996 से आयोजित है। उस वर्ष, शिवपाल ने इटावा सहकारी बैंक के अध्यक्ष बनकर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। 67 वर्षीय नेता सपा के संस्थापक सदस्यों में से हैं, जिसे 1992 में उनके भाई और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने राजनीति का कहकहा सिखाया और पढ़ाया। मुलायम सिंह यादव की अक्टूबर में मृत्यु के बाद मैनपुरी उपचुनाव हुए।
1996 में जब मुलायम सिंह ने रक्षा मंत्री के रूप में केंद्र का रुख किया तो शिवपाल को मैनपुरी में अपनी जसवंतनगर विधानसभा सीट विरासत में सौंप दी। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, शिवपाल संगठन में अपने भाई के सबसे भरोसेमंद व्यक्ति थे. 2009 में, उन्हें पहली बार सपा का यूपी प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। लेकिन, कुछ महीनों के बाद, उनके भतीजे और वर्तमान सपा प्रमुख अखिलेश यादव से तल्खी के बाद वो अलग हो गए। 2012 के विधानसभा चुनावों में जब सपा ने बहुमत हासिल किया, तो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का एक धड़ा चाहता था कि मुलायम फिर से मुख्यमंत्री का पद संभालें। लेकिन सपा संस्थापक ने अखिलेश को सीएम पद के लिए चुनने का फैसला किया, यह महसूस करते हुए कि यह उनके बेटे को राजनीति में स्थापित करने का एक आदर्श अवसर है। सूत्रों ने बताया कि शिवपाल उस समय अखिलेश को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक थे, रामगोपाल और परिवार के अन्य सदस्य मुलायम के फैसले के साथ खड़े थे।
शिवपाल अपने भतीजे के बाद अखिलेश के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में सबसे शक्तिशाली मंत्री और अपने बड़े भाई के बाद सबसे महत्वपूर्ण पार्टी नेता बन गए। उन्होंने लोक निर्माण विभाग, सिंचाई, और सहकारिता और राजस्व जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला। लेकिन 2014 में शिवपाल और रामगोपाल के बीच मतभेद बढ़ने की अटकलें थीं, जब मुलायम ने अपने छोटे भाई के बेटे आदित्य के बजाय फिरोजाबाद लोकसभा सीट से रामगोपाल के बेटे अक्षय को मैदान में उतारा। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक उस समय शिवपाल का मानना था कि मुलायम के फैसले में अखिलेश का हाथ है।
शिवपाल ने 2016 में गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन अखिलेश के विरोध के बाद इसे रद्द कर दिया गया। उस समय, उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के साथ एक समझौता किया, जहां मुजफ्फरनगर दंगों के बाद भाजपा ने लाभ कमाया। मुलायम से बातचीत करने से पहले तत्कालीन रालोद प्रमुख अजित सिंह ने शिवपाल से कई दौर की मुलाकात की थी।
शिवपाल के बिना क्या सपा की होती जीत
मैनपुरी लोकसभा सीट पर साल 1996 से मुलायम सिंह ने पांच बार जीत दर्ज की है। मैनपुरी लोकसभा के अंतर्गत मैनपुरी सदर, जसवंतनगर, करहल, किशनी, भोगांव विधानसभा सीटें आती हैं। इसी इलाके में यादव परिवार की दो सीटें जसवंतनगर और करहल है जहां से शिवपाल और अखिलेश विधायक हैं। डिंपल यादव को जसवंतनगर विधानसभा से ही सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। साल 2019 में मैनपुरी से जब नेताजी खुद मैदान में उतरे थे और सपा के साथ मायावती के वोटरों का भी साथ था। उस चुनाव में मुलायम और प्रेम सिंह के बीच हार जीत का ज्यादा बड़ा अंतर नहीं था। भोगांव में मुलायम को साढ़े 6 हजार, किशनी में 13 हजार के करीब और करहल में 38 हजार वोटों से लीड मिली थी। लेकिन जसवंतनगर में मुलायम सिंह 62 हजार से ज्यादा वोटों से आगे रहे। इन आंकड़ों से साफ है कि शिवपाल के ही इलाके में मिले वोटों ने मुलायम को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। डिंपल यादव को उपचुनाव में मिली पौने तीन लाख वोटों की जीत में जसवंतनगर का अहम रोल रहा है, जहां उन्हें 1 लाख से ज्यादा वोटों की बढ़त हासिल हुई।
डिंपल ने जिसे हराया वो शिपवाल के करीबी
डिंपल ने इस चुनाव में बीजेपी के जिस उम्मीदवार रघुराज शाक्य को हराया है वो खुद शिवपाल सिंह यादव के करीबी रहे हैं। किसी जमाने में रघुराज शाक्य मुलायाम के भी खासमखास थे। 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले जब चाचा भतीजे की अनबन के बाद शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाई। अखिलेश के सपा में नियंत्रण के बाद अखिलेश ने रघुराज का टिकट काट दिया और वो नाराज होकर शिवपाल के साथ हो लिए। लेकिन जब 2022 के चुनाव में सपा और प्रसपा का गठबंधन हो गया तो वो शिवपाल का साथ छोड़ बीजेपी में चले गए।
अखिलेश में आए बदलाव की वजह
पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन और अच्छे लड़कों की जोड़ी, फिर बुआ-भजीते वाला कनेक्शन और हाल ही में जयंत सिंह का साथ तमाम जुगत लगाने के बाद भी सफलता हर बार अखिलेश यादव से कोसो दूर नजर आई। यहां तक की सबसे सेफ गढ़ मान 2019 में उन्होंने कन्नौज से डिंपल को लोकसभा चुनाव लड़ाया। इसमें वह भाजपा के सुब्रत पाठक से हार गईं थीं। डिंपल यादव के चुनाव हारने के बाद सबसे ज्यादा चर्चा मायावती के पैर छूने वाली घटना पर हुई। इस घटना के बाद चाचा शिवपाल यादव ने भी बड़ा बयान दिया था। माना गया कि सपा का पारंपरिक यादव वोट इसके बाद छिटककर भाजपा की ओर चला गया। इस बार मैनपुरी में सपा की राह इतनी आसान नहीं नजर आ रही थी। ऐसे में यूपी विधानसभा चुनाव में शिवपाल की एकता की अपीलों को कई बार खारिज कर चुके अखिलेश का व्यवहार अचानक से बदल गया। पहले तो उन्होंने शिवपाल यादव के घर जाकर आशीर्वाद लिया। फिर आलम ये भी नजर आया कि मैनपुरी में एक जनसभा के दौरान जब शिवपाल मंच पर आए तो भतीजे ने पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। पिता की अंत्योष्टि से लेकर तमाम कर्मकांडों में वो कंधे से कंधा मिलाकर चलते दिखे। इस तरह अखिलेश ने चाचा को वो सम्मान दिया जिसकी तड़प वो कई बार जाहिर कर चुके थे।
2024 में यहां बढ़ेगी बीजेपी की टेंशन
शिवपाल की वापसी से सपा को बड़ी ताकत मिली है। यही नहीं चुनाव दर चुनाव अलग-अलग होकर मैदान में उतर निराशा ही हासिल करने वाले चाचा-भतीजे का साथ आने वाले वक्त में फलदायी साबित हो सकता है। खासकर इटावा, कन्नौज, मैनपुरी, फिरोजाबाद, फर्रूखाबाद, औरैया जैसे इलाकों में। इन क्षेत्रों में शिवपाल की भी अच्छी पकड़ है, वो सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं और पार्टी संगठन के ग्रास रूट लेवल पर उनकी पकड़ रही है। मुलायम के बाद सपा में सबसे प्रभावशाली माने जाने वाले शिवपाल के दूर जाने से पार्टी में भी फूट के संकेत गए थे। इसके अलावा परिवार में कलह की बात से अखिलेश की छवि भी खराब हुई थी। सपा में फूट के बाद इटावा और आसपास के क्षेत्रों में बीजेपी ने अपनी पकड़ मजबूत की थी। मुलायम के निधन के बाद एकता की नई कोशिश सपा के लिए कितनी फायदेमंद होगी इसका पता आने वाले वक्त में चलेगा। -अभिनय आकाश
Chacha bhatija in mainpuri sp attitude will change after shivpal entry
Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero