समान नागरिक संहिता के लिए प्रतिबद्ध भाजपा देश को जल्द दे सकती है गुड न्यूज!
देश में समान नागरिक संहिता कानून लाने की बढ़ती माँग के बीच राज्यसभा में इस संबंध में एक निजी विधेयक पेश भी किया जा चुका है। भारी हंगामे के बीच पेश किये गये इस विधेयक पर चर्चा के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की क्या राय रहती है इस पर देश की निगाह लगी रहेगी। यह भी देखना होगा कि राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के इस विधेयक को सरकार का समर्थन मिलता है या सरकार के आश्वासन के बाद वह इस विधेयक को वापस लेते हैं। वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि समान नागरिक संहिता भाजपा के एजेंडे में जनसंघ के काल से रहा है और पार्टी तमाम अवसरों पर इसे लागू करने की प्रतिबद्धता भी जताती रही है। हाल में भाजपा शासित कुछ राज्यों में तो समान नागरिक संहिता लागू करने के दिशानिर्देश बनाने संबंधी उच्च स्तरीय समितियों का भी गठन किया गया है। इसके अलावा हाल में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था।
समान नागरिक संहिता को लेकर देश में इस समय जो बहस चल रही है उसमें तमाम लोग तरह-तरह के विचार रख रहे हैं। कोई इसे एक खास धर्म के खिलाफ बता रहा है तो कोई इसे देशहित में बता रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा समान नागरिक संहिता कानून बना सकती है। इस बात के संकेत इसलिए मिल रहे हैं क्योंकि हाल में कई केंद्रीय मंत्रियों और प्रमुख नेताओं ने इस संबंध में बयान दिये हैं।
गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान एक समाचार चैनल से बातचीत के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भाजपा समान नागरिक संहिता लाने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन बहस और चर्चा के बाद। उन्होंने कहा कि जनसंघ के दिनों से ही देश की जनता से भाजपा ने ये वादा किया है। समाचार चैनल से बातचीत में अमित शाह ने यह भी कहा कि सिर्फ भाजपा ही नहीं, संविधान सभा ने भी संसद और राज्यों को उचित समय पर समान नागरिक संहिता लाने की सलाह दी थी, क्योंकि किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश के लिए कानून धर्म के आधार पर नहीं होने चाहिए। उन्होंने कहा था कि यदि देश और राज्य धर्मनिरपेक्ष हैं, तो कानून धर्म पर आधारित कैसे हो सकते हैं? उन्होंने कहा कि हर किसी के लिए, संसद या राज्य विधानसभाओं से पारित कानून एक होना चाहिए। अमित शाह ने इस दौरान यह भी कहा कि संविधान सभा की प्रतिबद्धता को समय के साथ भुला दिया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि तीन राज्यों ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों की अध्यक्षता में जो समिति बनाई है, उसके समक्ष विभिन्न धर्मों के लोग अपने विचार रख रहे हैं। गृह मंत्री ने आश्वस्त किया था कि इस कवायद के बाद आने वाली सिफारिशों पर गौर किया जायेगा और उसके आधार पर कार्रवाई की जायेगी। उन्होंने कहा था कि भाजपा हर प्रकार की लोकतांत्रिक चर्चाओं के पूरा होने के बाद देश में समान नागरिक संहिता लाने के लिए प्रतिबद्ध है।
वहीं केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि सभी दलों को समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्र और मानवता के लिए अच्छा होगा। गडकरी ने एक समाचार चैनल के कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता के सवाल पर कहा, ''अगर कोई पुरुष, किसी महिला से शादी करता है तो नैसर्गिक है। लेकिन कोई चार शादी करता है, तो अप्राकृतिक है। इसलिए प्रगतिशील और शिक्षित मुस्लिम यह नहीं करते हैं।’’ केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने कहा, ‘‘समाज में गुणात्मक परिवर्तन होने चाहिए। यह किसी धर्म या वर्ग के खिलाफ नहीं है। हमें एकजुट होकर विकसित राष्ट्र बनाना चाहिए।’’ उन्होंने सवाल किया कि क्या किसी भी धर्म की महिला को चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो या सिख हो उन्हें समान अधिकार नहीं मिलना चाहिए? गडकरी ने पूछा कि दुनिया के किस मुस्लिम देश में दो नागरिक संहिता है? केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘अगर केंद्र सरकार किसी मुद्दे पर कोई फैसला लेती है और राज्य आपत्ति करते हैं, तो इससे बाहर जो संदेश जाएगा वो अच्छा नहीं होगा, क्योंकि ऐसे मामले समवर्ती सूची में है। इसलिए मेरा मानना है कि अगर राज्य और सभी पार्टी सामूहिक रूप से फैसला लेते हैं, तो यह मानवता एवं राष्ट्र के लिए अच्छा होगा।’’
वहीं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने समान नागरिक संहिता लाने के विचार का समर्थन करते हुए कहा है कि जिसने भी संविधान की शपथ ली है वह इसका कभी विरोध नहीं करेगा। समान नागरिक संहिता पर उनकी राय के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘संविधान की शपथ लेने वाला कोई भी व्यक्ति यह नहीं कहेगा कि इसे नहीं आना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू कोड पहले से ही है, क्या इसने हिंदुओं, सिखों और जैनियों में एकरूपता लायी? हम विविधता वाले देश हैं। समान नागरिक संहिता विवाह या रीति-रिवाजों के बारे में नहीं है... यह समान न्याय के बारे में है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे मामले हैं जहां लोगों ने दो पत्नियां रखने के लिए धर्म परिवर्तन किया है। मैं किसी का नाम नहीं लूंगा।’’
उधर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि उनकी पार्टी मुस्लिम पुरुषों के कई पत्नियां रखने के खिलाफ है। मुख्यमंत्री ने कहा, ''स्वतंत्र भारत में रहने वाले पुरुष को तीन-चार महिलाओं से विवाह करने का अधिकार नहीं हो सकता।'' उन्होंने कहा कि हम ऐसी व्यवस्था को बदलना चाहते हैं। हमें मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए काम करना होगा।
जहां तक समान नागरिक संहिता विधेयक को राज्यसभा में पेश किये जाने की बात है तो आपको बता दें कि विपक्षी सदस्यों ने इस विधेयक को संविधान के विरुद्ध बताते हुए कहा कि इससे देश की विविधता की संस्कृति को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि इससे देश के सामाजिक तानेबाने को क्षति पहुंचने की आशंका है। उन्होंने यह विधेयक वापस लेने का अनुरोध भी किया। कुछ विपक्षी सदस्यों का कहना था कि इस प्रकार के कानून को देश की न्यायपालिका द्वारा खारिज कर दिया जाएगा। दूसरी ओर, सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर सहित संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता के विषय को नीति निर्देशक सिद्धान्तों में रखा था। उन्होंने कहा कि सदन के हर सदस्य को संविधान से जुड़े विषय पर विधेयक लाने का अधिकार है और उसके इस अधिकार पर प्रश्न नहीं खड़ा किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा द्वारा पेश निजी विधेयक में संपूर्ण भारत के लिए एकसमान नागरिक संहिता तैयार करने और इसके क्रियान्वयन के लिए एक राष्ट्रीय निरीक्षण और जांच समिति गठित करने का प्रावधान है।
- गौतम मोरारका
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