राजशाही का खात्मा, विश्व के एकमात्र हिंदू राष्ट्र होने की पहचान की समाप्ति, चीन के बेस्ट फ्रेंड ने संभाली नेपाल की सत्ता तो भारत की क्यों बढ़ी चिंता?
नेपाल एक राजशाही सिस्टम वाला देश था। कई छोटी-छोटी रियासतें थी। फिर 1768 में यहां शाह वंश आया। इसके राजा पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल की पूर्वी और पश्चिमी रियासतों के जीतकर एकीकरण किया। उसके बाद शाह वंश के राजा नेपाल पर हुकूमत करने लगे। ये स्थिति 1846 में बदलती है। इस साल नेपाली राजशाही में तख्तापलट हो जाता है। इसे सेना के एक जनरल जंग बहादुर राणा ने अंजाम दिया। वो नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए। कहा कि जैसे राजा का बेटा राजा बनता है वैसे ही अब मेरे उत्तराधिकारी प्रधानमंत्री बनेंगे। ऐसे में गद्दी पर बैठते शाह वंश के लोग लेकिन सत्ता राणा वंश के लोग चलाते। ये व्यवस्था 104 बरस तक चली। साल 1951 में राणा वंश की छुट्टी हो गई। उन्हें हटाकर शाह वंश का परिवार एक बार फिर से पावर में आ गया। नए राजा ने राणाओं द्वारा लाए गए संविधान को भी हटा दिया। 1969 को नेपाल का दूसरा संविधान लाया गया। बाद में नेपाल के राजा ने सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया जो लगभग 30 सालों तक चला। अप्रैल 1990 में इसकी समाप्ति के साथ फिर से नया संविधान लाया गया। जिसके बाद नेपाल में मल्टी पार्टी डेमोक्रेसी की व्यवस्था लागू की गई। लेकिन अब भी असली ताकत राजा के पास थी।
इस व्यवस्था के खिलाफ 1996 में माओवादी लड़ाकों ने गृह युद्ध छेड़ दिया। इन माओवादी लड़ाकों का नेतृत्व कर रहे थे पुष्प कुमार दहल प्रचंड। वहीं प्रचंड जिन्होंने नेपाल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने 25 दिसंबर की शाम उनकी नियंक्ति का ऐलान किया। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री और चीन के करीबी माने जाने वाले नेता केपी शर्मा ओली और पांच अन्य गठबंधन पार्टियों के नेताओँ के साथ प्रचंड राष्ट्रपति से मिले और सरकार बनाने किया दावा पेश किया। 26 दिसंबर को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। ये तीसरी बार है जब प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री बने। रिश्तों के नजरिए से इसे भारत के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है। इसकी वजह है कि क्षेत्रीय मुद्दों पर गठबंधन और उनके गठबंधन साथी ओली के भारत संग रिश्ते पहले से अच्छे नहीं रहे हैं। केपी शर्मा ओली नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री हैं जो सत्ता में रहने के दौरान चीन की सह पर भारत के खिलाफ बयान देते थे। ऐसी खबर भी आती रही है कि चीन चाहता था कि दोनों नेता गठबंधन बनाएं।
ढाई साल तक रहेंगे पीएम
गठबंधन में हुए समझौते के तहत शुरू में ढाई साल तक प्रचंड पीएम रहेंगे। इसके बाद सीपीएन यूएमएल सत्ता संभालेगी। यानी इसके नेता पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली फिर पीएम बनेंगे। खास बात ये है कि प्रचंड और ओली दोनों की नेता चीन समर्थक माने जाते हैं। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने एम और गठबंधन सरकार के मंत्रियों को शपथ दिलाई। प्रचंड सरकार में तीन उपप्रधानमंत्री हैं। ये ओली की पार्टी सीपीएन यूएमएल विष्णु पौडेल, प्रचंड की पार्टी सीपीएन माओवादी सेंटर से नारायण काजी श्रेष्ठ और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी से रवि लामिछाने। विष्णु पौडेल को वित्त मंत्रालय, नारायण काजी श्रेष्ठ को परिवहन मंत्रालय, रवि लामिछाने को गृह विभाग सौंपा गया है। प्रचंड को 30 दिनों के भीतर निचले सदन से विश्वास मत प्राप्त करना होगा।
नेपाली कांग्रेस से इसलिए नहीं बनी बात
प्रचंड की पार्टी CPN-MC ने कहा कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउवा ने के ढाई साल में प्रचंड को पीएम बनाने की शर्त खारिज कर दी थी। हालांकि देउवा और प्रचंड के बीच बारी-बारी से सरकार बनाने पर सहमति थी। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों प्रमुख पदों के लिए दावा किया था, जिसे प्रचंड ने खारिज कर दिया। नतीजा यह कि वार्ता विफल हो गई।
सात दलों के साथ मिलकर बनी सरकार
सीपीएन माओवादी सेंटर (प्रचंड)- 32
राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी- 20
राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी- 14
जनता समाजवादी पार्टी- 12
जनमत पार्टी- 6
नागरिक उनमुक्त पार्टी- 4
प्रचंड पड़ोसी देश में राजशाही के खिलाफ दस वर्षों ( 1996 से 2006) तक चले भूमिगत मुक्ति युद्ध के सबसे बड़े नेता रहे हैं। पिछले महीने हुए चुनावों में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत न मिलने के कारण सरकार बनाने के सवाल को लेकर वहां कुछ समय से सस्पेंस बना हुआ था प्रचंड की पार्टी सीपीएन (एमसी) ने नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन में यह चुनाव लड़ा था, लेकिन दोनों दलों में इस बात पर विवाद था कि गठबंधन सरकार का नेतृत्व पहले कौन करेगा जब यह विवाद आखिर तक हल नहीं हो सका और प्रचंड ने गठबंधन से बाहर निकलने की घोषणा कर दी। उसके बाद घटनाचक्र तेजी से घूमा और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यएमएल) के नेता केपी शर्मा ओली और अन्य दलों की बदौलत उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया।
टीचर से प्रधानमंत्री तक
एक जमाने में स्कूल के टीचर रहे प्रचंड ने माओवाजी गुरिल्लाओं की फौज बनाई। ये गुरिल्ला दक्षिण एशिया के सबसे दुर्दांत बागी गुटों में गिने जाने लगे। करीब एक दशक तक ये लड़ाई चली। 1 जून 2001 को राजमहल के भीषण हत्याकांड के बाद नेपाल की सियासत हमेशा के लिए बदल गई। साल 2006 में गिरजाप्रसाद कोइराला को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्होंने बागी माओवादी धड़े को बातचीत के लिए आमंत्रित किया। इसी बातचीत के रास्ते नवंबर 2006 में कोइराला और प्रचंड के बीच हुआ एक शांति समझौता। इसके साथ ही नेपाल के सिविल वार का अंत हो गया। इन्होंने 2008 के आम चुनाव में हिस्सा लिया और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे। इसके बाद प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए। इसी साल नेपाल में राजशाही का अंत हो गया और लोकतांत्रिक सिस्टम लाया गया। आने वाले दिनों में राजशाही खत्म करने, विश्व के एकमात्र हिंदू राष्ट्र होने की पहचान खत्म करने और राजमुद्रा से प्रतीक चिन्हों को हटाने से लेकर माओवादी लड़ाकों की रिहाई और उन्हें नेपाली सेना का हिस्सा बनाने की अपनी योजनाओं पर वह तेजी से अमल करते रहे। बाद में एक के बाद एक बदलते प्रधानमंत्री का दौर नेपाल ने देखा और सबसे दिलचस्प बात ये कि कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। -अभिनय आकाश
China best friend took over power of nepal why is india worried